चारु राखी की थाली सजाये बैठी थी उसमें राखी थी, आरती का दीपक, कुंकुम चावल, मिठाई और भैया पर न्यौछावर करने के लिए रुपये रखे थे। वह घर के मन्दिर में भगवान के सामने बैठी एक टक श्री कृष्ण जी की फोटो निहारे जा रही थी जैसे कि वह मन ही मन उनसे प्रार्थना कर रही हो कि हे भगवन मेरे भैया को भेज दो ।
आँखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी। किन्तु उसे यह भी पता था कि भैया हर बर्ष की भाँति इस वर्ष भी नहीं आएंगे। उधर चित्रेश का भी यही हाल था। सुबह से वह उदास सा बैठा था। मम्मी -पापा उसकी मनोदशा अच्छे से समझ रहे थे कि वह बहन को बहुत मिस कर रहा है।
शाम छः बजे उसने थाली में से हर बर्ष की तरह दीपक ,मिठाई छोड कर राखी एवं सब सामान एक लिफाफे में रख अलमारी में रख दिया। उदास, मन लिए बैठी -बैठी अतीत के गलियारे में गुम हो गई। बचपन यी यादों में खो गई। वह भैया से चार वर्ष, छोटी थी सो भैया उसे बहुत परेशान करते थे अपने छोटे-छोटे सामान लाकर देने को कहते जब वह मना करती तो कहते ठीक है मत ला में इस बार राखी पर तुझे पैसे
नहीं दूंगा।
वह भी पीछे नहीं रहती कहती मत देना मैं भी राखी नहीं बाँधूगीं।
भैया राखी बाँधवा कर उठकर भाग जाते
अब तो राखी बंध गई नहीं देता तुझे पैसे। तब वह रूआंसी हो जाती तो मम्मी भैया को डॉटती क्यों उसे परेशान कर रहा है तेरी छोटी बहन है और भैया हंसकर उसे प्यार से पैसे दे देते। मम्मी पापा भी अपने बच्चों की नोंक झोंक देख कर खुश होते बच्चों की बलैयां लेते। समय फिसलता रहा हम बड़े होते गए किन्तु हमारी शैतानियों में कोई फर्क नहीं पड़ा, अब वे दूसरे रूप में होने लगीं। वैसे भैया मेरे को प्यार बहुत करते थे।
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कभी मेरे बिना कहीं नहीं जाते, मेरे बिना कोई चीज नहीं खाते। हम बडे हो गए पढ़-लिख गए। भैया की नौकरी लगते ही मम्मी-पापा ने उनकी शादी कर दी। में भाभी के आने से बहुत खुश थी चलो अब मुझे एक साथी और मिला। मैं हर समय उनका ध्यान रखती परन्तु न जाने क्यों वे मुझसे खुश नहीं रहतीं भैया जब भी भाभी को लेकर बाहर जाते तो मुझसे भी कहते चल छोटी तैयार हो जा आज पार्क में धूम कर आते हैं या चौपाटी चलते हैं ,या आज मूवी देखकर आते हैं।
यह सुनकर भाभी का मुँह उतर जाता उन्हें पसंद नहीं था कि मैं उन लोगों के साथ जाऊँ। शुरू में तो मैं मेरी समझ में नहीं आया सो मैं खुश होकर चल देती , किन्तु मम्मी अब समझ गईं थीं कि मेरा जाना संध्या भाभी को नहीं सुहाता सो उन्होने मुझे समझाया और साथ न जाने के लिए कहा। मैं अब भैया से बाहने बना देती और साथ नहीं जाती अब भाभी खुशी खुशी भैया के साथ जाती ।
भैया भी समझ गए कि मैं न जाने के लिए झूठे बहाने बनाती हूं ताकि भाभी खुश रहें।पर वे किसी से कुछ न बोले।
घर में भी हमारी नोंक-झोंक भाभी को न सुहाती, वे चाहती कि भैया केवल उनके साथ ही रहें।
