इंसान हूं रोबोट नहीं – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

आज आफिस से निकलने में श्रुति को पूरा एक घंटा लेट हो गया था । कुछ काम आ गया था जिसको पूरा करना था आज के ही आज बांस का आदेश था कि फाइल आज पूरी होनी चाहिए।

फिर बाहर आकर बस पकड़ने में भी देरी हो गई क्योंकि रोज जो एक घंटे पहले बस मिलती थी उसे आफिस में देर होने से निकल गई थी।अब उसे दूसरी बस का इंतजार करना पड़ा था पूरे तीस मिनट।बस से उतर कर श्रुति जल्दी जल्दी घर की ओर कदम बढ़ा रही थी।

                घर में घुसते ही दरवाजे से सासू मां और आदित्य के हंसने की आवाज आ रही थी । लेकिन श्रुति को घर पहुंचते ही घर के काम याद आ रहे थे। जैसे ही श्रुति ने कमरे में प्रवेश किया तो देखा कमरे में बैठकर सासू मां और आदित्य कैरम खेल रहे थे और श्रुति का दो वर्ष का बेटा गोलू वहीं खेल रहा था । श्रुति को देखकर वह आकर मां से लिपट गया।

तभी सासू मां बोली पड़ी ये लो भी दिनभर में ख्याल रखूं गोलू का और बस मां के आते ही मां अपनी हो जाती है और हम सब पराए ।ऐसी बात नहीं है मांजी दिनभर बाद देखता है न तो आकर लिपट जाता है श्रुति बोली।आज देर क्यों हो गई श्रुति हम लोग कब से चाय के लिए बैठे हैं अच्छा अब जल्दी से चाय बनाओ और हां जो कल आलू के पापड़ लिए थे न ज़रा उसको भी तल देना।

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आफिस की थकान भूलकर , पर्स कमरे में रखकर बिना कपड़े बदले श्रुति चाय बनाने रसोई में चली गई। रसोई में देखा कि सिंक में ढेर सारे जूठे बर्तन रखें है और सारी रसोई फैली पड़ी है । श्रुति का माथा गर्म हो रहा था वो चाय बनाते बनाते सोच रही थी काश मैं इंसान न होकर एक रोबोट होती तो अच्छा था ।

इस घर में मुझे तो कोई कुछ समझता ही नहीं है । कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा। चाय छान ही रही थी कि सासू मां की आवाज आई अरे श्रुति देखो बारिश आ रही है बूंदें पड़नी शुरू हो गई है कपड़े भीग जाऐगे बाहर बालकनी में पड़े है  उठा लेना।

श्रुति भुनभुनाते हुए कपड़े उठाने चली गई।सबको चाय देकर वो अपने चाय का कप लेकर कमरे में चली गई। चाय पीते पीते गोलू से खेलने लगी वो अपनी तोतली बोली से बातें कर रहा था । थोड़ी देर आराम करने के चक्कर में उसकी कब आंख लग गई पता ही न चला।

             श्रुति श्रुति जब उसके कानों में आवाज आई तो उसकी आंख खुली , आदित्य आवाज दे रहा था कि खाने का समय हो रहा था और तुम्हें सोने की पड़ी है ।अब खाना बनेगा भी । श्रुति थोड़ा उठने में आना कानी कर रही थी आदित्य जोर से चिल्ला पड़ा अब उठो भी खाना कौन बनाएगा।आज थोड़ी थकान सी हो रही है काम करने की इच्छा नहीं हो रही है ।

ये क्या बात हुई काम करने की इच्छा नहीं हो रही तुम नहीं करोगी तो कौन करेगा। हां मैं नहीं करूंगी तो कौन करेगा । आदित्य घर में मांजी भी तो है थोड़ा बहुत तो वो भी कर सकती है ।अब मैं अकेले कितना करूं घर आफिस । इतने में मांजी आ गई क्या कहा तुमने इस उम्र में अब घर का काम करूंगी , खाना बनाऊंगी ।

तुम्हें किस लिए लाए है बुढ़ापे में घर का काम बहुएं करती है न कि सासे। तभी श्रुति बोली पड़ी हां हां पता है आप लोग बेटे की शादी करके एक बहू नहीं नौकरानी लाते हैं जो बस इसलिए होती है कि सारे घर का काम करें सबकी जी हुजूरी करें और अगर आर्थिक परेशानी हो तो नौकरी भी करें ।सभी बहुएं काम करती है तू क्या अकेली ऐसी है क्या कि काम कर रही है।

लेकिन मैं तो आफिस भी करूं और घर का भी करूं और जो भी कोई आर्डर करें बस रोबोट की तरह उसे पूरा करूं ।और मांजी आप भी अभी इतनी बूढ़ी नहीं है कि घर का कुछ काम नहीं कर सकती ।सारे काम मुझे ही मुंह चिढ़ाते रहते हैं हर काम मेरे ही नाम लिखा होता है करने को ।मै दिनभर आफिस का काम करूं और वहां से आते ही घर का करूं ।

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कभी मुझे भी तो चाय का एक कप मिल जाए मैं क्या इंसान नहीं हूं क्या नहीं यदि मुझे आफिस से आने में देर हो गई तो आदित्य तुम भी चाय नहीं बना सकते क्या मेरा ही इन्तजार है रहा है कि वो आएगी तो ही चाय बनेगी नहीं तो नहीं । आदित्य खड़ा खड़ा सब सुन रहा था ।अब तो मुझे ही कुछ फैसला करना पड़ेगा श्रुति मन ही मन बुदबुदाई।

