“बहू यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है !!” – ब्रज बिहारी सिंह : Moral Stories in Hindi

सुलोचना आज बहुत खुश थी  कि उसे एक सुन्दर, रूपवती, गुणवती बहू मिली है । आज अपने इकलौते बेटे की शादी बड़ी धुमधाम से कर अपनी सबसे बड़ी जिम्मेवारी पूरी कर ली है । परिवार के सभी आगन्तुक बहुत प्रसन्न थे।आज उन्हें सुलोचना द्वारा एक आकर्षक 

गिफ्ट प्राप्त हुई थी ।

                  दिन बीतते गए । मुहल्ले में चारों तरफ सिर्फ सुलोचना की बहू (तान्या) की तारीफ हुआ करती, बाकी सभी सास अपने-अपने बहुओं की बुराई करती रहतीं। एक उच्च शिक्षा प्राप्त बहू पाकर सुलोचना भी अपने को धन्य समझती । वो फूले नहीं समाती ।

                  कुछ दिनों बाद सुलोचना को एक पोते की 

सुख प्राप्ति हुई । दो वर्षों तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा फिर पता नहीं किसकी नजर लग गयी ।

बहू का स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया । सास के सभी कार्य बुरे लगने लगे । यहाँ तक की सास बुरी लगने लगी ।

अब तो सास-ससुर भी उसे बोझ लगने लगे ।

                   दिन-प्रतिदिन अब तान्या अपने सास-ससुर में बुराईयाँ निकालने लगी । वह रोज अपने पति (सुरेश) के कान भरती । जान बूझकर झूठा आरोप लगाकर अपने सास-ससुर की छवि खराब करती । तान्या अपनी सहेलियों के बहकावे में आकर न्यूक्लियर परिवार की चाह रखने लगी जहाँ सिर्फ पति-पत्नी और बच्चे हों । बेटा भी धीरे-धीरे पत्नी की बहकावे में आ गया । उसे अपने माँ-बाप में कमियाँ दिखने लगी । 

                      ड्यूटी जाते वक्त सुरेश अपनी मम्मी से अकेले में कहा — ” मम्मी! तुम नाहक बेचारी तान्या को परेशान किया करती हो । घर के सभी काम तो वही करती है । बेचारी को आराम करने का फुर्सत भी नहीं मिलता । बच्चे को देखना, खाने-पीने का प्रबंध करना  तथा अन्य कई जिम्मेवारियाँ निभाती रहती है । तुमलोग बेकार उसे तनाव देते हो । तुमलोग कुछ दिनों के लिए गाँव चले जाओ । मैं भी शांति से रहूँगा और तुमलोग भी शांति से रहो ।”

                       बेटे के मुँह से ऐसी बातें सुन सुलोचना सदमें में आ गयी । उसे बेटे से ऐसी उम्मीद न थी । उसे पुराने दिन याद आने लगे ……!

                 ….” विवाह के 10 वर्षों बाद सुलोचना को

पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी । इस  बच्चे के लिए सुलोचना बहुत तपस्या की थी । पूजा-पाठ, व्रत-उपवास, डाक्टर-हकीम सभी कुछ की तब जाकर पुत्र (सुरेश) उसे मिला । सुलोचना उसे पलकों पे बैठाए रखती । सुलोचना अपने पति के साथ मिलकर उसकी  हर ख्वाहिशें पूरी करती । अच्छी शिक्षा देकर उन्होंने सुरेश को इंजीनियर बना दिया ।

सुरेश आज एक सरकारी कम्पनी में अच्छे पद पर पदास्थापित है । घर के काम-काज के लिए एक नौकर है। गाड़ी के लिए एक ड्राईवर है । फिर कमी किस बात की हो गयी।”

                         सुलोचना से रहा नहीं गया । उसने बेटे से कहा — ”  प्रतिदिन तुम्हारे पापा और मैं सुबह 4 बजे उठकर फ्रेश होने के बाद घर के काम-काज में लग जाते हैं । सुबह के नास्ते का प्रबंध लगभग कर देते हैं । सिर्फ गर्म-गर्म रोटियाँ बनानी बची रहती है । घर में झाड़ू-पोछा इत्यादि नौकर कर देते हैं। बहू के जिम्मे सुबह उठने के बाद बच्चे को तैयार करना और गर्म-गर्म रोटियाँ बनाना रह जाता है । बाजार से सब्जी, फल और राशन की खरीदारी भी लगभग हमलोग ही करते हैं । फिर परेशाना किस बात की रहती है बहू को…!

                         बेटा कुछ भी सुनने को तैयार नहीं ।

वो कुछ दिन एकांत अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रहना चाहता था ।  बेटे की जिद देखते हुए दोनों ने गाँव जाने का निर्णय कर लिया ।

                       जाते-जाते सुलोचना रूंधे स्वर में

कहा -“बहू यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है !!”

                       मम्मी-पापा के जाने के दो दिन बाद ही सुरेश को मम्मी-पापा की कमियाँ खलने लगी । दिनभर बच्चे की देखभाल मम्मी-पापा करते थे। वे घर के  लगभग 80% काम करते थे। अब तो सुरेश को कहीं घुमने जाना भी दुर्लभ हो चुका था । उसका पत्नी मोह भी धीरे-धीरे भंग होने लगा । उसे आत्मग्लानि होने लगी थी । अब किस मुँह से वापस बुलाए अभी ।

                       एक सप्ताह बाद तान्या को डेंगू बुखार हो गया। प्लेटलेट तेजी से घटने लगा । उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा । सुरेश के सास-ससुर भी बूढ़े हो चले थे । उनदोनों की तबीयत हमेशा खराब रहती थी । वे तान्या के लिए कुछ कर पाने की स्थिति में  नहीं थे । अंतत: परेशानियाँ बढ़ती देख सुरेश अपने मम्मी-पापा को तत्काल आने की विनती की ।

                         माँ आखिर माँ होती है। वे दोनों तुरत

वापसी की गाड़ी पकड़ ली । अस्पताल पहुँचकर बहू की अथाह सेवा की । दवा-दारू, नास्ता-पानी समय पर देती रही । बहू कुछ दिनों में बिल्कुल स्वस्थ हो गई ।

घर आते ही सास से लिपट गयी और जोर-जोर से रोते हुए  कहने लगी — ” जब तक मुझे माफ नहीं करिएगा तब नहीं छोड़ूँगी ।”  सुलोचना बोल पड़ी – ” मैं सास नहीं…तुम्हारी माँ हूँ ।”

                            सुरेश फिर से अपने माता-पिता

पत्नी और बच्चे के साथ खुशहाल जिन्दगी व्यतित करने लगा ।

                   ब्रज बिहारी सिंह

                   राँची, झारखण्ड

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