अब मैं भी बडी हो गई थी सो मम्मी-पापा मेरे लिए वर खोजने लगे । भाभी इस बात से बहुत प्रसन्न थी कि मैं शादी होकर इस घर से चली जाऊंगी शादी के बाद जब में राखी पर घर आई तो भाभी को ज्यादा प्रसन्नता नहीं हुई औपचारिक सी ही मेरे साथ रहीं। भैया ने राखी बांधने के उपलक्ष में मुझे अँगूंठी दी जो भामी को अखर गई। बोली तो कुछ नहीं किन्तु उन्होंने अपने रूखे व्यवहार से जता दिया कि उन्हे भैया का इतना मंहगा उपहार देना पसन्द नहीं आया।
फिर जब दूसरे बर्ष मैं आई तो मम्मी ने भैया को उपहार लाने से मना कर दिया बोलीं अभी हम बैठे हैं उसे जो चाहिए होगा हम लाकर दे देगें। पर भैया नहीं माने और एक मंहगी सिल्क की साडी और मेरे पति विवान के लिए जो मुझे लेने आये थे सूट ले आए। अब तो भाभी की शक्ल देखने लायक थी उन्होंने कुछ भी बोलना शुरू कर दिया।
विवान के सामने ही कुछ भी बोलकर मेरा मजाक उड़ाना, मुझे नीचा दिखाना शुरू कर दिया। में समझ गई और उस दिन से आज पांच वर्ष हो गए मैं राखी पर या अन्य दिनों में भी मायके नहीं गई। बस राखी की थाली सजा कर भैया के आने का इन्तजार करती हूं । जब भी मम्मी पापा का फोन आता है दिल मचल उठता उनके पास जाने को किन्तु भाभी का व्यवहार याद कर अपने को रोक लेती हूं ।
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मम्मी-पापा भी मेरे से न मिल पाने के कारण बहुत दुखी रहते हैं पर में किसी न किसी बाहने से जाने से मना कर देती हूं।
इधर दो वर्ष पहले भाभी के भाई की भी शादी हो गई ।अब भाभी का मायके में वही हाल हुआ जो उन्होंने मेरे साथ किया था। उनकी भाभी को उनका मायके आना पसंद नही आता। वे उन्हें ताने मारती और उल्टा सीधा बोलतीं अब भाभी को समझ आ गया कि वे भी किसी की ननद हैं।
भाई-बहन का अटूट रिश्ता होता है उसे तोड़ने की कोशिश कर उन्होंने कितना गलत किया। शायद उनका किया ही उन्हें लौट कर मिल रहा था। अब वे मायके जाने से कतराने लगीं। उनके भैया द्वारा दिये गये उपहार, मम्मी-पापा द्वारा दिये गये उपहार सब उनकी भाभी को खटकते और वे संध्या भाभी को एवं उनके माता-पिता को बहुत कुछ सुना देती ,अब संध्या भाभी को अपने किये पर पछतावा होने लगा
चारु को उदास देख उसकी सास देवकी जी बोलीं- बेटा चारू तुमने मायके जाना क्यों बंद कर दिया। पांच साल हो गए, तुम्हें भी और तुम्हारे मम्मी-पापा को भी याद आती होगी । मैं समझती हूं यदि कोई बात हो भी गई है तो इतने लम्बे समय तक उसे दिल से लगाकर नहीं रखना चाहिये। आपस में परिवार में यह सब चलता ही रहता है। भूलकर आगे बढ़ जाना चाहिये। इस बार तुम राखी पर चली जाना तुम्हारा यह उदास चेहरा मुझसे नहीं देखा जाता।
ठीक है मम्मी जी सोचुगीं।
इसमें सोचना क्या है अपने घर जाने में भी इतना सोचा जाता है क्या ।
पर मम्मी जी उसी समय तो गोलू के एग्जाम शुरू होंगे
कोई नहीं उसे छोड जाना मैं सम्हाल लूँगी। चारु का एक तीन वर्षीय बेटा भी था ठीक है कह कर चारू ने बात खत्म कर दी।पर आज फिर राखी थी। घर से मम्मी-पापा का फोन आया था। मम्मी ने रोकर कहा तु हम सबको भूल गई, तुझे कभी हमारी याद भी नहीं आती।
आती है मम्मी बहुत आती है पर —- कह कर रोने लगी।
पर –पर क्या ।
वो भाभी कह कर चुप हो गई और फोन काट दिया ।आज राखी पर फिर से थाली सजा अपने भैया का इन्तजार कर रही थी उसे पता था कि भैया नहीं आयेंगे फिर भी इन्तजार था।
