लगभग 30 वर्ष पुरानी सच्ची घटना है। विमला जी दीवाली की तैयारी में व्यस्त थी। ठीक दीवाली का दिन था। उनके पति किशोर जी एव्ं दोनों बेटे अनुपम , आशीष और बेटी आराधना उनके काम में हाथ बँटा रहे थे। अंदर पकवान की तैयारी चल रही थी। बाहर बेटी आराधना के द्वारा रंगोली सजाई जा रही थी पूरे घर में चहल पहल का माहौल था।
अंधेरा होते ही दिया और झालरों की जगमगाहट से घर खिल उठा। सभी बड़े उत्साह से दीवाली मनाने में लगे हुए थे। विमला जी ने घर के अंदर पूजा हेतु प्रसाद बनाया और उसके बाद सभी लोग पूजा में बैठे।पूजा संपन्न होने के बाद सभी बाहर की रौनक देखने के लिए आ गए जगह जगह पटाखे और रॉकेट का शोर हो रहा था सभी जगह हंसी खुशी का माहौल था।
तीनों बच्चे भी पटाखे फुलझड़ी चलाने लगे।। इतने में एक पुरानी सी गाड़ी उनके गेट के पास आकर रुकी एक आदमी उसमें से उतरा।उन्होंने गौर से देखा वह उनका चचेरा भाई मनोज था। वह अकेले ही सीढियाँ चढ़ के ऊपर आ गया अचानक दीवाली के दिन उन्हें देखकर सभी लोग खुश भी हुए और हैरान भी रह गए ”
इतनी दूर से अचानक यहाँ कैसे आना हुआ –: विमला जी ने अपने चचेरे देवर मनोज से पूछा। साथ ही बड़े सम्मान के साथ अंदर बैठाया “- भाभी मैं तो उषा (मनोज की पत्नी) को भी साथ लेकर आया हूँ। वह गंभीर रूप से बीमार है इसलिए उसे दिखाने जिला अस्पताल ले गया था ।
आज दीवाली का त्योहार है डॉक्टर न मिल पाने की वजह से उन्होंने इसको अन्यत्र ले जाने को कह दिया है हालत गंभीर बताई है ऐसे में करूँ तो क्या करूँ। मनोज की पत्नी उषा की हालत के बारे में जानकर विमला व किशोर जी अत्यन्त चिंतित हो गए दिल्ली ले जाने की स्थिति बिल्कुल नही थी ड्राइवर दिल्ली जाने को राजी न था दूसरा ड्राइवर त्योहार के मौके पर मिल नही रहा था।
विमला जी और किशोर जी ने मनोज को अपने घर में ही लाने के लिए कहा। ड्राइवर की मदद से मनोज अपनी पत्नी उषा को उपर ले आया विमला जी ने जब उसे देखा तो उनके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई. हालत अत्यंत खराब थी। ड्राइवर गाड़ी लेकर अपने घर जा चुका था।
किशोर रात के दस बजे अपने परिचित के घर गए उन्हें उषा की हालत के बारे में बताया किसी भी तरह उसे अस्पताल ले जाने में मदद करने करने की प्रार्थना की। उस समय न तो मोबाइल थे न घर घर गाड़ियों का चलन था। परंतु इलाज तो करना ही था घर में भगवान् भरोसे नही छोड़ सकते थे। परिचित के राजी होने पर जैसे तैसे इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया और ईश्वर से प्रार्थना करने लगे परंतु होनी को कौन टाल सका है।
रात तीन बजे उषा का देहांत हो गया। अब परिवार को संभालने की जिम्मेदारी विमला जी पर आ पड़ी। पहले तो अस्पताल वाले बिना पुलिस को सूचित किये पार्थिव शरीर को देने पर राज़ी नही हुए उन्हें जवान महिला की मौत संदिग्ध लग रही थी। उसी शहर में रहने वाले उषा के माँ बाप, को खबर दी गई।
बदहवास से वह अस्पताल पहुँचे। उन्हें अपनी बेटी की बीमारी का पता था वह अपने दामाद के गुणों से भी वाक़िफ़ थे बीमारी के समय बेटी व उसके बच्चे की देखभाल नही कर सके थे जिसका उन्हें मलाल भी था वरना आज का समय होता तो सबसे पहले मायका पक्ष रिपोर्ट लिखाने में पीछे नही रहता।
उन्होंने लिखित रूप से दामाद को दोषमुक्त करार दिया मनोज के सभी भाई बहनों को भी खबर दे दी गई। दूसरे दिन सभी के पहुँचने पर उषा का अंतिम संस्कार कर दिया गया। अब बच्चे को संभालने की चिंता हुई। कुछ दिन तो नाना नानी ने यह जिम्मेदारी ले ली पर यह स्थायी समाधान नही था।
एक साल के अंदर ही उषा के माता पिता ने अपनी ही, रिश्तेदारी में लड़की ढूंढकर मनोज की दूसरी शादी करा दी।मनोज सरकारी नौकरी कर रहा था सो उसने पहला काम अपना स्थानांतरण दूसरे शहर में करवाने का किया ताकि बेटे अंशुल् को सौतेली माँ होने का पता ना चले पहले लड़कियाँ भी समझदार हुआ करती थी।
मनोज की दूसरी पत्नी जिसका नाम शीला था वास्तव में बहुत समझदार साबित हुई। बड़ा बेटा आठ वर्ष का होने पर उसने अपनी संतान के बारे में सोचा। उसकी पहली बेटी हुई फिर एक बेटा। कुछ समय पूर्व ही मुझे मिली थी तीनों बच्चे अच्छी जॉब कर रहे हैं शादी ब्याह करके अपने परिवार में खुश हैं।
बड़े बेटे अंशुल् को आज तक पता नही है कि शीला उसकी सौतेली माँ है। धन्य हैं वह माँ बाप जिन्होंने ऐसी बेटियों की परवरिश की साथ ही धन्य हैं वो माँ बाप जिन्होंने अपनी बेटी के ना रहने पर दामाद का फिर से घर बसाया।
दोस्तो यह बिलकुल सच्ची घटना है आपको कहानी कैसी लगी कमेंट में जरूर बताएं
चम्पा कोठारी