        दूसरे दिन सुबह जब श्रुति होकर उठी तो बड़े आराम आराम से हर काम कर रही थी वरना तो रोज हबड हबड मची रहती थी ।एक तरफ खाना नाश्ता गोलू को भी देखना अपना और आदित्य का लंच बॉक्स तैयार करना, खुद को भी तैयार होना एक मिनट की भी फुर्सत नहीं रहती थी श्रुति को। लेकिन आदित्य ने देखा कि श्रुति ऐसा कुछ नहीं कर रही है ।

ये रहा आपका लंच बॉक्स डाइनिंग टेबल पर टिफिन रखते हुए श्रुति ने आदित्य से कहा।और तुम्हारा लंच बॉक्स,और ये क्या नौ बज गए और तुम अभी तक गाऊन में घूम रही हो आफिस नहीं जाना क्या। क्या आज छुट्टी ली है क्या । नहीं आज छुट्टी नहीं हमेशा के लिए छुट्टी ले रही हूं । क्या मतलब तुम्हारा ,मैं रिजाइन दे रही हूं नौकरी से क्या,,,,,

कहते हुए आदित्य के बोल जैसे हलक में ही अटक गए । हां मैं रिजाइन दे रही हूं पर क्यों घर कैसे चलेगा तुम्हें मालूम है न कि सिर्फ मेरी सैलरी से घर नहीं चल सकता हम दोनों की सैलरी से घर चलता है तब जाकर खर्चे पूरे होते हैं ।तो मैं क्या करूं श्रुति बोली ये तुम्हारा मसला है , क्या मतलब ये मेरा मसला है । साफ़ साफ़ बताओ कि क्या बात है ।

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श्रुति बोली अरे भाई मैं भी इंसान हूं रोबोट ंनहींजो दिन भर आफिस में करूं यहां से सब करके जाऊं और आऊं तो फिर से जुट जाऊं मैं पागल हो गई हूं कर करके । यहां घर में तुम हो मांजी है कोई मेरा थोड़ा भी हाथ नहीं बंटाता।एक कप चाय भी बनानी हो तो मैं बनाऊं। कोई काम वाली नहीं रख सकते कि क्यों कि हम इतना पैसा कमातें नहीं है तो क्या करूं मैं पागल हो जाऊं ‌।

क्या मैं ही सबकुछ अकेले ही करूं। इसलिए मैंने अब फैसला किया है कि मैं अब सिर्फ घर संभालूंगी और तुम आफिस । कोई अच्छी नौकरी देखो जिसमें सैलरी ज्यादा हो जिससे घर अच्छे से चल सके । इतना कहकर श्रुति  कमरे में जाकर मोबाइल लेकर बैठ गई।

           शाम को जब आदित्य आफिस से घर आया तो सीधे मां के कमरे में गया और श्रुति का फैसला सुनाया।पर बेटा तेरे अकेले तनख्वाह से घर की जरूरतें कहां पूरी हो पाती है वो तो है मां लेकिन श्रुति मान नहीं रही है ।हम लोग भी तो आखिर श्रुति पर ज्यादती कर रहे थे ।अब आपको और मुझे घर के कामों में श्रुति का हाथ बंटाना होगा नहीं तो बहुत मुश्किल हो जाएगी मां ।

फिर भाई बोली ठीक है बेटा और श्रुति के कमरे में आईं और बोलीं श्रुति बेटा नौकरी नहीं छोड़ नहीं तो बहुत प्राब्लम हो जाएगी लेकिन अब तो मैं अकेले सबकुछ नहीं कर सकती । ठीक है बेटा अब से मैं और आदित्य दोनों घर के काम में हाथ बंटाएंगे।तुम अकेली नहीं करोगी सबकुछ।तो ठीक है ये शुभ काम कर से ही शुरु हो जाना चाहिए नहीं तो मैं रिजाइन दे दूंगी।

              दूसरे दिन सुबह सासू मां उठी और दोनों का लंच बॉक्स बना कर दें दिया और अपने लिए भी दो रोटियां बना ली ।शाम को जब आफिस से आदित्य आया तो वो भी जाकर चाय बनाने लगा श्रुति बाद में आफिस से आती थी। जैसे ही श्रुति आई आदित्य ने चाय पकड़ा दी। श्रुति मन ही मन बहुत खुश हो रही थी।और कह रही थी अच्छा सबक सिखाया हमने परेशान करके रखा था इन लोगों ने ।और मां जी अच्छी खासी है काम कर सकती है लेकिन नहीं बहू जो है घर में तो कैसे काम करेगी नाक न कट जाएगी।अब सबको रास्ते पर लाकर श्रुति बहुत खुश थी।

              आफिस से आकर थोड़ा आराम करने के बाद जब श्रुति रसोई में गई तो सासू मां ने सब्जी बना ली थी,आटा भी गूंधा हुआ था , आदित्य सलाद काट रहे थे ‌‌‌‌‌‌‌‌‌श्रुति ने कहा चलिए मां जी आप दोनों लोग बैठिए मैं रोटियां सेंक देती हूं ।सासू मां बोली नहीं तुम और आदित्य खाओ मैं रोटी बना देती हूं । श्रुति बोली अब इतनी भी मौका परस्त नहीं हूं मैं मां जी आप बड़ी होकर बाद में खाएं और मैं पहले खा लूं ऐसे कुछ अच्छा नहीं लगता है।आप लोग बैठिए खाने तब तक मैं अपनी दो रोटियां सेक् कर आ जाती हूं खाने ।

       आज सब लोग इकट्ठे बैठ कर खाना खा रहे थे । हंसी खुशी का माहौल था सब एक दूसरे से हंसी मज़ाक कर रहे थे । माहौल काफी खुशहाल हो गया था । आपसी समझदारी से ।मैं रोबोट नहीं हूं समझे आप लोग हां हां,,,,,,,,।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

17 मई

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