सुगंधा एक भरे पूरे संयुक्त परिवार में पली बढ़ी खुशमिजाज लड़की थी जो रिश्तों की कीमत भली भांति जानती थी।।उसने अपने हर रिश्ते चाहे वो चाचा हो, बुआ, ताऊ, मौसी, मामा, नाना, नानी, दादा_ दादी हो सबको बहुत पास से देखा और समझा था।
वो चार भाई बहिनों में सबसे छोटी थी और सबकी लाडली भी थी। उसको बचपन से ही सबके साथ रहना बहुत अच्छा लगता था। रिश्ते बनाना और उन्हें निभाना उसे बखूबी आता था क्युकी वो ऐसे माहोल में ही पली बढ़ी थी
उसके परिवार में दादाजी के परिवार के अलावा, उनके भाइयों का परिवार, दादाजी के चाचा और ताऊ के बेटों का परिवार सब साथ रहते थे ।एक बड़े हवेली नुमा घर में सबके अलग अलग हिस्से बने हुए थे और सबका खाना पीना भी अलग ही था। किसी के यहां सब्जी अच्छी बनती थी तो मांगने से कोई शर्माता नही था या किसी के यहां कोई सामान खत्म हो गया तो एक दूसरे से लेकर काम चला लेते थे।
रिश्ते बहुत थे तो रूठना मनाना, लड़ाई झगड़े भी चलते रहते थे । बच्चों के लिए तो इतने सारे रिश्ते समझना भी बड़ी दुविधा थी। उनके लिए तो जैसे रिश्ते न होकर रिश्तों की खिचड़ी बनी हुई थी। खैर उनको इससे मतलब भी नही होता था वो तो अपने मस्ती में मस्त रहते थे क्योंकि वो स्नेह के बंधन में जो बंधे हुए थे।
बड़े लोगों में कभी लड़ाइयां भी हो जाती या देवरानी जेठानी या सास बहू के झगड़े हो जाते कभी तो बच्चों को इनसे दूर ही रखा जाता ।
सुगंधा तो अपने सारे भाई बहिनों के साथ मिलकर खूब मस्ती करती , दिनभर खेलते कूदते और किसी के यहां भी खाना खाया करती थी।
कई बार छुट्टियों में सब लोग पैसे मिलाकर वीसीआर खरीदते और रात भर पिक्चर चलाते तो कभी न्यू ईयर की पार्टी करते। खूब नाच गाना करते।
त्योहार पर सब खूब हल्ला गुल्ला करते । रक्षा बंधन पर तो सारे भाई सारी बहनों से राखी बंधवाते और भाइयों के हाथ पूरे भर जाते। बहनों को भले ही 5या 10या बहुत करो तो 20रुपए मिलते पर उन्हें रुपयों से ज्यादा खुशी अपने भाई के हाथ पर राखी बांधकर होती थी ।( जो आज के जमाने में शायद रुपए देखकर होती है) छत पर पूरे दोपहर पतंगबाजी करते।
शादी में तो कई दिनों तक खाना शादी वाले घर में ही बनता और खूब मौज मस्ती चलती। कभी बुआ का मजाक बनता तो कभी फूफाजी का, कभी ताऊ जी की एक्टिंग करके सब खूब हंसते तो कभी चाचा की टांग खिंचाई करते पर कभी
कोई एक दूसरे का बुरा नही मानता था और रिश्तों की ये खिचड़ी इतनी मसालेदार और जायकेदार शायद इसी वजह से बनी हुई थी क्योंकि उसमें एक दूसरे के स्नेह के बंधन का तड़का भी तो लगा हुआ था जिसकी महक पूरे परिवार को एक सूत्र में बांधे रखती
सुगंधा को बचपन से ही नए रिश्ते बनाना बहुत पसंद था और हर रिश्ते को जानने में उसकी रुचि रहती थी।अपनी मां से हर बार पूछती मां ये आंटी मेरी कौन लगती है? ये आपकी तरफ से हैं या पापा की तरफ से?
