आज का परिवेश” – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral Stories in Hindi

गौरी उठ जा बेटा “”

समय देख”””ग्यारह पच्चीस हो गये!

पापा आते ही होगें””””

मम्मी जी उठती हूं,बस पांच मिनट “””

उठ जा बेटा लोग क्या कहेंगें”””

अरे””””कहने दो”””

गौरी ने वापस कम्बल पैर से सिर तक खीच लिया “””

अब गार्गी क्या करे,लड्डू गोपाल को पहले भोग लगाये,या पति के भोग की तैयारी करे””””

सुबह उठाया फिर भी ये लडकी,,,इसके भरोसे तो रहना ही नही चाहिए “”” ये ऐसी बेटी है जिसे ससुराल जाने का ताना भी नही मार सकती””””

खुद मे बडबडाती हुई गार्गी, घर मे बने मंदिर के पास आ गयी””

अब आप  यही विराजमान हो जाओ,लड्डू गोपाल को लाड लगाते हुए  गार्गी बोली””””मै अब दोनों का भोजन एक  साथ  बनाऊंगी””””

आधी पूजा छोडकर गार्गी रसोई की ओर बढ गयी””””

गार्गी के पति  विवेक जी थोडा सा गुस्से के तेज थे!

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पर गार्गी उन्हे अपने हिसाब से समझा लेती थी”

आज तो देर हो ही जाऐगी “”” जल्दी से कुकर गैस पर चढाते हुऐ गार्गी बडबडाई “”””

पहले चावल ओवन मे चढा देती हूं “””” ताकी दोनो चीज एक साथ  तैयार हो जाऐ””””

चावल का कटोरा अभी ओवन मे रखा ही था की””””

गार्गी ,मेरे कपडे कहां है, ये आवाज विवेक जी की थी”””

लाती हूं, टेबल पर पडे कपडे उठाते हुऐ गार्गी,सीढियां  उतरने लगी”””

अरे जरा धीरे उतरो,अब तुम्हारी उम्र  पहले जैसी नही है”””

विवेक जी छेडते हुऐ बोले””””

हा ,तो आपकी तो है न,,,,तुनकते हुऐ गार्गी बोली””””

अरे अब बहू आ गयी है,इसलिऐ बोला”””अभी सोकर उठी की नही”””

बच्ची है ,क्या उसके पीछे पडे रहते हो””””

मै कहां उसके पीछे पडा रहता हूँ, मै तो आप””””

उम्र  के साथ  सठियां गये हो”””

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मै मर्द  हूँ, मर्द साठ तक””””

मुझे काम है,,,,विवेक जी की बात काटते हुए गार्गी बोली”””

उसके रसोई मे कदम रखते ही कुकर की सीटी बज उठी “””

उसके हाथ तेजी से काम मे अभ्यस्त हो गये!!

मम्मी जी”””उसके गले से लिपटते हुऐ ,गौरी बोली”””

उठ गयी”””‘

मै तो कबसे उठ गयी थी”””बस आपका इंतजार कर रही थी की आप कब उठाने आओगें”””

अच्छा ठीक है,बहुत हो गया  लाड प्यार, साल भर से ऊपर हो गया “तुम्हें  यहां आये””””

क्या हुआ  पापा जी ने कुछ बोला क्या मम्मी जी”””

नही”””

फिर”””‘क्यूँ  गुस्सा  आ रहा है,मासूमियत साफ झलक रही थी,गौरी के चेहरे पर””””

अक्सर ऐसा ही होता था,गौरी कुछ ऐसा बोलती की,गार्गी को हंसी आ जाती “”””

जाओ पहले ब्रश करके आओ”””

और हा पापा के ऊपर आने से पहले आदित्य को उठा देना “””

जी मम्मी”””

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दोनों  काम निपटाकर दो मिनट मे आयी!!!

