शालिनी जी बेटी को एक लाख रुपये से भरा बैग देते हुए कहती है- देख दिव्या मैं तुझे ये बहू की नजरों से बचा कर दे रही हूं।
देख तू उससे जिक्र न करना। शालिनी जी के पास हमेशा बेटी आती और किसी न किसी बहाने से पैसे ले जाती है। और दिव्या को पैसे देते देख उनकी स्वाति बहू कहती- मम्मी जी ये क्या….बहू करें सेवा और बेटी को मिले मेवा !!क्या ये छिपा कर बेटी को पैसे दे रही हो। माना कि ये पैसा आपका है, पर बुरे वक्त के लिए तो जोड़ कर रखिये, माना कि आपको दीदी से बहुत प्रेम है।
और आप अपनी बहू को कुछ समझती ही नहीं हो? देखना एक दिन आप पछताएंगी, जब आपकी ही बेटी आपकी तिजोरी खाली कर देगी।
कुछ दिन पहले ही गाँव का मकान बिका था। उसी पर उनका हक था। पति स्वर्ग सिधार चुके थे। और उनका बेटा बहुत सीधा होने के कारण कुछ बोलता न था। वह एक किराना की दुकान चलाता है।
फिर एक दिन बहू स्वाति को रिश्तेदार के यहाँ शादी में जाना होता है। तो वह शालिनी जी को कहती- मम्मी जी आप मुझे लंबा वाला हार दे दीजिए। मेरी सिल्क की साड़ी के साथ बहुत अच्छा जंचेगा। जब तक मैं अपनी चूड़ियों का सेट बना लेती हूँ। तभी शालिनी जी सोच में पड़ जाती है ,और सोचती है कि मैंने हार तो दिव्या को दे दिया क्या कहूँ। तभी स्वाति उन्हें हिला कर कहती क्या हुआ मम्मी जी क्या सोचने लगी??
तब वो हड़बड़ाहट में कहती -कुछ नहीं…. कुछ नहीं
तब उनकी बहू स्वाति कहती- मम्मी जी जल्दी से निकाल दीजिये हार…. इतने में वो कहती ,अरे स्वाति जमाना बड़ा खराब है ,भारी हार पहनने की क्या जरूरत,कोई हल्का सा ही पहन ले। भारी हार में जोखिम काहे उठा रही है?
फिर स्वाति तपाक से बोली-मम्मी जी घर की शादी में ही सोने के जेवर न पहनू क्या??? मुझे भी समझ है, संभाल कर पहनूंगी। प्लीज निकाल दीजिये, मुझे देर हो रही है।
तब वो कहती- मेरा बड़ा हार दिव्या के पास है ,उसे दे दिया है तभी चौंकते हुए स्वाति कहती- क्या!!!?
इतना सुनकर वो कहती -इतना चौंकने वाली क्या बात है ,मेरे जेवर मैं चाहे जिसे दूं।
तब स्वाति कहती ये क्या मम्मी पहले भी आप दीदी को हाथ की चूड़ी भी दे चुकी हो और अब हार भी……
क्या बहू का कोई हक नहीं सास के जेवर पर… ???
उसी समय शालिनी जी कहती – मेरी बेटी को मैनें जन्म दिया है तो क्या उसे मेरे गहने पहनने है ,तो ना दूं…..
उसकी शादी कर दी तो क्या उसकी सारी इच्छाएं मार दूं???
इतने में स्वाति बोली -और मेरी इच्छा का क्या …वाह मम्मी वाह मम्मी…. आप बड़ा मोह कर रही हो तो रहो उनके पास….और वो आपके खर्च के साथ आपके नखरे उठाए….. उन्हें भी पता चले कि सेवा क्या होती है, बातें करके गहने पैसे लेना कितना आसान है, सेवा भी करे, तब तो उन्हें जानूं,अगर आपकी नजर में बेटा बेटी बराबर है तो बराबर से फर्ज भी निभाए।
तब वो कहती-कैसी बातें कर रही स्वाति…कोई मां कैसे बेटी की ससुराल में रह सकती है!!!
तब स्वाति कहती- मम्मी बुरा न मानना आप जो भर – भर के बैग में पैसे सोने चांदी दे रही हो वो कभी मांग कर देखना फिर समझ आएगा।
चलो मैं क्यों बोल रही हूँ। जब आपके पास कुछ न बचेगा तब समझ आएगा।
तो इतना सुनकर शालिनी जी विश्वास के बल पर कहती – ना ना मेरी बेटी ऐसी ना है….
तब शालिनी जी को स्वाति कहती देखते है….. आने वाला समय ही बताएगा…. खैर…..
कुछ समय बाद बेटे का एक्सीडेंट हो जाता है…….
अब स्वाति और शालिनी को इलाज के लिए पैसे की जरूरत होती है….
शालिनी और स्वाति के एकाउंट में इलाज के हिसाब से पैसे नहीं होते हैं। बेटे के एकाउंट में होते है , पैसे निकालने में समय लग सकता है ये सोचकर तब शालिनी जी दिव्या को फोन लगाती तो वह फोन नहीं उठाती है।
उसके बाद शालिनी जी दामाद को फोन लगाती है, और
पूछती हैं – अरे दामाद जी दिव्या फोन क्यों नहीं उठा रही है?
