संदीप नौ बजे ऑफिस के लिए निकल गए.. उसके बाद करूं क्या! पूरे घर के चार चक्कर लगाकर आई.. कहीं कुछ फैला नहीं बिखरा नहीं.. सब जस का तस पड़ा था.. घड़ी में देखा तो अभी दस ही बज रहे थे.. हे राम! अभी तो सारा दिन पड़ा है.. कटेगा कैसे!
अमन को बाहर गए आज तीसरा दिन था.. शनिवार इतवार संदीप घर पर थे इसलिए इतना बुरा नहीं लगा.. क्या अमन के होते कभी इतना चैन से बैठ पाई!
सब्जी रोटी बनाओ तो सैंडविच.. पराठे बनाओ तो पास्ते.. रोज की एक नई डिमांड.. सादा तो उसे कुछ भाता ही नहीं!
अंकिता के जाने के बाद.. वह अकेला ही काफी था.. दिन खपाने के लिए!
आज तो सारे फुर्सत वाले काम भी कर लिए.. पहले अलमारी बनाई.. फिर काफी देर टीवी देखी.. बगल वाली पड़ोसन रेखा से बात कर आई पर फिर भी शाम के सात बजने में जैसे सात जन्मों का टाइम लग गया था!
दरवाजे की बेल सुनकर जान में जान आई.. चलो कोई तो आया.. अकेले नहीं हूं.. इस दुनिया में!
हां तो मैडम साहिबा.. आज से आपके मौज मस्ती वाले दिन शुरू हो गए.. क्या किया दिन भर.. संदीप ने छेड़ते हुए कहा!
उसका ऐसा बोलना था कि मैं फफक कर रो पड़ी.. संदीप यह कैसा समय आ गया है.. कोई अपने घर में रहना क्यों नहीं चाहता.. सब बाहर भागे जा रहे हैं.. गांव वाले शहर की तरफ.. तो शहर वाले मेट्रो.. मेट्रो वाले विदेश.. कोई अपनी जगह खुश नहीं है!
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हम लोगों ने भी तो पढ़ाई की.. पर ऐसे घर छोड़कर थोड़े ना!
तीन साल पहले अंकिता और अब अमन.. क्या यहां कुछ भी नहीं था.. करने के लिए!
मेरी तो दुनिया बच्चों के इर्द-गिर्द घूमती थी.. अब तुम ही बताओ.. सारा दिन मैं करूं तो क्या!
पगली! सिर्फ तुम्हारी थोड़े ना.. बल्कि तुम जैसी सारी औरतों की!
यह जो तुम मिसेज पाल मिसेज सिन्हा मिसेज शर्मा जैसी औरतों को पार्टियों में जाते देख तंज़ कसती थी ना.. कि इनके रोज के चोंचले हैं!
आज हर कोई तनहा है.. क्या पता! अकेलेपन के शिकार से बचने के लिए.. इन सब को भी.. इन चोंचलों को अपनाना पड़ा हो!
अगर यह आए दिन.. किटी पार्टी बर्थडे पार्टी और न्यू ईयर पार्टी न मनाएं तो डिप्रेशन में चली जाएं.. एक दिन जाना और चार दिन उसकी प्लानिंग करना.. इसी बहाने जिंदगी तो अच्छे से कट रही है!
अब इस उम्र में नौकरी तो कर नहीं सकतीं.. फिर मन लगाने के लिए कुछ ना कुछ चोंचले तो करने ही पड़ेंगे ना.. वरना सोचो तुम्हारा एक दिन में यह हाल है.. इन सब के बच्चे तो सालों से बाहर हैं!
तुम क्या.. चोंचले शब्द का अर्थ समझाने के लिए.. इस दिन की राह देख रहे थे.. मैंने गुस्से से कहा!
साथ में झेंप भी हुई.. अपने आप पर.. किसी की व्यथा समझे बगैर.. मैंने न जाने कितनी बार यह शब्द बोला था!
नहीं! बस चाहता हूं.. जीवन में खुश रहने के लिए.. तुम भी कुछ चोंचलों को अपना लो!
स्वरचित एवं मौलिक
चांदनी खटवानी