जीना इसी का नाम है – पूनम सारस्वत : Moral Stories in Hindi

शादी से पहले बहुत समझदार व सुलझा हुआ व्यक्तित्व माना जाता था उसका । भाभी हो मौसी हो दीदी या बहन की दोस्त ही ,सब परेशानी में सलाह उससे ही माँगते थे । जब कभी वो कहती कि इस मामले(शादी, बच्चे आदि)  में मैं कैसे कुछ कह सकती हूं तो जबाब होता कि नहीं आपकी सलाह से हमेशा काम सही होता है इसलिए आपको बोलना तो पड़ेगा ही , और कुछ ऊपर वाले की कृपा कुछ उसके अनुभव और चीजों को सूक्ष्मता से ग्रहण करने की प्रवृत्ति के कारण वो जो सलाह दे देती वही काम कर जाती।

कभी किसी की शादीशुदा जिंदगी में समस्या आती  तो उस पर भी कॉउंसलिंग के लिए संजना से मिला जाता। कभी कभी उसे स्वयं भी आश्चर्य होता कि कैसे हर बार उसकी सलाह काम कर जाती है। वो मन ही मन सोचती कि अगर खुद में गट्स हों तो शादीशुदा जिंदगी में समस्या आएगी ही नहीं और ऐसा वो इसलिए सोच पाती थी कि जो उसे चाहता था वो कभी भी उसके साथ तर्क नहीं करता था । जो उसने कह दिया वह ठीक । इसलिए उसे लगता था कि प्यार में वो ताकत होती है कि सब कुछ ठीक किया जा सकता है इसके द्वारा।

पर जब शादी होकर उसी मनचाहे हमसफर के साथ वो ससुराल आ गई और तरह तरह की समस्याओं से सामना शुरू हुआ तो उसे समझ आने लगा कि किसी को सलाह देना अलग बात है और स्वयं उन परिस्थितियों से गुजरना बिल्कुल अलग बात होती है।

पहले जब कोई मित्र कहती कि यार मेरे पति मेरी बात सुनते ही नहीं तो उसे आश्चर्य होता था और कहीं न कहीं लगता कि कोई न कोई कमी इसकी तरफ से रहती होगी अन्यथा अपनी पत्नी की बात को ना सुने ये कैसे संभव है ।प्यार से कहना चाहिए तो पति हर बात को मानेगा यह उसका मानना था क्योंकि उसको पता ही नहीं था कि गृहस्थी में कितनी तिकड़म  कितने लोग लगा रहे होते हैं ,

और उनका सही समाधान होना बहुत ही मुश्किल होता है ,और कभी-कभी नामुमकिन भी होता है ।किसी किसी घर में तो यह होता है कि सास की अलग ही पॉलिटिक्स चल रही होती है और ऩनद देवर की अलग और जैसा कि हमेशा से होता आया है कि पत्नी क्योंकि के बाहर से आई हुई प्राणी है और बाकी सब अपने सगे ,इसलिए पति हमेशा अपने ही लोगों की सुनता है। पत्नी तो हमेशा ही बाहरी बनकर रह जाती है। बहुत खुश किस्मत होती हैं वह पत्नियां जिन्हें अपने पति का वास्तविक प्यार मिलता है।

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संजना महसूस कर रही थी कि धीरे-धीरे उसका पति उससे दूर होता चला जा रहा है ।इसका कारण भी वही था जो वर्षों से वह अपनी भाभी ,दीदी और सखियों से सुनती आई थी। सासू मां किसी न किसी तरह से कोई न कोई शिकायत पतिदेव से लगाती ही रहतीं थीं और उन्हें सिर्फ उन्हीं की बात समझ में आती थी। क्योंकि संजना के स्वभाव में ही नहीं था सफाई देना तो जो उन्होंने  कह दिया वही सच था वह कभी नहीं कहती थी कि उन्होंने गलत कहा या सही कहा। लेकिन क्योंकि उनकी हर बात उसे पता थी हर बात के पीछे का मकसद भी पता था

तो कहीं ना कहीं एक नफरत से संजना  उनके प्रति भर गई थी जिस कारण वह चाहकर भी मुँह  से ना मीठा बोल पाती थी और ना ही उनकी सेवा मन लगा कर करती थी और यही चीज दोनों पति-पत्नी के बीच जहर घोल रही थी ।पति को समझ नहीं आ रहा था की मां अपनी जगह और पत्नी अपनी जगह है इसलिए कुछ दिमाग और दिल का प्रयोग पत्नी के लिए भी करके देख ले शायद उसकी गलती उतनी न हो जितनी दिखाई जा रही हो पर वो पति ही क्या हुआ जिसने मां के लिए पत्नी का दिल न दुखाया।

उसने कभी नहीं सोचा कि जब पत्नी उसके लिए अपना घर छोड़ कर आई है तो  उसे भी पत्नी को  पूरी तरह से मन से  अपनाना होगा तभी तो वह पति से जुड़े रिश्तों को आदर व प्यार से अपनाएगी। संजना भी मन ही मन जिद पर अड़ी थी  कि अगर शर्तों के साथ  ही मुझे पति का प्यार मिलना है तो मुझे ऐसा प्यार बिल्कुल भी नहीं चाहिए और यही ज़िद दूरियों को बढ़ाती चली जा रही थी और इसका कोई समाधान संजना को नहीं दिख रहा था। उसे लगता था कि उसका पति मां को प्यार करता है अच्छी बात है

