रूपा किचन में खड़े-खड़े अपने आंखों से बहते हुए आंसुओं को रोकने की कोशिश कर रही थी ,लेकिन यह आंसू रुक ही नहीं रहे थे और रूपा सोच रही थी कि उसका पति आदित्य अगर आज जिंदा होता तो कितना अच्छा होता उसे इतनी सारी बातें नहीं सहनी पड़ती ….|
रूपा निम्न मध्यम वर्ग परिवार से थी उसका पति आदित्य एक डॉक्टर के घर में ड्राइवर था, उसे जितने भी पैसे मिलते उसमें वह अपनी पत्नी और बच्चों को बहुत खुश रखता | सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था | लेकिन तभी अचानक एक कार दुर्घटना में आदित्य की मौत हो जाती है | रूपा के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पडता है ,
और वह फूट-फूट कर रोने लगती है पति के जाने के बाद रूप के आगे पीछे कोई भी नहीं था| जो उसका और उसके बच्चों का देखभाल करता, इसीलिए रूपा आदित्य के जाने के बाद अपने आप को संभालते हुए अपने लिए नौकरी खोजना शुरू कर देती है|
बच्चों के पालन पोषण की रूपा को बहुत चिंता होती ,इसी कारण वो रात_ रात भर सो नहीं पाती ,एक महीने ऐसे ही बीत गए ,उसे कोई नौकरी नहीं मिली ,एक दिन डॉक्टर साहेब और उनकी पत्नी रूपा के घर आए ,उसका हाल पूछने और कुछ रुपए देने , डॉक्टर साहेब ने रूपा से कहा ये कुछ पैसे है तुम्हारे काम आयेंगे
तुम रख लो और किसी भी सहायता की जरूरत होगी तो मुझे बताना | तभी रूपा ने कहा नहीं साहेब मैं ये पैसे नहीं ले सकती मेरे पति के पास भले ही पैसे ज्यादा नहीं थे लेकिन वो कभी किसी से हराम का पैसा नहीं लेते थे| अगर आप सच में हमारी मदद करना चाहते है तो आप मुझे कोई काम दिला दीजिए|
रूपा की ये बात सुनते ही डॉक्टर साहेब मुस्कुराए और बोले तुम्हे काम करने के लिए कहीं और जाने की क्या जरूरत है ,मुझे भी भरोसेमंद इंसान की खोज थी जो मेरी मां की देखभाल करे घर का खाना बनाए ,तो मेरे लिए तुमसे ज्यादा भरोसेमंद इंसान कौन होगा तुम्हारा पति तो मेरा सबसे वफादार ड्राइवर था |
तुम अपने बच्चों को भी मेरे घर ले चलो वहां पर मैने घर में काम करने वालों के लिए कमरे भी बनवाए हैं तुम लोग वहीं रह लेना तुम्हारे बच्चों की फीस मै जमा कर दिया करूंगा | और हां मैं तुम्हारे ऊपर कोई अहसान नहीं कर रहा हूं इसमें मेरा ही फायदा है ,मेरी मां दिन भर अकेले रहती है तो उसकी भी देखभाल अच्छे से हो जाएगी |
डॉक्टर की ये बातें सुनते ही रूपा खुश हो गईं , मानो उसके सिर का भार हल्का हो गया हो ,
और रूपा अपना सामान पैक करके बच्चों को लेकर डॉक्टर साहेब के साथ उनके घर रहने आ गई,डॉक्टर साहेब की मां को अपने बेटे और पैसे दोनों पर बहुत घमंड था, वो नौकरों से सीधे मुंह बात नहीं करती थीं ,और डॉक्टर साहेब अपनी मां से बहुत प्यार करते थे ,इसलिए उन्हें कभी भी उनके गलत व्यवहार पर टोकते नहीं थें,
वो रूपा से बोले तुम इसे अपना घर ही मान कर रहना , तभी उनकी मां बोल पड़ी हां _हां तुमने यहां धर्मशाला जो खोल रक्खा है, मैं तो कहती हूँ कि तुम हम सब को लेकर रोड पर चले चलो और रोड के सारे भिखारियों को इस घर में रख दो…..ऐसा बोलते हुए डॉक्टर साहेब की मां गुस्से से अपने कमरे में चली गई ,
डॉक्टर साहेब ने रूपा से कहा तुम मां की बातों का बुरा मत मानना वो तो बस ऐसे ही बोलती रहतीं है ,और अपनी पत्नी से कहा कि आप रूपा को उसका कमरा दिखा दीजिए |
रूपा को डॉक्टर साहेब के घर में रहना अच्छा नहीं लगता था ,क्योंकि उनकी मां हमेशा उसके लिए” अंगारे उगलती”(जली कटी सुनती) रहती थी , अपने पति को खा गई, बच्चों का परवरिश नहीं कर सकती तो पैदा ही क्यों किया , रोड के भिखारी ……और भी बहुत कुछ , लेकिन वो डॉक्टर साहेब और उनकी पत्नी के ब्यावर के वजह से कुछ कह नहीं पाती ,उनकी मां का भी अच्छे से ख्याल रखती