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तभी एक गाडी दरवाजे आकर रुकी। किसी ने बेल बजाई। देवकी जी ने दरवाजा खोला तो चारु के भाई भाभी को देखकर चकीत रह गईं। आओ बेटा अन्दर आओ। फिर बोलीं इधर आओ मुझे कुछ दिखाना है अन्दर मन्दिर में ले गई जहाँ चारू थाली साजाये बैठी आंसू बहा रही थी।
चित्रेश ने आवाज दी छोटी देख मैं आ गया। इतना सुनते ही वह हडबडा कर उठी तो देखा और बोली भैया भाभी आप।
चित्रेश हां हम। राखी बंधवाने आया हूं अपनी छोटी से।
भैया कह कर वह भाई के सीने पर सिर रख विलख पड़ी इतने दिनों का गुबार आंसूओं के रास्ते वह निकला।
भैया बहुत देर कर दी अपने आने में क्या इतने दिनों तक मेरी याद नहीं आई।
आई तो बहुत छोटी किन्तु में संध्या के हृदय परिवर्तन का इन्तजार कर रहा था,कि वह स्वेच्छा से इस रिश्ते के अपनेपन को महसूस करें न कि, किसी दबाव में।आज उसने रिश्ता स्वीकार कर लिया और हम आ गए।
भैया उसके सिर पर हाथ फिराते बोले रो मत मेरी पगली बहना जल्दी से राखी बांध दे वर्ना पैसे नहीं दूंगा। भैया का गला भी भर आया था फिर भी माहौल को हल्का करने के उद्देश्य से बोले।
भाई -बहन का मिलन देखकर संध्या आत्म ग्लानि से भर उठी कैसे उसने इस अटूट बंधन को तोड़ने का प्रयास किया था उसी की सजा उसे मिली कि उसकी भाभी ने भी उसके साथ यही किया। भाभी को चुपचाप खडा देख चारु उनसे भी गले मिली भाभी आप आईं अच्छा लगा। आती कैसे से नहीं अपनी रूठी ननदीया को तो मनाना ही था। आखिर कब तक रिश्तो में ये ठंडापन रखेंगी। में अपनी गल्ती की माफी माँगती हूं कहते संध्या ने चारू के सामने हाथ जोड दिए।
नहीं भाभी आप माफी नहीं मांगेगी आप बड़ी हैं ऐसा कर मुझे शर्मिन्दा न करें। मैं भी तो कुछ ज्यादा ही बुरा मान गई आपकी बातों का।
खुशी-खुशी भैया भाभी के राखी बांधने के पहले वह पांच बर्षो के लिफाफे उठा लाई और सारी राखियां बांध सारे रुपए अपने भैया भाभी पर न्योछावर कर दिए।यह देख भैया भाभी की आंखें भर आईं।
भैया ने उपहार देते हुए कहा जल्दी ले नहीं तो मैं बापस ले जाऊंगा
भैया आप भी+++++++1।
हां मैं भी, कहते सब हंसने लगे।
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छोटी तूने तो पांच साल की राखियां एक साथ बांध दी, किन्तु हम तो एक ही साल का उपहार लाए।
कोई बात नहीं भैया आप लोग आए यही मेरा पांच साल का उपहार है। भाभी ने मुझे अपना लिया इससे बढ़कर और क्या उपहार होगा
भैया भाभी खुशी खुशी दो दिन रह वे चारु से आने का वायदा ले वापस रवाना हो गए।मम्मी -पापा से मिलने की उत्कंठा में चारू जल्दी ही जाने का सोचने लगी
कि कब जाऊं।
आखिर वह दीवाली पर गई। भाई दूज पर अपने भैया को तिलक कर मिठाई खिलाते फूली नहीं समा रही थी। मम्मी-पापा से मिल वह बेहद खुश थी। दस दिन रह कर पिछली सारी कमी पूरी करली। संध्या ने भी इस बार खुलकर पूरे जोश से ननद का स्वागत किया।नाती-दामाद से मिल सब प्रसन्न थे जैसे वर्षों का इन्तजार खत्म हुआ
शिव कुमारी शुक्ला
9-4-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
अटूट बंधन —साप्ताहिक बिषय