” भाभी..बच्चे हैं…आपस में झगड़ते हैं और पल भर में सुलह भी कर लेते हैं।आप बिना बात के ही इतना…।” मिनी अपनी भाभी को समझाने का प्रयास कर रही थी कि बीच में ही उसकी भाभी नंदा लगभग चीखते हुए बोली,” बच्चे हैं तो क्या..आखिर मेरा अंश उससे बड़ा है…इस रिश्ते का तो उसे ख्याल रखना चाहिए।
” कहते हुए उसने मिनी के बेटे आदित्य की तरफ़ घूर कर देखा फिर तो मिनी के भी तेवर बदल गए,” क्यों भाभी..हमेशा छोटे ही # रिश्तों की मर्यादा का ख्याल क्यों रखे…क्या ये बड़ों की ज़िम्मेदारी नहीं है…।” उसने अपनी भाभी को तीखी नज़रों से देखा और बेटे का हाथ पकड़कर वहाँ से चली गई।
एक तरफ़ बैठी सुनयना जी अपनी बहू-बेटी की तकरार को देखते हुए सोच रहीं थीं, कल तक दोनों के रिश्ते में कितनी मिठास थी, सहेलियाँ बनकर बतियाती थीं और आज इतनी कड़़वाहट…।
सुनयना जी के पति रामस्वरूप बाबू बड़े ही भले इंसान थे।डाकघर में पोस्टमास्टर थे।समय पर अपनी ड्यूटी करते और शाम को लौटकर अपनी पत्नी और बेटे निशांत के साथ समय बिताते।लेकिन अचानक उनकी खुशियों को ग्रहण लग गया..
एक दुर्घटना में उनकी पत्नी चल बसी।चार साल का नन्हा निशांत न होता तो शायद वो भी पत्नी के साथ ही…।ड्यूटी और घर, दोनों को संभालना उनके लिए मुश्किल होने लगा।माता-पिता थे नहीं..रिश्ते की एक बहन ने उनके बेटे को कुछ दिन तो संभाल दिया
लेकिन उसे भी तो अपनी गृहस्थी देखनी थी।तब उनके एक सहकर्मी ने उन्हें दूसरा विवाह करने की सलाह दी।साथ ही, उन्हें अपनी छोटी बहन से भी मिलवा दिया जो कुछ महीनों पहले ही विधवा हुई थी और भाई के पास रह रही थी।
बेटे के लिए नई माँ लाने की बात को लेकर रामस्वरूप बाबू थोड़े असमंजस थे लेकिन जब वो सुनयना जी मिले और जिस तरह से सुनयना जी ने निशांत को अपने सीने से लगा लिया था, फिर तो उन्हें कोई शंका ही नहीं रही और बिना किसी ताम-झाम के उन्होंने मंदिर में विवाह कर लिया और सुनयना जी को अपनी अर्धांगनी बनाकर घर ले आये।
सुनयना जी ने निशांत को अपने आँचल में ऐसे समेट लिया जैसे एक चिड़िया अपने बच्चे को अपने पंखों के भीतर छुपा लेती है।निशांत भी उन्हें माँ-माँ कहते नहीं थकता था।दो साल बीतते-बीतते मिनी उसकी गोद में आ गई लेकिन निशांत के लिए उनका प्यार तनिक भी कम नहीं हुआ था।
हालांकि रिश्तेदार और मोहल्ले वाले उनसे कहते रहते कि सौतेले बेटे पर इतना प्यार मत लुटा..एक दिन तुम्हें छोड़कर चल देगा..।और वो मुस्कुराते हुए उनकी बातों को दूसरे कान से निकाल देती थी।
समय अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ता गया।दोनों बच्चे सयाने हो गये।निशांत अपनी बहन पर जान छिड़कता और मिनी भी अपनी हर बात उससे शेयर करती थी।सुनयना जी हर रोज अपने भगवान से यही कहती कि दोनों भाई-बहन का प्यार ऐसे ही बना रहे।उनकी प्रार्थना ईश्वर ने सुन भी ली थी।
निशांत इंजीनियरिंग पास करके एक प्राइवेट कंपनी में ज़ाॅब करने लगा।मिनी का ग्रेजुएशन पूरा हुआ तब रामस्वरूप बाबू ने अपने ही शहर के एक खाते-पीते परिवार के लड़के सुशील के साथ उसका विवाह करा दिया।सुशील अपने पिता के साथ बिजनेस करता था और छोटी बहन विवाहित थी।मिनी ने जल्दी ही अपने व्यवहार से उस परिवार को अपना बना लिया।साल बीतते वो एक बेटी की माँ भी बन गई।
अब सुनयना जी बेटे का विवाह करना चाहतीं थीं।एक- दो जगह बात भी चला रहीं थीं,तभी एक दिन निशांत ने उन्हें नंदा के बारे में बताया।
अपने दोस्त पवन की शादी में निशांत की मुलाकात नंदा से होती है।उसके बात करने के तरीके और पहनावे से वो समझ गया कि नंदा एक शिक्षित और संभ्रांत परिवार से संबंध रखती है।दोनों के विचार मिले तो बातें-मुलाकातें भी होने लगी।उसने जब अपनी माँ को नंदा के बारे में बताया,
फिर तो उन्होंने तनिक भी देरी नहीं की और सपरिवार नंदा के परिवार से मिलने पहुँच गईं।नंदा के पिता ने जब लेनदेन की बात छेड़ी तब रामस्वरूप बाबू हँसते हुए बोले,” अपना बेटा देकर आपकी बेटी को लेने आये हैं..
