मोनिका को नौ बजे वाली लोकल ट्रेन पकड़कर ही ऑफिस जाना पड़ता था। आज थोड़ी सी देरी हो गई थी। इसीलिए खूब झुझलाहट की शिकार थी।
मोनिका सोच रही थी -पता नहीं समय से पहुंच पाऊंगी या नहीं गौरव को भी कोई सामान खुद से कभी नहीं मिलता है.. सब चीज उन्हें उठा कर देनी पड़ती है.. कभी-कभी तो गौरव जानबूझकर भी लगता है ऐसा करते हैं.. शरारत करने के लिए.. आखिर यही तो छोटे-छोटे पल होते हैं जब एक दूसरे के साथ हंसी ठिठोली कर लेते हैं। वह भी क्या करें सुबह के वक्त आपाधापी रहती है। और शाम के वक्त दोनों मियां बीवी थकावट से चूर हो जाते हैं। घर और ऑफिस और बच्चे सभी को करते-करते कभी-कभी तो दोनों मियां बीवी लगता है पिस ही जाते हैं। जिंदगी में थोड़ा सा भी सुकून नहीं है ।
जब मोनिका ऐसे झुझलाने लगती तो गौरव उसे समझाता- तुम इन छोटी-छोटी परेशानियों को लेकर क्यों अपने आप को परेशान करती हो.. दुनिया में लोगों के पास इससे भी बहुत बड़ी-बड़ी परेशानियां रहती हैं.. शुक्र करो कि ईश्वर ने हमें सुविधापूर्ण और संपन्न जीवन दिया है जिसमें हम अपने परिवार के साथ हंसी खुशी रहते हैं।
यही सब सोचते सोचते वह जल्दी-जल्दी रिक्शा से स्टेशन पहुंची और ट्रेन पर चढ़कर कोई खाली खिड़की वाली सीट ढूंढने लगी । लेकिन कोई भी खाली खिड़की वाली सीट नहीं मिली तो मोनिका हार मानकर एक जगह बैठ गई। सोचा चलो आधे घंटे का ही तो सफर है।
खिड़की पर एक महिला अपने छोटे से बच्चे के साथ बैठी थी बच्चा लगभग पांच साल का होगा। वह खिड़की पर बैठा था। महिला की वेशभूषा उसकी दयनीय आर्थिक स्थिति बता रहे थे। शायद मजदूर वर्ग से थी। क्योंकि उसकी साड़ी जगह-जगह से फटी हुई और उस पर पैबंद लगे हुए थे। खिड़की पर बैठा मासूम सा बच्चा बड़े ही चाव से बाहर कुछ देख रहा था। उसकी मां उसे बार-बार बैठा रही थी ..लेकिन वह फिर से बार-बार बाहर की तरफ झांकने लगता .. मोनिका को सहज ही जिज्ञासा हुई कि आखिर बच्चा ऐसा क्या देख रहा है .. देखा तो वह एक आदमी को देख रहा था जो अपने बच्चें को अपने कांधे पर बैठाए हुए था।
और बच्चा उस बच्चें को अपने पिता के कंधे पर बैठा हुआ देखकर बार-बार पुलकित हो रहा था।
मोनिका मुस्कुराती हुई उस महिला से बोली– ” बहन जी लगता है बच्चा अपने पिता को याद कर रहा है देखिए ..उस पिता और बच्चे को बार-बार देख रहा है .. लगता है यह भी अपने पिता के कंधे पर बैठना चाहता है “।
महिला ने बाहर की तरफ देखा और अपने बेटे को पुचकार कर बोली– ” बिटवा.. तुम्हारा बापू तुम्हें अकेला छोड़कर भाग गया तो.. क्या हुआ तुम्हारी मां है ना .. वह तुम्हें कांधे पर बिठाकर पूरी दुनिया घूमाएगी “। कहकर अपने बच्चें को दुलारने और पुचकारने लगी।
सच ही कहा है जहां पर ईश्वर नहीं होते हैं वहां पर अपनी प्रति छाया के रूप में मां को भेज देते हैं। ताकि वह किसी भी परिस्थिति में हमारा ख्याल रख सके। उसे बच्चे का ईश्वर उसकी मां के रूप में साक्षात थी।
बच्चा अपनी मोहक मुस्कान के साथ अपनी मां के गले में दोनों हाथ डालकर मुस्कुराने लगा। लेकिन फिर भी बच्चे की नजर बार-बार खिड़की से बाहर उस बच्चे और पिता द्वारा लुटाए रहे लाड़ प्यार को देख रहा था।
मोनिका उस महिला के दुख ,सोच और साहस को देखकर अपने आप को काफी छोटा महसूस करने लगी। कितना अंतर है उसमें और मुझमें.. मैं कितनी छोटी-छोटी बातों पर शिकायत करने पर उतारू हो जाती हूं.. अपने आप को बेचारी और दुखी महसूस करने लगती हूं ..और इस महिला को पहाड़ जैसा विशाल दुख है की.. पति छोड़कर भाग गया ..बच्चे की परवरिश अकेले करनी है. .आर्थिक विपन्नता की भी शिकार है.. लेकिन फिर भी अपने बच्चें के लिए पर्वत के समान डटी हुई है.. अपने मजबूत साहस और हौसलों के साथ.. मुस्कुराते हुए अपने कर्तव्य पथ पर चल रही है.. कितने नाशुक्र हैं हम लोग छोटी-छोटी बातों पर अपने आप को और भगवान को कोसने लगते हैं ..।
मोनिका को आज तक जिस जिंदगी से उसे बहुत सारी शिकायतें थी। आज एक झटके में वह सारी शिकायतें ताश के पत्तों के मानिंद ढेर हो गई। अपने रिश्तो और अपनी स्थिति परिस्थिति से संतुष्ट नजर आने लगी।
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रेखा शाह आरबी
बलिया (यूपी )
मौलिक अप्रकाशित अप्रसारित
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