तब वो कहते – पता नहीं क्यों नहीं उठा रही है, मैं काल लगाकर देखता हूँ, फिर उनके दामाद अंगद जी कहते- मां जी मेरा भी काल नहीं उठा रही है,घर जाकर बात कराता हूँ।तब वो कहती है – रोहन का एक्सीडेंट हो गया है, आप उससे कहिए मुझसे बात करे। उसके दामाद जी कहते – अरे कैसे हुआ!!
तब वो कहती दामाद जी आपके साले साहब दुकान का सामान ला रहे थे, तभी टक्कर लग गयी।
ये तो अरे बहुत बुरा हुआ !! वो परेशान होकर कहते -हांं माँ जी ,मैं किसी भी तरह आपकी बात कराता हूँ।
तब वो घर जाकर शालिनी जी से दिव्या की बात कराते हैं, दिव्या कहती -हां माँ बोलो किसलिए फोन कर रही थी।
तब वो कहती क्या तुझे नहीं पता कि तेरे भाई का एक्सीडेंट हो गया है। तुझे कितने फोन किए, और तूने एक बार भी दोबारा फोन करने की जहमत नहीं उठाई।तभी वो चौंकते हुए बोली क्या !!!?कैसे……..
तब शालिनी बताती है दुकान के लिए सामान लेकर तेरा भाई एक्टिवा से आ रहा था।
तभी अचानक बस से टक्कर हो गई।
अब कैसे भैया मम्मी….वो हॉस्पिटल में भर्ती है और दिव्या सुन हमें पैसों की जरूरत है,मैनें तुझे दो लाख दिए थे , वो ले आ …जमा करना पड़ेगा।
तब दिव्या कहती – कैसे पैसे मम्मी …क्या कह रही हो…वो बचे है क्या!!ये सोच रही हो, अब मेरे पास नहीं है,आपने कब कहा कि लौटाने है मुझे पैसे …..
तब ये सुनकर शालिनी धक्क रह जाती है!!!
उधर रिसेप्शन पर स्वाति का रो रो कर बेहाल है…….
वह कभी इस डॉक्टर से कभी दूसरे डॉक्टर से फीस कम करने की मिन्नते कर रही है…..
वो कहती है- डॉक्टर साहब इलाज चालू कीजिये। तब वह अपने हाथ की चूड़ी बेचने को शालिनी जी को कहती है। तब शालिनी जी कहती – नहीं दिव्या तू मत निकाल हाथ से ये चूड़ी …हाथ सूने करना अशुभ होता है,मैं अपनी चूड़ी बेचकर इलाज कराऊंगी। अभी दिव्या से बोलती हूँ। जैसे तैसे बस इलाज चालू हो जाए।
तब वो जैसे ही दिव्या को फिर से फोन लगाती है तभी वह सामने से हॉस्पिटल में आती है ,तब वो कहती – दिव्या दामाद जी कह दे, मेरी चूड़ी और हार ले आए। या नकद कैश ले आए। तुरंत ही वह तैश में कहती – कैसी चूड़ी मम्मी …
वो चूड़ी मेरी है ,अब आप ने मुझे दे दिया है। तब वे कहती- देख दिव्या रोहन की स्थिति बहुत नाजुक है। उसे रखकर ही पैसा जमा कर पाएंगे। मैंने स्वाति तक को पहनने न दी कि तेरा मन था तो मैंने तुझे दे दी, और तू छह महीने से रखी है मुझे जरूरत नहीं लगी तो मैनें नहीं मंगाई। और अब तू ऐसा बोल रही है।
तब वह कहती- मम्मी मेरी शादी में वैसे ही हल्के गहने दिए और अब वापस ले रही हो। तब शालिनी जी कहती-अरे बेटी समय की नजाकत को तो समझ…..
देखो मम्मी अभी तो दे दूंगी जैसे भैया ठीक हो तो मुझे लौटा देना।
अरे ,दिव्या कैसी बात कर रही है, तू मेरा खून है, इसलिए तुझ पर विश्वास करके पहनने दी थी। जितना हमें देना वो तुम्हारी शादी में दे चुके समझी। तब वो कहती नहीं मंगवाती चूड़ी मैं इनसे ..
जो करना है ,सो कर लो।
तब शालिनी जी बोली – हे भगवान !
