उस दिन सुबह में सोमेश के घर कोहराम मचा हुआ था। उसकी पत्नी घर से गायब थी।
सुबह में जब सोमेश की आंँखें खुली तो करवट बदलने पर उसने देखा कि उसकी नवोढ़ा पत्नी बिस्तर पर नही है। पहले तो उसने समझा कि हो सकता है बाथरूम वगैरह गई होगी। किन्तु कुछ देर के बाद भी वह बेडरूम में नहीं आई और प्रतिदिन की तरह बेड टी भी लाकर नहीं दी तो उसने दो-तीन बार उसे पुकारा भी परन्तु कोई जवाब नहीं मिला, उसकी जगह उसकी मांँ विद्या ने कहा कि क्यों वह सुबह-सुबह चिल्ला रहा है,
तब उसने कहा कि दृष्टि ने अभी तक चाय लाकर नहीं दी है। आज व्यवसाय के बहुत सारे पेंडिंग काम भी निपटाने हैं, और घर में ही इतना समय बर्बाद हो रहा है। कहांँ छिपकर बैठ गई है। वह तमतमाते हुए बिस्तर पर से यह कहते हुए नीचे उतरा कि वह गूंगी और बहरी तो नहीं हो गई है। उसने एक कदम आगे बढ़ाया ही था कि उसकी नजर अचानक आलमारी पर पड़ी। उसने देखा कि आलमारी का एक पल्ला(दरवाजा) खुला हुआ है, उसे ध्यान आया कि रात्रि में आलमारी बंद थी। उसने आगे बढ़कर उसका दूसरा दरवाजा खोल दिया तो वह यह देखकर अचरज में पड़ गया कि आलमारी खाली पड़ी है। उसमें दृष्टि के कपड़े और गहने भी नहीं है।
उसने अपनी माँ को बुलाकर दिखाया। कुछ पल तक तो वह आश्चर्य से देखती रह गई फिर अनहोनी की आशंका से उसका मन अस्थिर हो गया।
उसी समय उसके पिता रघुवीर मार्निंग वाक करके लौट चुके थे।
परिवार के सभी सदस्यों ने घर का कोना-कोना छान मारा किन्तु कहीं भी उसका अता-पता नहीं था।
मोहल्ले में भी अपने पड़ोसियों, परिचितों और शुभचिंतकों के यहाँ इस बाबत मोबाइल के द्वारा संपर्क किया परन्तु हर जगह से नकारात्मक जवाब मिला।
अंत में सोमेश ने सोचा हो सकता है कि वह चुपके से मायके चली गई हो, परन्तु वहाँ से मोबाइल के माध्यम से संपर्क करने पर उसके ससुर शिवमोहन ने साफ इन्कार करते हुए कहा कि वह यहाँ नहीं आई है। उसने चिन्तातुर होकर कहा कि भला वह अपनी ससुराल से कहांँ चली जाएगी। यह तो बहुत गंभीर बात है। ऐसा कैसे हो सकता है। यह दुख का विषय है। ताज्जुब है।
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सोमेश की शादी दृष्टि के साथ कुछ माह पहले ही हुई थी। दृष्टि के पिताजी ने अपनी औकात के अनुसार दान-दहेज़ भी दिया, किन्तु सोमेश की एक बाइक और एक सोने की चेन की मांग थी, जिसको उसके ससुर नहीं दे पाए थे फिर भी अपने समधी से उसने वादा किया कि पांँच-छः महीने के बाद सेवानिवृति के एवज में जो पैसे मिलेंगे उससे सोमेश बाबू की मांगें पूरी कर देंगे। दोनों समधी इस बात पर राजी हो गए थे। हलांकि उसकी मांग पूरी नहीं होने पर सोमेश थोड़ा नाराज दिख रहा था उस समय। फिर भी उसकी शादी दृष्टि के साथ संपन्न हो गई थी।
एक-दो रोज तक सोमेश और उसके पिताजी ने समवेत प्रयास किया पता लगाने का। उसने अपने सभी रिश्तेदारों और उसकी खास सहेलियों से फोन के द्वारा और कहीं-कहीं स्वयं जाकर प्रयत्न भी किया लेकिन कहीं से भी पता नहीं चला। तब अंत में उसने पुलिस स्टेशन में एफ. आई. आर. दर्ज करवाया।
पुलिस ने जल्द से जल्द पता लगाकर उसकी पत्नी को उसके सुपुर्द करने का आश्वासन भी दिया।
जब शिवमोहन को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने की खबर मिली तो उसके घर में शोक की लहर दौड़ गई। उसका पूरा परिवार दुख में डूब गया वह जल्द से जल्द दृष्टि की ससुराल पहुंँच जाने की नीयत से बस-स्टैंड की ओर रवाना हो गया।
दृष्टि की ससुराल पहुंचते ही उसने अपने समधी(रघुवीर) से पूछताछ की, उसने जो घटना घटी थी उसकी हू-ब-हू तस्वीर उसके सामने पेश कर दी, फिर उसने सोमेश से भी पूछा। उसने भी लगभग वही बातें कही। शिवमोहन ने जब पूछा कि किसी आदमी से आपसी झंझट या घरेलू लड़ाई-झगड़े भी हुए थे तो उस परिवार के सभी लोगों ने एक स्वर में कहा कि किसी प्रकार की और किसी के साथ भी लड़ाई-झगड़े नहीं हुए थे।
अपनी छानबीन और जांँच-पड़ताल में किस कारण से दृष्टि घर से गायब हो गई, उसका कोई माकूल जवाब न पाकर शिवमोहन व्यग्र हो उठा।
