एकदम जल्दी जल्दी से अपना आधार कार्ड और हवाई टिकट्स काउंटर पर दिखाने के लिए निकालती विधि का पर्स बनाम बैग हड़बड़ी में नीचे जमीन पर गिर गया।फुर्ती से उसे उठाने के लिए झुकी ही थी कि फर्श पर पानी बहता हुआ आया और पर्स उठाते उठाते भी गीला हो गया…!एयरपोर्ट का हाल रेलवे स्टेशन से बदतर हो गया है
ये पानी कहां से आ गया यहां हद है सफाई व्यवस्था की… बड़बड़ाते हुए विधि ने पर्स उठाया तब तक वह एक व्हील चेयर से टकरा गई थी। हठात उसने ध्यान दिया वह पानी व्हील चेयर से आ रहा था।एक क्षण को वह अवाक रह गई जब उसने देखा उस व्हील चेयर पर एक बहुत बुजुर्ग सज्जन बैठे थे बच्चो की तरह खिलखिला रहे थे
जिन्हे शायद इस बात होश ही नहीं था कि बैठे बैठे ही उन्होंने पेशाब कर दिया है जो फर्श पर बह रहा है आने जाने वाले सभी यात्रियों के नाक मुंह चढ़ गए थे ।अपनी अपनी ड्रेस को ऊपर चढ़ा पैरों में पहने अत्याधुनिक जूते सैंडल्स बचाते हुए सब उन बुजुर्ग के साथ चल रहे लोगो में परिवार जनों को ढूंढने लगे थे।सबके चेहरे पर घृणा और उपेक्षा साफ नजर आ रही थी।
ऐसे लोगों को लेकर हवाई यात्रा करते ही क्यों है!! चुपचाप घर पर क्यों नही बैठते… सबके लिए मुसीबत पैदा कर रहे हैं..!! जितने मुंह उतनी बातें… लानत मलानत का दौर खत्म ही नही हो रहा था।
बुजुर्ग की पत्नी थी साथ में वह कुछ सामान ढूंढने में अति व्यस्त थीं।
क्या ये आपके साथ हैं विधि ने अपना पर्स घृणा से झटकारते हुए आगे बढ़ कुछ चिढ़ते हुए उनकी पत्नी से पूछा तो वे अचकचा गईं शायद पूछने का लहजा तंज कसने के समान था।
जी जी हां मैं इनके साथ हूं उन्होंने बेहद मुलायमियत और सम्मान के साथ कहा था।
विधि को अपने पूछने के लहजे पर थोड़ी शर्मिंदगी जरूर हुई लेकिन एक ही क्षण के बाद उसने तुरंत दूसरा तंज कस दिया था। इतनी खराब हालत में इन्हे हवाई यात्रा पर लेकर आई हैं आप!!! क्या इलाज के लिए ले जा रही हैं..!! थोड़ा सहज होते हुए उसने आवाज में कोमलता घोलने की कोशिश की थी।
नहीं इलाज के लिए नहीं ऐसे ही घूमने जा रहे हैं हम लोग.. सहज मुस्कान से उन्होंने कहा तो विधि जैसे चिढ़ सी गई ।
घूमने जा रहे हैं!! ऐसी हालत में घूमने जाने की आप लोग सोच भी कैसे सकते हैं!! देखिए जरा इन्हे कोई होश ही नहीं है किसी बात का!!
हां इन्हें कुछ बातों का होश तो नही रहता है थोड़ा दुखी हो उठा था उनका स्वर।
फिर भी आप इन्हें लेकर घूमने निकल पड़ीं!! अरे जब होश ही नहीं तो कहां घूम रहे हैं आनंद ही नही आयेगा क्या फायदा इससे अच्छा तो अपने घर पर ही आराम से रहते ।
मैं भी यही समझा रही थी विशाल को पर वह माना ही नहीं!! इस बार सचमुच वह दुखी हो उठी थीं एक प्रकार का ग्लानि भाव था उनकी आवाज में।
विशाल कौन है … विधि ने आश्चर्य जाहिर किया।
विशाल मेरा बेटा है उन्होंने बहुत स्नेह भाव से बताया।
बेटा है आपका …कहां है वह .. आपकी नहीं सुनता !! भेज दिया आप दोनो बुजुर्ग असहाय व्यक्तियों को अटेंडेंट के भरोसे ठोकर खाने के लिए!! घर पर रखना दुश्वार हो रहा था तो ये तरीका सोच लिया उसने ..!!!इतने निम्न स्तर तक गिर गई है आजकल की युवा पीढ़ी बूढ़े मां बाप को हवाई यात्रा के बहाने ऊपर पहुंचाने की योजना बना डाली… विधि का दिल सुलग उठा।अनेक सुनी सुनाई और सच्ची घटनाएं उसके जेहन में उछल कूद मचाने लगीं…!सच है बुढ़ापा बहुत दुखदाई होता है अशक्त असहाय और असमर्थ होता है….
तभी तेजी से चलता हुआ विशाल आ गया…..!!
