नीलिमा बेटा इधर आओ, देखो कौन आया है। नई नवेली दुल्हन नीलिमा अपनी सास सीमा जी की आवाज सुनकर हॉल में पहुंँची। वहाँ उसी की हमउम्र एक सुंदर सा लड़का हॉल में सीमा जी के पास बैठा हुआ था। देखो बेटा यह मेरी बड़ी बहन का बेटा समीर है। यह शादी में नहीं आ पाया था। नमस्ते…नीलिमा ने दोनों हाथ जोड़ दिए।
अरे क्या भाभी आप भी कौन से जमाने में जी रही हो। आपका इकलौता देवर हूँ, और उठकर नीलिमा के गले लग गया। नीलिमा को अजीब सा लगा। सीमा जी हंसकर बोली, बहुत शैतान है ये।ज्यादा परेशान मत करना अपनी भाभी को।
समीर की नौकरी उसी शहर में लगी थी। तो उसका आना-जाना उनके घर में लगा रहता था।नीलिमा उसे अपने भाई की तरह मानती थी। लेकिन समीर दिन-ब-दिन उसके साथ कुछ ज्यादा ही बेतकल्लुफ सा होता जा रहा था। द्विअर्थी बातें करना, कभी भी नीलिमा के गले लग जाना। नीलिमा ऐसे माहौल में पली-बढी नहीं थी। उसे यह सब अच्छा नहीं लगता था।
एक दिन उसने अपने पति राजीव से इस बारे में बात की तो वह हँसकर बोला। अरे नीलिमा वह दिल का साफ है। बस उसकी हंसी मजाक करने की आदत है। और देवर भाभी का रिश्ता तो अलग ही होता है। मुझे तो कोई भाभी मिली नहीं। उसे तो इतनी प्यारी सी भाभी मिली है। नीलिमा की तरफ शरारती अंदाज में देखते हुए राजीव बोला। चलो हटो तुमसे तो कुछ कहना ही बेकार है।
एक दिन नीलिमा रसोई में खाना बना रही थी। समीर ने पीछे से आकर उसकी आंँखें बंद कर ली। नीलिमा को लगा राजीव है, तो वह भी कुछ रोमांटिक सी होकर बोलने लगी। तभी समीर बोला, बस -बस भाभी ज्यादा नहीं। नीलमा पीछे हट गई उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। उसे लगा कहीं उसकी चुप्पी समीर को बढ़ावा तो नहीं दे रही है।
अगर मैंने कुछ भी कहा तो कहीं रिश्ते में खटास न आ जाए। नीलिमा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी दरवाजे की घंटी बजी। उसने दरवाजा खोला। तो सामने समीर की मम्मी यानी उसकी मौसेरी सास खड़ी थी। नीलिमा ने उनके पैर छुए और उन्हें अपनी सास के पास हॉल में ले आई। समीर भी वहीं था। सब हंसी मजाक और बातचीत में व्यस्त थे।
नीलिमा चाय बना कर ले आई। चाय रखते हुए उसके बाल आगे आ गये तो समीर उठा और बालों को पीछे करते हुए बोला। लाओ आपकी लटें मैं संवार देता हूंँ। सब हंस रहे थे। लेकिन समीर की मम्मी ने महसूस किया कि नीलिमा सकपका सी गई है।
उन्होंने तभी सोच लिया कि वे समीर से बात करेगीं। जब दोपहर को सब आराम कर रहे थे। तब समीर की मम्मी उसके पास गई। अरे मां आप। हाँ बेटा मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है। हाँ माँ बोलो ना। देखो बेटा मैं जानती हूँ तुम्हारे मन में कोई गलत भावना नहीं है। लेकिन सबके घर का माहौल अलग-अलग होता है।
सबका अपना व्यवहार होता है। बेटा हँसी-मजाक करना अच्छी बात है। लेकिन हर रिश्ते की अपनी मर्यादा होती है। यदि हम उस मर्यादा में रहकर व्यवहार करें तो हम रिश्तों को ज्यादा दिन सहेज कर रख सकते हैं। नहीं तो रिश्ते बिखरने में देर नहीं लगती। बेटा मैं नीलिमा की बात कर रही हूंँ। वह एक अलग परिवेश से आई है। किसी भी रिश्ते में जरूरी है कि एक दूसरे के लिए सम्मान की भावना बनी रहे। जब समीर की मम्मी उससे यह सब बात कर रही थी।
तब नीलिमा रसोई में किसी काम से जा रही थी। जब उसने अपना नाम सुना तो वह रुक गई। मम्मी मैं कभी भी इस मर्यादा को नहीं लाघूँगा। अपनी मौसेरी सास की बातों को सुनकर नीलिमा का मन उनके लिए कृतज्ञता से भर गया। उससे रूका नहीं गया और वह जाकर अपनी मौसेरी सास के गले लग गई।
बहुत धन्यवाद मौसी जी आपने मेरी परेशानी बिना रिश्तो को खराब किए इतनी आसानी से हल कर दी। मैं तो यही सोच कर घबरा रही थी कि मेरे कुछ कहने का क्या परिणाम होगा। कहीं अच्छे भले रिश्तों में दूरियां ना आ जाए। अरे इसमें धन्यवाद की क्या बात है। एक औरत दूसरी औरत को बहुत अच्छी तरह समझती है।
जरूरत है तो बस आगे बढ़कर एक दूसरे का साथ देने की। समीर बोला भाभी अन चाहे ही सही लेकिन मैं अपने व्यवहार के लिए आपसे माफी मांँगता हूँ।
अब मैं समझ गया हूं की मर्यादा में रहकर हम ज्यादा अच्छी तरह अपने रिश्ते संभाल सकते हैं। चलो तो इसी बात पर आज मेरे हाथ की चाय हो जाए। तीनों हँस दिये। समीर की मम्मी ने नीलिमा को प्यार से अपने गले लगा लिया। नीलिमा को भी उनमें अपनी मां की छवि नजर आई।
नीलम शर्मा