इसके बाद भी कोई लेनदेन होता है क्या..।” सुनकर नंदा के पिता भावविह्वल हो गये। दोनों एक-दूसरे के गले लगे और एक शुभ मुहूर्त में निशांत और नंदा का विवाह हो गया।
ससुराल आकर नंदा जल्दी ही सबसे घुल-मिल गई।खासकर मिनी उसकी ननद के साथ सहेली भी बन गई थी।तीज-त्योहारों पर खरीदारी करते समय वो मिनी की पसंद का विशेष ख्याल रखती थी।
साल भर बाद नंदा एक बेटे की माँ बन गई।उसके कुछ महीनों बाद मिनी ने भी एक पुत्र को जनम दिया।
रामस्वरूप बाबू रिटायर हो चुके थे।अब उनका समय नाती-पोतों के साथ खेलने में बीतने लगा।मिनी अपने बच्चों में व्यस्त हो गई।फिर भी समय निकाल कर जब भी वो अपने मायके आती तो उसे अपनी भाभी से उतना ही प्यार और सम्मान मिलता।सुनयना जी अपने भगवान से यही प्रार्थना करतीं कि मेरे बच्चे इसी तरह हँसते-मुस्कुराते रहें।
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो न तो स्वयं खुश रहते हैं और ना ही दूसरों को खुश देख सकते हैं।नंदा की भाभी सलोनी भी उन्हीं में से एक थी।नंदा जब भी अपने मायके जाती और अपने खुशहाल ससुराल की प्रशंसा करती तो उसकी माँ बहुत खुश होतीं लेकिन भाभी जल-भुन जाती थी।
सलोनी ने सोचा था कि बच्चे-वच्चे हो जाने के बाद नंदा और उसकी ननद के संबंधों में खटास आ जाएगी लेकिन जब उसने अभी भी नंदा के मुख से अपने परिवार वालों की तारीफ़ ही सुनी तब उसने प्यार-से नंदा के कान में सौतेलेपन का ज़हर घोलना शुरु कर दिया।
वो नंदा से कहती रहती कि तुम्हारी सौतेली सास बहुत तेज है…निशांत से मीठा-मीठा बोलकर अपना काम निकलवाती है..तुमसे तो प्यार का दिखावा करती है..तुम्हारी ननद तो अपनी माँ से भी चार कदम आगे है, वगैरह-वगैरह..।
पहले तो नंदा ने अपनी भाभी की बातों पर कान नहीं दिया लेकिन फिर…।कोई बात बार-बार दिमाग में डाली जाए तो फिर वो असर दिखाने लगती है।अब नंदा को अपनी सास-ननद में कमियाँ ही कमियाँ दिखाई देने लगी।वो उनसे खिंची-खिंची रहने लगी।कुछ पूछने पर गलत तरीके-से जवाव देती।मिनी का आना भी उसे अच्छा नहीं लगता।
बहू के बदले स्वभाव का कारण सुनयना जी समझ नहीं पा रहीं थीं।निशांत भी चकित था।उसने नंदा को समझाने की कोशिश भी की लेकिन…।मिनी ने कई बार अपनी भाभी को जवाब देना चाहा तब सुनयना जी उसे समझाया कि नंदा तुमसे बड़ी है..कुछ गलत बोल भी देती है तो तुम्हारा बड़प्पन इसी में है कि उसे अनसुना करके रिश्तों की गरिमा को बनाए रखो।मिनी हाँ-हूँ करके चुप हो जाती।
स्कूल की छुट्टी थी तो मिनी बच्चों को लेकर मायके आई हुई थी।वो माँ-पापा से बातें करने लगी।बच्चे आपस में खेल रहे थे, तभी एक खिलौने को लेकर वो आपस में झगड़ने लगे..एक-दूसरे का बाल पकड़ने लगे तो नंदा आ गई और मिनी के बेटे को डाँटने लगी।फिर तो मिनी ने भी उसे पलटकर जवाब दे दिया और अपनी माँ से बोली,