सुगंधा का बचपन और यौवन जहां इतने रिश्तों के बीच बीता वही शादी के बाद उसका एकल परिवार था जहां रिश्तों के नाम पर बस ससुर जी , उनके दो भाई और एक बहन ही थे। उसके पति भी अकेले और उसकी भी एक ही बहन थी।
ज्यादा बोलना चालना किसी को सुहाता नही था।
उसे अकेलापन महसूस होता था
सुगंधा कभी अपने पति से पूछती विकास आपके बस इतने ही रिश्तेदार है? आप कभी किसी के यहां आते जाते नही जैसे मामा मौसी के घर या बुआ के घर या उन लोगों को कभी बुला लिया करो अपने घर।
सुगंधा शुरू से मैं और दीदी होस्टल में पढ़े हुए हैं ज्यादा रिश्ते नाते मैं जानता नही और न ही जानना चाहता हूं। मुझे बस मेरे परिवार से मतलब है। और तुम भी कम ही मतलब रखा करो किसी से भी।
पर विकास मेरे यहां तो इतने रिश्तेदार हैं अगर छुट्टियों में सब इकट्ठा हो जाए तो एक पूरा मोहल्ला जितने लोग बन जाए।
अरे ऐसी रिश्तों की खिचड़ी भी कोई पसंद करेगा भला। जिसमे पता नही कौन मामा का बेटा है ,कौन मौसी का , कौन तुम्हारे चाचा है और कौन तुम्हारे पापा के चाचा हैं। मैं तो शादी में देखकर ही चकरा गया । कितना हल्ला गुल्ला , कोई बात भी करे तो लगता है लड़ाई हो गई।
विकास आपका कभी मौका नहीं पड़ा ना इन सब रिश्तेदारों से मिलने का, एक बार मिलोगे तो फिर बार बार मिलने का मन करेगा। सब इतना लाड़ और प्यार करते हैं । उनके बिना तो त्योहारों और शादियों का मजा ही अधूरा है अबकी बार मैं आपको सबसे मिलवाती हूं चलिएगा मेरे साथ
चलो देखते हैं कभी…. विकास अनमने मन से बोला
सुगंधा ने सोच लिया था कि विकास को एक बार इस खिचड़ी का स्वाद जरूर चखाएगी
और थोड़े दिनों बाद मौका भी मिल गया जब उसके पापा के चाचा के पोते की शादी का निमंत्रण आया।
सुगंधा की शादी के बाद पहली बार किसी शादी के फंक्शन में वो और विकास उसके मायके गए थे और विकास को तो उसके साले सालियों ने एक मिनट अकेला नहीं छोड़ा।
हंसी मजाक, खाना पीना, नाचना गाना , ताश खेलना, दमशराज खेलना तो कभी अंताक्षरी जैसे खेल खेलकर विकास को तो इतना आनंद आया कि वो पूरी रात नही सोया। शायद पहली बार ही वो इतने लोगों से एक साथ मिला होगा और इतना हंसा होगा।
अगली सुबह वो सुगंधा को बोला यार तुम्हारी ये रिश्तों की खिचड़ी तो वाकई बड़ी जायके दार है। समय कैसे कट जाता है पता ही नही चलता।पर एक बात है ये मुझे अब तक पता नहीं चला कि हम किसके यहां शादी में आए हैं, सबके घर पर ही शादी जैसी रौनक है यहां
विकास ये ही तो हमारे रिश्तों की मजबूत नींव है हमारा आपस का प्रेम और भाईचारा जिसके बलबूते हम आज तक रिश्तों की इस डोर से बंधे हुए हैं। यहां जिसके यहां शादी होती है उसके यहां कोई नहीं रुकता बल्कि सब एक दूसरे के घर पर रहते हैं ताकि इस बहाने एक दूसरे से मिल सके और कुछ खट्टी मीठी यादें बना सके। अपना दुख सुख बांट सकें।
ये रिश्ते ही तो होते हैं जिनके सहारे हम अपनी जिंदगी के गम और खुशी के पल हंसते हंसते सह लेते है भले ही कुछ रिश्ते चटपटे और मजेदार होते हैं पर वो हमारे जीने का सहारा होते है। इन रिश्तों की खिचड़ी जिसमे कोई अपना नमक जैसा स्वभाव रखता है तो कोई तीखी मिर्च होता है कोई दाल की तरह पकने में टाइम लेता है
मतलब कठोर होता है तो कोई चावल की तरह जल्दी पक जाता है मतलब कोमल हृदय वाला होता है। कोई आलू की तरह सबके साथ एडजस्ट हो जाता है तो कोई हल्दी की तरह गुणकारी होता है
और कोई पानी की तरह ऐसा होता है जो सबके रंग में रंग जाता है पर खिचड़ी का स्वाद जैसे इन सबके मिलने से आता है वैसे ही जीवन को स्वादिष्ट बनाने के लिए ये रिश्तों की खिचड़ी होना बहुत जरूरी होता है और इसमें स्नेह के बंधन का तड़का इसका स्वाद सौ गुना बढ़ा देता है
वाकई सुगंधा जीवन में हर रिश्ता जरूरी होता है ये मैं आज समझ पाया । चलो अभी देर नही हुई मैं भी जाकर अपने सारे रिश्तदारो से मिलूंगा, उन्हें जानूंगा, पहचानूंगा और फिर ऐसी ही रिश्तों की खिचड़ी से अपने जीवन को स्वादिष्ट बनाऊंगा।
सुगंधा ये सुनकर बड़ी खुश हो जाती है और एक प्यार की झप्पी विकास को देती है।
घर जाकर जब विकास ने सुगंधा के परिवार के बारे में मम्मी पापा को बताया तो वो बड़े खुश हुए कि उनका बेटा देर से ही सही पर रिश्तों की कीमत तो समझा।
जब कभी विकास हॉस्टल से आता और वो इस विषय पर बात करते या सबसे मिलने के लिए बोलते थे ,वो बस बहाना बनाकर इधर उधर हो लेता पर कभी परिवार के बीच स्नेह के बंधन को समझने में दिलचस्पी नहीं लेता लेकिन आज वही जब इस विषय पर बात करने के लिए आतुर हो रहा था तो दोनों मारे खुशी के रो पड़े।
दोस्तों आजकल ऐसे रिश्तों की खिचड़ी कम ही देखने को मिलती है क्योंकि एकल परिवार का चलन बढ़ता जा रहा है। और बच्चे आधुनिकीकरण की चकाचौंध में कहीं खो से गए हैं जिन्हें सिर्फ टीवी, मोबाइल या लैपटॉप से मतलब है। आपसी रिश्तों में स्नेह का बंधन नाम मात्र का बचा है जो दुखद है।
दोस्तों आपको क्या लगता है? रिश्तों की खिचड़ी कितनी जरुरी है हमारे जीवन में? और कभी आपने इस खिचड़ी का स्वाद चखा है? चखा है तो अपने अनुभव मेरे साथ साझा करना ना भूलिएगा
धन्यवाद
निशा जैन
#स्नेह का बंधन