चिंता चिता एक समान – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

    “ अरे सरपंच साहब, आप यहां, तबियत तो ठीक है, कहलवा भेजते तो मैं हवेली में हाजिर हो जाता”, डा़ हेमंत ने गांव के सरपंच रघुनाथ जी को डिस्पैंसरी में देख कर कहा। 

डा. हेमंत अल्मारी से कोई दवाई लेने गए तो उन्होंने खिड़की में से देखा कि सरपंच साहब चुपचाप अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे है। उन्की इसी  सोच के डा. हेमंत और सब गांव वाले कायल थे। भला कौन सरपंच इस तरह लाईन में बैठता है। वो तो बिना इजाज़त के ही अंदर चले आऐगें। 

       “ अरे कुछ नहीं डा. साहब, थोड़ा खांसी बुखार था तो सोचा, दवाई भी ले लूंगा और आपसे मिलना भी हो जाएगा। और बाहर बैठ कर थोड़ी देर गांव वालों के हाल चाल जानने का मौका भी मिल गया”।

“ आप अपना काम कीजिए, मैं अपनी बारी पर ही अंदर आता हूं”। पांच मरीज उनसे पहले बैठे थे तो वो चुपचाप उन्हें देखने लगे। उन्हें  पता था कि सरंपच रघुनाथ अपने असूलों के पक्के है। अच्छे से चैक अप करवा कर जब वो जाने लगे तो यह पूछना न भूले कि सब दवाईयां है न स्टाक में, कुछ कमी हो तो बताना।

    “ आप के होते क्या कमी हो सकती है”, डा. हेमंत ने कहा।डा. हेमंत पिछले तीन साल से गांव की इस डिस्पैसरीं में अपनी सेवाएं दे रहे थे। पहले पहल तो उन्हें गांव में रहना अच्छा नहीं लगा, लेकिन गांव के सीधे साधे लोग, खुली हवा, शुद्ध वातावरण और ताजा दूध, सब्जी, फल और सरंपच का मधुर व्यवहार और कोई कोलाहल नहीं। 

     डा. हेमंत शहरों में ही पले बढ़े, वहीं की सुख सुविधाओं के आदी, लेकिन यहां आ कर उन्हें अच्छा लगा। टैक्नोलोजी तो हर जगह पहुंच चुकी है, गांव भी पुराने जमाने वाले गांव नहीं रहे।और फिर रघुनाथ जैसा काबिल , पढ़ा लिखा और जवान सरंपच हो तो कमी किस बात की। डिस्पैंसरी भले छोटी थी लेकिन जरूरत की दवाईयां वगैरह सरकार से मिलती रहती थी और कभी कम पड़ जाती तो रघुनाथ पंचायत फंड से या अपनी जेब से भी मंगवा देते थे। 

        ये ठीक है कि उच्च शिक्षा, बड़ी बीमारियों, आपरेशन वगैरह या और भी कई सुविधाओं के लिए शहरों में जाना भी जरूरी है। लेकिन आजकल आने जाने के विकसित साधनों के चलते देश तो क्या विदेशों की दूरिंया भी कम हो गई है। 

       डा़ साहब की बेटी सुरीली गांव के सरकारी स्कूल में ही पढ़ती थी , रोज दो घंटे का रास्ता तय करके आना जाना मुशकिल था। जब उन्की यहां पोस्टिंग हुई तो सुरीली चौथी में थी और उन्का पत्नी निधी भी शहर में किसी अच्छी प्राईवेट कंपनी में कार्यरत थी, एक साल तो वो वहीं रहे और डा़ साहब यहां गांव में, परतुं उन्हें सरकारी आवास और काफी सुख सुविधाएं वहीं पर मिल गई तो परिवार भी वहीं शिफ्ट हो गया।

         निधी अब घर से ही काम कर रही थी, महीने में दो चार बार आफिस जा आती थी, सुरीली को गांव के सरकारी स्कूल में ही एडमिशन दिलवा दी, बहुत सी एक्टीविटीज का ध्यान वो खुद ही रखते। अब निधी आठवीं में थी और सरंपच का बेटा राघव नौंवी में था। 