” अब मैं कभी नहीं आऊँगी..।” दोनों बच्चों को लेकर वो चली गई।सुनयना जी रोते हुए पति से बोलीं,” न जाने किसकी नजर लग गई है मेरे घर को..।” रामस्वरूप बाबू क्या कहते…घर के माहोल से तो उनका मन भी दुखी था।
ऑफ़िस से आने पर निशांत को पता चला कि मिनी नाराज़ होकर चली गई है तो उसे नंदा पर बहुत गुस्सा आया।वो नंदा से खिंचा-खिंचा रहने लगा जो उसके लिए असहनीय था।उसका मन बेचैन हो उठा तो वो अपनी माँ के पास चली गई और रोते-रोते अपने दिल का हाल बताते हुए बोली,” माँ..मैं तो मिनी को अपनी छोटी बहन-सहेली मानती थी
लेकिन आज उसने मुझसे ऊँची आवाज़ में बात की।इतना भी मान नहीं रखा कि मैं उससे बड़ी हूँ, उस पर से उन्होंने (निशांत)भी मुझसे बात करना बंद कर दिया…।” सब कुछ कहकर मिनी ने अपना मन हल्का कर लिया तब उसकी माँ उसके आँसू पोंछते हुए बोलीं,” बेटी…मिनी का एक जवाब देना तुझे बुरा लगा और तू जो इतने दिनों से उसे ताने देती आ रही है..
अपनी देवी समान सास की अवहेलना करती आ रही है..उसका क्या? तू बड़ी है..# रिश्तों की मर्यादा का ख्याल तो तुझे ही रखना चाहिए था।जिन लोगों से तुझे इतना प्यार-सम्मान मिला, दूसरे की बातों में आकर तूने उन्हें ही…।
ये सौतेला शब्द तेरे मन में आया कैसे…।निशांत सुनयना जी के कलेजे का टुकड़ा है।जब भी उनसे बात होती है तो वो पहले निशांत और तेरी बात करतीं हैं।बेटी…रिश्तों में विश्वास होना बहुत ज़रूरी है जो तेरी सास तुझ पर करती हैं पर अफ़सोस..तू चूक गई…।” नंदा की माँ उसे समझाती जा रहीं थीं और उसकी आँखों से झर-झर आँसू बहते जा रहें थें।वो बोली,” अब मैं क्या करूँ माँ..।”
” जिनका दिल दुखाया है, उन्हें मनाकर..उनसे माफ़ी माँगकर अपना बड़प्पन दिखा…।”
” जी माँ..मैं अभी जाकर..।” वह उठकर चली गई।घर आकर वो सीधे सुनयना जी के पास गई और उनसे अपने व्यवहार के लिए माफ़ी माँगी।फिर मिनी को फ़ोन लगा कर बोली,” अपनी भाभी को माफ़ कर दो मिनी..मैं कुछ देर के लिए भटक गई थी।”
मिनी मुस्कुरा कर बोली,” ऐसे नहीं..पहले मुझे चाट खिलाइये..फिर सोचूँगी..।”
” तुम आओ तो सही मेरी सखी..।” फिर दोनों हँसने लगीं।तभी निशांत ऑफ़िस से आया।नंदा को इतना खुश देखा तो माँ से पूछा,” ये चमत्कार कैसे..।”
सुनयना जी बोलीं,” सब ईश्वर की कृपा है बेटा..मेरी बहू घर वापस आ गई..तुम लोग ऐसे ही हँसते-मुस्कुराते रहना..एक-दूसरे का साथ निभाते रहना…चलिए जी, ज़रा अंश को पार्क में घुमा लाते हैं…।कहते हुए उन्होंने पोते को गोद में उठा लिया और रामस्वरूप बाबू के साथ बाहर चली गईं ताकि बेटे-बहू को एकांत मिल सके..।
विभा गुप्ता
# रिश्तों की मर्यादा स्वरचित,बैंगलुरु