लेकिन मुझे अपमानित करता है अनदेखा करता है, मुझे मां के लिए टॉर्चर करता है यह बहुत गलत बात है। मुझे पत्नी का मान सम्मान उसने आज तक नहीं दिया है।हमेशा ही यह होता कि दोनों मां-बेटे अंदर ही अंदर सब कुछ निर्धारित कर लेते। किसके लिए क्या आना है? किसे क्या लेना देना है, सब कुछ दोनों को ही पता होता था नहीं पता होता तो संजना को , उसे ऐसा लगता कि वो बस इस घर में काम करने के लिए आई । काम करो और खाना खाओ बाकी घर की किसी बात से कोई मतलब न रखो ये सासू माँ का स्पष्ट कहना था।

जब तक मैं हूँ इस घर में मेरा हुक्म चलेगा जिसे परेशानी हो अपना ठिकाना देख ले। ये आए दिन की धमकी थी जो सीधे सीधे न देकर घुमाफिराकर समझा दी जाती।जब घर पर कोई आने वाला होता तो यह भी उसे तब पता चलता जब वह घर पर आ चुका होता इससे वह बहुत ही  बेइज्जत महसूस करती पर क्योंकि रिश्तेदार के आगे उसकी बेइज्जती ना हो इसलिए वह कोशिश करती कि सामने वाले को पता ना चले कि उसे अभी-अभी पता चला है कि वो  लोग  आने वाले थे और जैसे तैसे चाय नाश्ता खाने का प्रबंध ऐसे करती कि

ऐसा न लगे कि उसने पहले से कोई तैयारी नहीं की थी। ये सब कुछ उसके जीवन का हिस्सा होता चला जा रहा था। एक अंतहीन कसमकस में संजना जी रही थी,न वो जी पा रही थी न मर पा रही थी। मायके की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वहां से किसी सहयोग की उम्मीद करती । संजना को वर्तमान ही नहीं भविष्य में भी सिर्फ अँधकार ही दिख रहा था। ससुराल पक्ष में भी कोई ऐसा न था जो उसकी समस्या को समझे सब उसे ही गलत ठहराने में लगे रहते क्योंकि साफ बोलना उसकी आदत थी जो औरों को खलती थी।

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संजना को दुख इस बात का भी था कि शादी से पहले जिस साफगोई की दाद दी जाती थी मिसाल पेश की जाती थी वही साफगोई अब उसके पति को जहर लगने लगी थी।

काफी समय से संजना को अपने आप में परेशानी महसूस हो रही थी अक्सर उसे महसूस होता कि जैसे उसका दम घुट रहा है पर वह ये सोचकर ध्यान न देती कि घर के वातावरण के कारण उसका मन खराब रहता है इसलिए ही ऐसा लगता होगा। पर जब अक्सर ही ऐसा होने लगा तो उसने अपने पति को बताया जबाब सुनकर बहुत गुस्सा आया और रोना भी क्योंकि जिससे हमदर्दी की उम्मीद थी वह शख्स कह रहा था कि हर वक्त उल्टा सीधा सोचोगी तो ऐसा तो लगेगा ही थोड़ा काम में मन लगाओ सब ठीक हो जाएगा।

संजना को अब तक लगता था कि उसका पति कान का कच्चा है इसलिए इधर उधर की बातें सुनकर उसे नजरअंदाज करता है पर आज उसे एहसास हुआ कि पति ऐसा है इसी कारण कोई भी उसके खिलाफ कुछ भी कहता रहता है । थकहार कर एक दिन संजना खुद ही डॉक्टर से मिलने पहुंची जहां सारे चेकअप का नतीजा निकला कि लगातार अवसाद में रहने के कारण दिल की बीमारी है जिससे धमनियों में रक्तसंचार ठीक नहीं हो पाता है जो आगे चलकर दिल के दौरे का कारण हो सकता है । संजना ने दवाएं लेना तो शुरू कर दिया पर कहीं दिल को गहरा धक्का लगा था जिससे दवाएं भी बेअसर साबित हो रही थीं।

पर क्या किया जा सकता था सिवाय इंतजार के कि एकदिन सब ठीक हो जाएगा। लंबा अर्सा ऐसे ही निकल गया पर बात और भी बिगड़ती चली गई । इसी बीच संजना ने महसूस किया कि उसका पति सभी के आगे आदर्श होने का ढोंग करता है जबकि कहीं न कहीं चरित्र भी उसका सही नहीं है।