     डा़ साहब और सरपंच में दोस्ताना संबध थे, दोनों ही बहुत अच्छे और समाज भलाई का सोचने वाले नेक इंसान थे। समय की गति तो चलती रहती है। बारहवीं के बाद बच्चों को पढ़ाई के लिए शहर का रूख करना पड़ा। सरंपच साहब के पास विरासत में काफी जमीन जायदाद थी , खेती बाड़ी थी, दो बेटे थे, राघव छोटा था, बड़ा हरीश था। हरीश की पढ़ाई में खास दिलचस्पी नहीं थी तो उसने बारहवीं के बाद खेती बाड़ी के साथ साथ आढ़त का काम भी शुरू कर दिया था। 

   सरंपच साहब साहब चाहते थे कि खेती बाड़ी की आधुनिक तकनीक समझने के लिए  राघव उसी फील्ड में जाए । किस्मत की उसकी  एग्रीकल्चर कालिज में एडमिशन हो गई, रास्ता तो डेढ़ दो घंटे का था लेकिन वो गांव से रोज ही आता जाता।उधर सुरीली का सपना सी. ए. बनने का था तो उसे तो शहर में ही रहना पड़ा। सुरीली और राघव में भी बचपन से ही दोस्ती थी। इसी बीच डा़ हेमन्त का स्थानांतर किसी और शहर में हो गया लेकिन उन्का मिलना जुलना लगा रहता। 

       राघव और सुरीली की भी बातचीत होती रहती। सरंपच के बेटे हरीश की शादी पर डा़ साहब परिवार सहित गांव आए। सुरीली अब जवानी की दहलीज पर थी, उधर राघव भी ह्रष्ट पुष्ट तगड़ा नौजवान, वैसे भी गांव की आबो हवा में पला। बचपन के साथी तो थे परंतु अब सुरीली में नारी सुलभ लज्जा भी थी।किसी ने मुंह से तो  कुछ नहीं  कहा लेकिन आंखों ने आंखों से बहुत कुछ कह दिया।

       जशन के बाद सब वापिस अपने कारोबार में लग गए। एक दिन निधी ने हेमंत से कहा कि सुरीली की भी शादी की उमर हो चली है, राघव कैसा रहेगा, हर तरह से योग्य है। डा़ साहब को भी कोई आपत्ति नहीं थी। सुरीली की बातों से भी उन्हें लगता था कि वो राघव को पंसद करती है। 

      अभी तो बात यहीं पर खत्म हो गई। कुछ दिनों बाद संरपच का आना हुआ तो डा़ साहब को वो चितिंत से लगे। अब डा़ तो डा. ठहरे, चेहरे से ही नब्ज पहचान लेते है। न रहा गया तो पूछ ही लिया।असल में रघुनाथ आए भी इसी मकसद थे, उन्होनें बताया कि राघव गल्त संगत में पढ़कर नशा करने लगा है। बहुत समझाया पर अब बात उसके वश से बाहर है।

  डा़ साहिब ने कहा, “  दोस्त,देखो, आपकी चिंता तो जायज है, पर ऐसा भी नहीं कि इसका हल नहीं, अभी शुरूआत है, हम मिलकर इस पर विचार करेगें, और अच्छा ही होगा। अभी देर नहीं हुई, समय रहते ही सब पता चल गया”।

फिर कुछ रूक कर बोले,” चिंता मत करो, मैं तुम्हारे साथ हूं और डा़ भी हूं, मेरी जानकारी भी है। चिंता चिता एक समान,और वो नहीं करना”

और निधी को आवाज देते हुए बोले,” निधी, जल्दी से चाय लाओ भई और सरंपच साहब की पंसद के पनीर के पकौड़े भी” 

    संरपच रघुनाथ के चेहरे पर से चिंता की रेखाएं कुछ कम हो गई थी और डा़ साहब की बातों से उन्हें हौंसला मिला और तय हुआ कि जल्द ही वो राघव को किसी बहाने से लेकर आऐंगे।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

वाक्य- देखो, तुम्हारी चिंता तो जायज है।

Leave a Comment

error: Content is protected !!