पहले आटे का डव तैयार कर लेती हूँ “”””

गार्गी ने सोचा”””

मम्मी अभी लड्डू गोपाल को भोग नही लगाया “”

नही “” खीझती हुई गार्गी बोली”””

मम्मी आप चार लोगों के चक्कर मे न रहा करों,समय बदल गया  है””अब किसी के पास किसी के लिए समय नही,,आप किसी के घर जाते हो”””गौरी सास की तरफ  देखकर बोली””

नही”””

फिर आपके घर कोई क्यूँ आऐगा “””

ये बात भी सही है”””

गार्गी अपने समय के बारे मे गौरी को कुछ नही बताना चाहती थी”””वो मन ही मन दुआ करती थी की ,उसके जैसी लाइफ कभी गौरी को न मिले,,,बच्चों की खुशी जिसमे हो वही सही””

गार्गी के सोचते सोचते रसोई का काम आधा हो चुका  था!

मम्मी आप भोग लगा  दो बाकी मै संभालती हूं”””

गौरी नहाकर सीधे रसोई में आयी थी!!

नही पहले “””

ये भी उठ गये है इनकी और मेरी चाय भी बना लूंगी!!!

ठीक है”””‘गार्गी मंदिर की ओर बढ गयी!

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पाठ समाप्त होते ही विवेक जी भी आ गये”””

खाने मे देर है क्या””””

नही पापा जी “”” बस आप बैठो मै थाली लगाकर लाती हूं “”

कुछ मिनटों मे थाली टेबल पर थी!!?

गार्गी अभी विवेक जी के पास आकर खडी ही हुई थी की””

आदि कहां है”””

रूम मे है पापा जी””””

अच्छा”””

अब इनके युवराज है,जब इच्छा होगी तो उठेंगें””‘

आप भी न”””

और क्या अब शादी हो गयी कुछ काम धंधा “””

पापा जी मुझे पढना है””गौरी बीच मे बोल उठी””””

तो किसने बोला था अभी मेरी शादी करने का ,मै तो अभी शादी के खिलाफ था “”””

ये रोज रोज बोलकर आप थकते नही पापा जी””””आदि पापा के पैर छूते हुए बोला”

अभी उठे हो””””

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हा”””

पापा जी मुझे पढना है,पति की बात बीच मे काटकर गौरी बोली”””

गौरी बेटा घर बार संभालों,,अच्छे घर की बहू बेटियां  घर मे ही शोभा देती है””””,विवेक जी बोले”””

पापा जी मम्मी जी है न”

कबतक मम्मी जी करेंगी”ये घर तुम्हारा भी है”””

पर अभी हम “””

” गौरी आदि दोनों  खाना खा लो”””

बात बदलने की गरज से गार्गी बोली”

मम्मी जी अभी हम-दोनों को भूख नही”””

गौरी बोली””””

पापा ,,समय बदल गया है अब पहले वाला परिवेश नही,इक्कीस की उम्र  मे शादी कर दी””मुझे पहले मेरे पैरो पर खडा हो जाने देते””””

फिर झांसी की रानी अलग ले आऐ हो””””

कौन है झांसी की रानी, गौरी बिफरते हुऐ,बोली””‘

अरे यार मजाक  था”””आदि बोला “””

दोनों   को लडवाकर मिल गयी आपको तसल्ली “”” गार्गी,विवेक जी से बोली”””

दोनों को काम पर लगा दिया  है”यही तो दिन है लडने झगडने के जो हम-दोनों को नही मिले”””

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अरे आप””‘

इन दोनों को उलझने दो”””तुम मेरी बॉटल भर दो””‘मै आफिस  जा रहा हूं”तुम भी अपना काम नम

 देखो””””””बहू आ जाने से,जिम्मेदारियां , खत्म नही होती!

बाटल “

 भरते हुऐ, गार्गी ने कनखियों से देखा, विवेक जी के चेहरे पर बालसुलभ  मुस्कान बिखरी हुई थी वो शरारत से आदि और गौरी की ओर देखें जा रहे थे!

उनकी इस बात से अनजान,गौरी और आदित्य  वाक्युद्ध मे,तल्लीन थे!

समाप्त 

रीमा महेंद्र ठाकुर,( कथाकुंज संरक्षक) 

वरिष्ठ लेखक, सहित्य संपादक “

जिम्मेदारियां खत्म  नही होगी”!

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