एक दिन डॉक्टर साहेब और उनकी पत्नी दोनों काम से कहीं बाहर गए हुए थें| और वो रूपा से बोलकर गए थे कि मां को
अकेला मत छोड़ना उनका ख्याल रखना|
रूपा उनके कहे अनुसार घर का सारा काम करती और उनकी मां का ख्याल भी रखती , डॉक्टर साहेब के जाने के बाद उनकी मां रूपा को और भी ज्यादा “जली_कटी सुनती” रहतीं,रूपा को उनकी बातें दिल में सूई की तरह लगतीं लेकिन वो चुप रहती|
एक दिन रूपा सब्जी लेने जा रही थी, घर के दूसरे नौकर रामू से बोली की मां जी का ध्यान रखना मै सब्जी लेकर आतीं हूँ,तभी रामू ने कहा ,”तुम उस बुढ़िया के लिए इतना सब कुछ करती हो वो तुम्हे तब भी ,”जली _कटी सुनाती रहती है “, छोड़ो मरने दो बुड्ढी को , तभी रूपा बोली नहीं _नहीं ऐसा मत बोलो वो हमारे मां के समान है
वो मुझे जो कुछ भी कहे ,डॉक्टर साहेब ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है उसका एहसान मैं सौ जन्म लेकर भी चुका नहीं सकती ,उन्होंने बहुत विश्वाश से मुझे इस घर में मां जी के देख भाल के लिए लाया है,ऐसा करने से मैं बस उनको धोखा ही नहीं दूंगी, भगवान के तरफ से दोषी भी हो जाऊंगी, मां जी दिल की बुरी नहीं हो सकती जिन्होंने अपने बेटे को इतना अच्छा परवरिश दिया है ,
वो मां कभी गलत नहीं हो सकती ,बस उनकी सोच थोड़ी अलग है , तुम जैसे लोग ही उन्हें ऐसा सोचने पर मजबूर करते हो ,आखिर डॉक्टर साहेब ने तुम्हारे लिए भी कितना कुछ किया है| तुम उनकी मां लिए ऐसा कैसे बोल सकते हो ?
तुम्हे पता है न कि डॉक्टर साहेब की जान मां जी में बसती है| रूपा की बातें सुनके रामू ने उससे बोला मुझे माफ कर दो मुझसे गलती हो गई |तुम मेरी बातें किसी से मत कहना, नहीं तो मुझे नौकरी से निकाल दिया जाएगा, रूपा बोली _तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया यही काफी है | तुम मां जी का ख्याल रखना मैं आतीं हूँ |रूपा की ये सारी बातें मां जी पर्दे के पीछे छिप कर सुन रही थी, और अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हो रहीं थी|
रूपा जब बाजार से घर आई तो जो उसने देखा वो सब देख कर उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था | वो छोटे छोटे कदमों से आगे बढ़ रही थी | तभी मां जी ने कहा रूपा तुम बच्चों का बिल्कुल ध्यान नहीं देती देखो ये दोनों चार दिन से स्कूल का काम बिना किए ही स्कूल जा रहें है , आज से मैं इन दोनों को पढ़ाऊंगी ,
रूपा एक टक से मां जी के तरफ देख रही थी| उसे लगा कि जैसे वो कोई सपना देख रही हो| तभी मां जी आगे बढ़ी और बोली रूपा मुझे माफ कर दो बेटी , जब तुम रामू से बात कर रही थी तो मैने तुम्हारी सारी बातें सुन ली थी| मैने तुम्हे बहुत कुछ कहा लेकिन तुम उसके बाद भी मेरा बुरा नहीं चाही तुम्हारे जैसे लोग इस दुनिया में बहुत मुश्किल से मिलते है|
दरअसल मै ऐसी नहीं थी लेकिन मेरे पति के मौत के बाद मै ऐसी हो गई क्योंकि उनकी मौत एक नौकर की लापरवाही से ही हुई थी | लेकिन मैं भूल गई कि तुमने भी अपने पति को खोया है और उसकी मौत मेरे घर की सेवा करते_ करते हुई है फिर भी तुम्हें हम लोगों से कोई शिकायत नहीं है|
मां जी ने रूपा से कहा आज तुम्हारे व्यवहार ने मुझे एक सीख दी ,कि हर इंसान एक जैसा नहीं होता किसी दूसरे इंसान की गलती की सजा कभी भी किसी दूसरे को नहीं देनी चाहिए|
उस दिन के बाद से रूपा डॉक्टर साहेब के घर में नौकर नहीं घर की सदस्य बन गई थी ,उसके बच्चों को खेलने खाने पढ़ने लिखने की पूरी छूट थी| सब एक परिवार की तरह रहते मां जी का तो कोई काम रूपा के बिना होता ही नहीं|
यह सब देखकर डॉक्टर साहब ने भी चैन की सांस ली , और खड़े-खड़े मुस्कुराते हुए सोचने लगे की आदित्य के बच्चों को अब मैं पढ़ा लिखा कर कुछ बना सकूंगा आखिरकार उसने अपनी जिंदगी हमारे परिवार को समर्पित कर दी है|
प्रीती श्रीवास्तवा