ये शादी के बाद से उसने बहुत बार महसूस किया था पर हरबार वह अपने आप को अपनी सोच को ही गलत मान लेती थी पर अब उसे पक्का विश्वास था कि इस आदर्शवादी ढकोसले के पीछे बहुत कुछ है । अब उसने चीजों को अपने नजरिए से समझना शुरू किया तो जो सच सामने आया वो न केवल घिनौना था बल्कि अविश्वसनीय भी । कोई व्यक्ति एक अच्छी छवि के पीछे इतना भी गलत हो सकता है उसे विश्वास नहीं हो रहा था पर प्रमाणों के आगे तर्क निरुद्देश्य थे। हकीकत ये थी कि उसका पति एक नहीं कई चाहने वालियों के दिल में धड़कता था और ये सब दोंनो तरफ से था।

जब संजना को कुछ ज्यादा ही शक हुआ था तो उसने पति का फोन चैक किया था पर उसमें कुछ खास ऐसा लगा नहीं फिर कुछ चैट देखी जो पुरुष मित्रों के नाम से थी पर हर दिन डिलीट की जा रही थीं ।जब संजना ने इस सूत्र को पकड़कर आगे बढ़ना शुरू किया तो निकलकर आया कि वो सभी नंबर जानबूझकर इस तरह से सेव थे कि देखने पर कोई समझ ही नहीं सकता कि वो किसी महिला के नंबर है ।

इस सबकी पुख्ता जानकारी ने संजना का रहा बचा मोह भी भंग कर दिया और कुढ़ कुढ़कर दिल की मरीज पहले से ही होने के कारण बिल्कुल ही बिस्तर पकड़ बैठी ।कुछ महीने में ही चेहरे की रंगत चली गई और जीने की जिजीविषा भी ,फिर एक दिन उसकी प्रिय सखी आई और न जाने क्या सोचकर दिल की बात दिल में ही रखने वाली संजना ने उसके आगे अपना दिल खोल दिया । शायद चाहती थी कि मौत से पहले किसी को तो सच्चाई पता चले।

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पितृ दोष – शुभ्रा बैनर्जी 

मीना उसकी सखी सबकुछ सुनकर अवाक् रह गई पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ पर बचपन की दोस्ती थी जानती थी वो संजना को अच्छे से इसलिए समझ सकती थी कि बात कितनी बड़ी रही होगी जो आज इसने बयां की है नहीं तो छुटपन से आज तक लाख कष्ट सहे पर कभी किसी को ये नहीं कहा कि कोई परेशानी है।

संजना ने बचपन में कहीं पढ़ लिया था कि घुटने की चोट किसी को दिखाओगे तो घुटना तुम्हारा ही नंगा होगा जबकि चोट तुम्हें ही सहन करनी है अर्थात घर की बात बाहर करोगे तो एक दिन स्वयं ही हँसी का पात्र बनोगे । बस यही एक बात ऐसी मन मस्तिष्क में बैठ गई थी कि घर की कोई परेशानी उसने कभी किसी के साथ साझा न की थी चाहे कितने ही बुरे दौर से गुजरती रही थी बस सबको खुश रखना और सबको खुश दिखना ही उसका परम उद्देश्य हुआ करता था इसलिए ही शायद वो हरदिल अजीज थी और दूसरों की हर समस्या का ताला खोलने की चाबी मानी जाती थी।

मीना जो उससे सलाह ले लेकर ही बड़ी हुई थी आज उसने भी कर्ज उतारने की सोच ली। उसने संजना को उसका सोया हुआ आत्मबल जगाने की सलाह दी और अपने दम पर अपनी जिंदगी सवाँरने का हौसला भी ।संजना ने जो बच्चों को पहले से ही ट्यूशन पढ़ाती थी को पूर्ण रूप से अपने आपको शिक्षा को समर्पित करते हुए एक एन जी ओ का हाथ थाम लिया। सुबह के समय अपने स्वास्थ्य की देखरेख के लिए योगा प्राणायाम और सही डाइट व दवा  लेती बाकी का समय शिक्षा और समाज सेवा । कुछ समय तक घर से ही ये सब किया जब विरोध ज्यादा हुआ

तो शहर के नामचीन हॉस्टल को अपना ठिकाना बना लिया और झूठे रिश्तों के सच्चे बंधन से खुद को आजाद किया ही , आत्मबल की शक्ति से दिल की बीमारी जैसे रोग को भी मात दे ही दी। आज संजना एक सफल एन जी ओ संचालिका, जरुरतमंदों की सच्ची हमदर्द और शहर की जानी मानी हस्ती है । उसने सही समय पर अपनों में छिपे परायों का चेहरा पहचान कर अपना जीवन निरुद्देश्य न बिताकर जीवन को एक नई धारा ही दे दी जिसमें उसकी प्यारी सखी का अतुलनीय योगदान भी सराहनीय रहा।

सखियों ये सच्चाई है कि आज के दौर में भी दोगले चरित्र के लोग हैं जिन्होंने पतिपत्नी के रिश्ते का मखौल बना रखा है पर स्त्री कभी बच्चों के लिए तो कभी परिवार या समाज के लिए समझौता करती हुई घुटघुटकर जीवन गुजार देती हैं। कम ही होती हैं जो संजना का सा हौसला और जीवट रखती हैं जो शुरुआत में परिवार समाज के ताने उलाहने सहती हुई आगे बढ़ती हैं और मिसाल बन जाती हैं।

 

पूनम सारस्वत

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