ऐसी बेटी किसी को न दे। एक मैं हूँ ,जो तुझ पर हर वक़्त ममता लुटाती रही और एक तू है ,जो रिश्तों की मर्यादा ही भूल गयी। रख ले चूड़ी, हार… अब से मुझे माँ मत कहना…… तेरे लिए पैसे, चूड़ी, हार हम सब से बढ़कर हो गये हैं। ऐसी कौन सी माँ होगी बेटे का साथ ना दे। मैंने बहू को तेरे से पीछे रखा, और आज उसका ये इनाम मिला,
मेरे लिए बेटा -बेटी एक बराबर है, बहू भी मेरे लिए कम ना है, उसी ने मेरी इतने सालों से सेवा की है, तेरा भाई इतना सीधा कि उसने कभी उफ तक नहीं की है, जो मैंने कहा वो तुझे तेरे भाई ने दिया। मुझे नहीं पता था तू इस तरह रंग बदलेगी ।
तभी दिव्या कहने लगी – ये क्या कह रही हो? माँ मुझसे गलती हो गई। मुझे तो ये एहसास ही नहीं हुआ कि मैं कितनी बड़ी गलती कर रही हूँ। ये बात मेरे पति को भी नहीं पता चलनी चाहिए।आपका हार और कंंगन मेरे पास है, उन्हें ये पता था कि मैंने पहनने लिया है,पर वो ये नहीं जानते कि मैंने आपको लौटाया नहीं है, वे ज्यादा नहीं बोलते है, अगर उन्हें ये बात पता चली तो पता नहीं वो मेरे साथ कैसा व्यवहार करेंगे।
ऐसे में तभी स्वाति बोली – मम्मी जी इनका खून रुकने का नाम नहीं ले रहा है ,मम्मी जी पहले ही इतना खून बह चूका है कहीं से पैसों का इंतजाम हुआ कि नहीं जल्दी करो मम्मी…नहीं तो मैं अपने पापा से बात करती हूँ,जल्दी पैसा जमा करना है, वैसे ही इतना समय हो गया है।
तभी उसकी ननद बोली – भाभी भाई जल्दी ठीक हो जाएगा ,आप चिंता मत करो मैं तुम्हारे जीजा जी को अभी बोलती हूँ वो प्रबंध कर देंगे। तभी वो अपने पति को फोन करके कहती – सुनिए भाई के बारे में आपको पता है ,अभी एडमिट करने के लिए पचास हजार डिपाजिट करने है ,जल्दी आकर आप जमा कर दो।
तभी वो कहते- ये भी कहने वाली बात है। मैं तुम्हें छोड़कर बैंक ही गया था, मैं बाहर ही हूँ ,बस आ गया….
तभी रोहन का इलाज होने लगता है। एक्सरे वगैरह सब होता है, उसमें पता चलता है कि पैर फैक्टर हो चुका है। दाए तरफ हाथ में गहरी चोट आई है। माथे में भी खून बह चुका है ,सब टेस्ट होने लगते हैं। इस तरह इलाज के पंद्रह दिन बाद डिस्चार्ज होता है।
और शालिनी जी के बेटे का इलाज का प्रबंध दामाद जी के कारण हो पाता है। और वह ठीक होता है।
रोहन और स्वाति दोनों आज दीदी और जीजा जी को धन्यवाद करते हैं ,तभी दिव्या कहती- ” मैं तो अपने लालच में अंधी हो चुकी थी। वो तो माँ ने मुझे एहसास कराया ,तब मेरी आंखें खुली, नहीं तो मैं रिश्तों की मर्यादा ही भूल चुकी थी ।
आज मुझे एहसास है कि शादी के बाद बेटी पराई ही होती है। ज्यादा लाड़ प्यार के कारण मैं माँ के दिए पैसे और गहने पर अपना हक समझ बैठी, मेरी वजह से भाभी आपकी वो लंबा वाला हार पहनने की इच्छा रह गयी। मैं कल ही वो हार भिजवा दूंगी।”
तभी शालिनी जी कहती- जो पैसे लिए थे ,वो अब मत लौटाना दिव्या….तब वो भावुक होकर अपनी माँ से गले लगकर बोली – माँ आपने तो हमेशा साथ दियाही दिया ,मैं ही रिश्तों की मर्यादा भूल गयी। अब समझ आ गया कि रिश्ते दोनों ओर से निभाए जाते हैं एक तरफा नहीं।
तभी माँ भी बोली – ” जो बेटी भाई भाभी के दर्द को ना समझे तो वो कैसे मायके की देहरी में रह सकती है,इसलिए सदा अपने फर्ज भी निभाने चाहिए। मेरी भी गलती है मैनें तुझे जरुरत से ज्यादा अहमियत दी। और स्वाति को नहीं…तभी तो आज दिव्या तेरे से इतनी बड़ी गलती हो रही थी। तुम दोनों बच्चों हमेशा एक दूसरे का साथ देना,
आपसी रिश्तों में पैसे को बीच में मत लाना। सदा रिश्तों की मर्यादा बनाए रखना। तभी सब दिव्या के साथ रोहन और स्वाति एक साथ कहने लगते ये भी कोई कहने वाली बात है। पहले जो गलती हो गई, वो थोड़े ही होगी। और स्वाति भी दिव्या का हाथ थामकर कहती- थैंक्स दीदी जो समय रहते आपने साथ दिया। पता नहीं,, नहीं तो क्या होता।
तब शालिनी जी कहती -अंत भला तो सब भला। इस तरह सबकी हंसी गूंजने लगती है।
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया
#रिश्तों की मर्यादा