भाभी – गरिमा जैन

एक दिन जब मैं एक दुकान पर कुछ सामान खरीदने गई तो अचानक भाभी का संबोधन सुनकर मैं चौक पर दुकान वाले को देखने लगी। वह मुझसे कह रहा था

“अरे भाभी जी पसंद न आए तो वापस ले जाइएगा “

मैं जैसे बहुत ही असहज हो गई ।भाभी, यह शब्द जो मुझे सुनने में बड़ा मीठा, बड़ा प्यारा लगता था ,आज अचानक इतने वर्षों के बाद यह शब्द कानों में पढ़ते ही कड़वाहट घोल गया ।

बात उस समय की है जब मेरी नई नई शादी हुई थी। ऐसे तो मेरे पति अपने मां-बाप की इकलौती संतान है पर उनके ढेर सारे ममेरे भाई बहन थे ।जब मैं विवाह के बाद अपने ससुराल गई तब सब मुझे भाभी भाभी कहकर बुलाते। जब भी किसी शादी समारोह में मैं जाती तो तो सब मुझे घेर लेते ,भाभी भाभी शब्द मेरे कान में पड़ते तो मुझे बड़ा अच्छा लगता ।मुझे बड़ा अच्छा लगता था कि कोई मुझे भाभी कहकर पुकारे। कई बार तो मेरे छोटे छोटे देवर मेरे पैर छूने लगते। मैं उन्हें क्या आशीर्वाद दू मुझे समझ में नहीं आता था  ,बात हंसी मज़ाक में खत्म हो जाती ।

फिर आई मेरी पहले देवर की शादी। मैं उसके लिए बड़ी उत्साहित थी ।घर में एकलौती भाभी होने के कारण मेरी बड़ी पूछ थी। सारी रसम मुझे ही करनी थी। काजल लगाई से लेकर हल्दी चढ़ाना ,कंगना खिलाना और ना जाने कौन-कौन सी रस्में। मैंने भी खूब अच्छे से तैयारी की थी ।अपनी होने वाली  देवरानी के लिए मैंने सुंदर सी साड़ी भी खरीद रखी थी। शादी बड़े अच्छे से बीत गई ,उसकी मधुर यादें मेरे मन में बसी रही ।जब मैंने एल्बम देखा तो मेरी तस्वीरें भी बहुत सुंदर आई थी। मामी सास ने मुझे बड़ी सुंदर सी सुरुचिपूर्ण साड़ी भी दी थी ।वह साड़ी मैंने बहुत संभाल कर रखी। मेरे पति कभी-कभी कहते कि सबसे ज्यादा दिल ना लगाया करो ,फिर मैं उनसे कहती क्यों ना लगाऊ यह सब अपने ही तो है ।

कुछ वर्षों के बाद मेरे दूसरे देवर की भी शादी पक्की हुई। मेरा उत्साह पहली शादी की तरह ही बरकरार था। मैंने सोचा भाभी होने के नाते मेरी खूब पूछ होगी। सब मेरे आगे पीछे फिर से घूमेंगे ।मैंने अपने लिए एक सुंदर सी प्याजी रंग की साड़ी बनवाई और होने वाली  देवरानी के लिए सुंदर सी साड़ी और कंगन लिए। उसको एक पैकेट में लेकर सुंदर सा गिफ्ट पैक किया और शादी के पहले की रस्मों में पहुंच गई।



उस समय मेरे देवर की सगाई का समारोह था। सगाई के समारोह के उपलक्ष में मेरी छोटी नंदिनी ने बड़ा अच्छा सा गाना बना कर उसमें सारे रिश्तेदारों का नाम लिख रखा था ।जिसका भी नाम लिया पुकारा  जाता वह  स्टेज पर जाता, उसे उपहार मिलता ,होने वाले  वर-वधू को आशीर्वाद देता। कुछ उपहार देता फिर खाना खाने चला जाता। इस तरह से मैं भी अपनी बारी का इंतजार करने लगी ।

लेकिन वह इंतजार जैसे खत्म ही नहीं हुआ ।मेरी प्यारी-प्यारी नंदे जिन पर मैं अपनी जान देती  थी ,उन्हें मेरी जो भी चीज पसंद आ जाए मैं पलक झपकते दे देती थी, उन्हें अपनी बहनों जैसा ही समझती थी पर ना जाने क्यों समारोह में सब मुझे भूल गए ।मैं अंत तक कुर्सी पर बैठी रह गई। मेरे पति ना जाने कहां काम में उलझे हुए थे ।अंत तक मेरी नंदो  ने मेरा नाम ही नहीं लिया ।भाभी के नाम पर तो अब नई नवेली देवरानी को ही पूछा जा रहा था।मेरी आंखों में ऐसे लगा आंसू आ जाएंगे। मुझे यही लग रहा था कोई मेरे आंसू देख ना ले। मैं वह गिफ्ट का पैकेट हाथ के लिए लिए बैठी रही ,अचानक पलट के देखा तो पूरा हॉल खाली हो चुका था ।कुर्सी पर सिर्फ मैं अकेली बैठी थी ।

मैं स्टेज की तरफ गयी कि उपहार तो दे ही दू। तभी मेरे कानों में जो वाक्य पड़े उसने मेरी आखिरी उम्मीद ही तोड़ दी ।कोई कह रहा था

“अरे अब तो अपनी सगी भाभी आ गई है तो ममेरी फुफेरी का क्या काम!

मैं उसके बाद वहां खड़ी नहीं रह पाई। मैं बार-बार इनको ढूंढ रही थी ।ना जाने यह कहां चले गए थे। मैंने वह पैकेट वहीं खड़े एक रिश्तेदार को पकड़ाया और वहां से  उल्टे पैर वापस आने लगी ।

तभी देखा मेरे पति मेरे लिए खाने की प्लेट लगाए मेरी तरफ आ रहे हैं ।उन्होंने मुझसे आकर धीमे से कहा

” इसलिए मैं तुमसे मना करता था कि ज्यादा  दिल ना लगाओ मैं बचपन से सब को जानता हूं कि सब कैसे हैं ।तुम भी ना जाने किन से दिल लगा बैठी थी ।

मुझसे उस दिन खाना ना खाया गया। मेरी गले में जैसे कुछ अटक गया था। मैं भरसक प्रयास कर रही थी कि मेरे आंखों से आंसू ना छलके और कहीं कोई उसे देख न ले।

उसके बाद कितनी ही शादियां आई गई पर मैंने सिर्फ शादियों में औपचारिकता निभाई। सिर्फ जय माल के समय मैं शादी में पहुंचती थी खाना खाती थी हंसी मजाक करती थी और सीधे घर वापस ।किसी भी शादी में मैं देर तक नहीं रुकी और न ही रस्में निभाई।

भाभी ,इस शब्द से मुझे बहुत प्यार था अब सुनने में इससे कड़वा शब्द मुझे कोई नहीं लगता।

समाप्त

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