विशाल ने आते ही अटेंडेंट को हटा दिया तुरंत पिता का हाथ पकड़ लिया .. विधि ने देखा विशाल को देखते ही वृद्ध पिता ने बहुत आल्हाद से अपने दोनों हाथ पुत्र की तरफ बढ़ा दिए थे और विशाल सबकी अवहेलनापूर्ण नजरों की उपेक्षा करता उनकी व्हील चेयर एक किनारे ले जाकर मुस्कुराते हुए बेहद नरमी से उनके कपड़े बदलने लगा बॉटल से उन्हे पानी भी पिलाया फिर उनकी व्हील चेयर संभाल कर हवाई जहाज तक ले गया बीच बीच में पिता के कांधे पर हाथ रख उनसे कुछ बात भी करता जा रहा था मां को भी हंसाने वाली बातें कर खुश करने के यत्न कर रहा था।
विधि बहुत ध्यान से विशाल की हर गतिविधि शंकालु दृष्टि से परख रही थी और सोच रही थी कि इतना बनावटी लाड़ दिखा रहा है ये विशाल और अभी थोड़ी देर में इन्हे सीट पर बिठा कर इन्हे हमेशा के लिए विदा कर देगा और खुद चैन से अपने घर लौट जाएगा ये कल्पना ही उसके रोंगटे खड़े कर रही थी।
विशाल पिता को अपनी गोद में उठा कर सीट तक लाया ठीक तरह से बिठाया सीट बेल्ट बांध दी फिर मां को भी संभाल कर सीट पर पिता के बगल में बिठा दिया उनकी भी सीट बेल्ट बांध दी साथ ही हंसाता भी जा रहा था क्या मां आपके पेट पर बेल्ट ही नही बंध पा रही है ..!!
विधि की विंडो सीट थी और उसी के बगल से पिता और माता बैठ चुके थे।
यात्रा के दौरान ये दोनो निर्बल जन मेरे माथे आयेंगे इन्हे कुछ हो गया तो मेरी हवाई यात्रा का पूरा आनंद ही खत्म हो जायेगा ।सोच कर ही विधि के सिर दर्द होने लगा था।
तब तक विशाल कुछ कहने लगा था।
मैम आपसे एक रिक्वेस्ट …!!
आ गया वो समय जिसकी मैं कल्पना कर रही थी अब ये मुझसे अपने वृद्ध मां पिता का ख्याल रखने कहेगा … मैं तो मना कर दूंगी और इसे ही डपट दूंगी पुलिस में शिकायत कर दूंगी इसकी…अरे अपनी जिम्मेदारी मुझ पर क्यों लाद रहा है।
क्या रिक्वेस्ट है विधि ने मन के उबलते गुस्से को छिपाते हुए पूछा।
जी क्या आप मेरी सीट एक्सचेंज कर लेंगी!! बहुत अदब से उसने कहा तो विधि एक क्षण को समझ ही नही पाई।
आपकी सीट..!! क्या आप भी इसी में यात्रा कर रहे हैं!!
जी हां मेरे मां पिता जी के साथ ही मैं भी अपनी छुट्टियों में यात्रा कर रहा हूं आनंद ले रहा हूं मेरी सीट थोड़ी पीछे है मैं चाहता था पिता जी विंडो सीट पर बैठें ये पहली बार हवाई जहाज में बैठे हैं इसलिए मैं इन्हीं के साथ पास में रहना चाहता हूं…!! बहुत विनम्रता से वह कहता जा रहा था।
विधि से रहा नही गया लेकिन इस हालत में पिता जी के साथ यात्रा करने में क्या आनंद आ रहा है आपको..!! आप को तो पूरे समय इनका ही ध्यान रखना पड़ेगा …..विधि अभी भी शंका में थी।
आप सही कह रही हैं जब इनकी हालत ठीक थी तब ये यात्रा इन्हे बहुत आनंद देती पर क्या करूं मैं गांव का व्यक्ति सब कुछ सोचते समझते तैयारी करते समय बीतता गया ।पिता जी बहुत इच्छा थी हवाई जहाज में बैठने की।
तो इन्हे ठीक हो जाने देते … इन्हें कुछ हो गया तो..!! विधि अभी समझ नही पा रही थी कि विशाल क्यों इन्हे यात्रा पर लाया है।
मैडम जब मैं छोटा बच्चा था मेरे पिता जी और मां मुझे अपनी गोद में अपनी कमर पर अपने कंधे पर खुशी खुशी लादे जगह जगह घुमाते थे मां बताती है चार साल की उम्र तक मैं बिस्तर गीला कर दिया करता था।लेकिन पिता जी कभी मुझ पर गुस्सा नही करते थे।जल्दी से चादर और मेरे कपड़े दोनो बदल देते थे रिश्तेदार हंसते थे पर पिता जी हर जगह मुझे अपने साथ ले भी जाते थे और मेरा ध्यान भी रखते थे।
फिर वह थोड़ा रुका हंसा…
कहते हैं ना बूढ़े और बच्चे एक समान..!!
अब बुढ़ापे में पिता जी अशक्त हो चलने फिरने में असमर्थ हो गए हैं होश नही रहता कपड़े गीले कर लेते हैं…. अब इसका ये अर्थ तो कदापि नही है ना कि केवल इसीलिए इन्हें घूमना ही नही चाहिए …. जब मैं छोटा था असमर्थ था तब भी पिता जी मुझे उत्साह से हर जगह घुमाने लेकर जाते थे … अब पिता जी असमर्थ हैं तो मैं इन्हें साथ घुमाने ले जा रहा हूं… सब लोग साथ हैं कुछ होगा तो देखा जायेगा कुछ होने के डर से अभी ये जीने के पल भी छोड़ दूं क्या..!!तब मैं बच्चा था अब पिता जी बच्चे हैं….!
उत्साह वही है दृश्य बदल गया है..!!
विधि खड़ी होकर विंडो सीट पर पिता जी को बिठाते हुए एक पुत्र को वत्सल पिता बनते हुए देख रही थी ।चिप्स का पैकेट बेटे के हाथो से थामते हुए ….चिप्स खाते विंडो सीट से बाहर का दृश्य देख उमंग से चहकते एक पिता को बच्चे बनते हुए देख रही थी ….एक अद्भुत आनंद की हिलोर महसूस कर रही थी..!!
#बुढ़ापा
लतिका श्रीवास्तव