उसने यह भी कहा कि उसको पूरी उम्मीद है कि वह अपने खांदान की इज्जत और मान-मर्यादा किसी भी कीमत पर बर्बाद होने नहीं देगी और न नाक कटवाने का कोई काम कर सकती है। ऐसी अवस्था में निश्चित है कि वह अपनी ससुराल छोड़कर भाग नहीं सकती है।
इन विचारों के तहत उसके मन में अनिष्टकारी घटना घटने की आशंका बलवती होने लगी।
वह अपने समधी और दामाद के जवाब से संतुष्ट नहीं होकर उसने कहा कि हो न हो इस घटना में उनलोगों की संलिप्तता झलकती है कि निश्चय ही शादी के समय दहेज में बाइक और सोने की चेन नहीं मिलने के कारण उनलोगों ने उसकी बेटी की हत्या करके लाश छुपा दी है ताकि सोमेश की दूसरी शादी करने का रास्ता साफ हो जाए।
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ऐसी बातें सुनकर बाप-बेटे क्रोधित हो उठे। सोमेश ने कड़कती आवाज में कहा, ” आपने कैसे समझ लिया कि हमलोग ऐसे जघन्य कांड को अंजाम दे सकते हैं?… आपकी सोच बिलकुल गलत और बेबुनियाद है… आप में आदमी की परख नहीं हैं, हमलोग सरल जीवन जीने वाले मेहनतकश इंसान हैं, कोई अपराधिक प्रवृति के हैवान नहीं हैं कि एक बाइक और सोने की चेन के कारण ऐसे घृणित, नृशंस और नीच कारनामों को अंजाम देंगे।… मुझे सामानों की कोई परवाह नहीं है।… बिना सोचे-समझे हमलोगों पर आरोप मत लगाइए। “
रघुवीर ने भी अपने पुत्र की बातों का बेबाकी से समर्थन किया।
बाप- बेटे ने लाख सफाई दी, कसमें खाई लेकिन उनके सभी दलीलों को उसने एक सिरे से खारिज कर दी। फिर उत्तेजना के वशीभूत होकर वह पुलिस स्टेशन चला गया।
वहां पिता-पुत्र के खिलाफ शिवमोहन ने मामला दर्ज करवा दिया, जिसमें मुख्य आरोपी रघुवीर और सोमेश को बनाया गया था। थाना में दायर अर्जी का सारांश यह था कि उसकी बेटी को आरोपियों ने मारकर लाश गायब कर दी है, दहेज में बाइक और सोने की चेन नहीं मिलने के कारण।
पुलिस तुरंत हरकत में आ गई। रघुवीर और सोमेश को गिरफ्तार करके ले गई। इसके साथ ही कानूनी कार्रवाई शुरू हो गई। दोनों जेल चले गए।
विद्या, उसके पड़ोसी और शुभचिंतकों के कई महीनों तक दौड़-धूप और भागीरथी प्रयत्न करने के बाद बहुत मुश्किल से दोनों को जमानत मिली।
उन लोगों पर नियमानुसार मुकदमा वर्षों से चल रहा था। मुकदमा शुरू हुए पांच वर्षों से अधिक हो गए थे। व्यवसाय चौपट हो गया। पूंजी खत्म हो जाने के कारण दुकानें बंद कर देनी पड़ी। थोड़ी जमीन-जायदाद थी वह भी मुकदमें की भेंट चढ़ गई। उसकी स्थिति दयनीय हो गई। वह तबाह हो गया।
मुकदमा चल ही रहा था कि अचानक सोमेश के एक शुभचिंतक साथी ने खबर दी कि दृष्टि जिन्दा है। उसको उसने कार्तिक पूर्णिमा के मेले में देखा है किसी मर्द के साथ, उसको दो छोटे बच्चे भी हैं। यह मेला पड़ोसी शहर के बाहर दर्जनों किलोमीटर की दूरी पर स्थित नदी के तट पर लगता है।
उसके नेक मित्र ने किसी बहाने उस आदमी का नाम और पता भी पूछ लिया था।
दृष्टि जब इंटर में पढ़ रही थी तो उस वक्त ही काॅलेज के एक लड़के से उसे प्यार हो गया था।
प्यार एक ऐसा जज्बा है जो दो दिलों को जोड़ देता है। प्रेमी-प्रेमिका को एक-दूसरे के बिना जीना बेमतलब लगने लगता है। कभी-कभार एक-दसरे के बिना जिन्दा रहना भी मुश्किल लगने लगता है।
कुछ इसी तरह की भावनाएं दृष्टि और उसके प्रेमी के बीच पनप चुकी थी।
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जिस समय दृष्टि की शादी के लिए इधर-उधर लड़के की तलाश चल रही थी। उस वक्त उसका प्रेमी बेकार था। उसने अपने पिता(शिवमोहन) से दबी जुबान में अपने प्रेमी के साथ शादी की चर्चा की थी, तो उसके पिताजी ने उसको डांँट दिया था यह कहकर कि एक तो लड़का बेकार और निकम्मा है, उस पर भी दूसरी जाति-बिरादरी का है। उससे तुम्हारी शादी करके अपने खांदान पर कलंक का टीका लगाएं। यह किसी भी कीमत पर संभव नहीं है।
इस तरह उसकी शादी अपने प्रेमी के साथ नहीं हो सकी। फिर बाद में शादी सोमेश के साथ हो गई थी।
लेकिन मोबाइल के सहयोग से उसका संपर्क हमेशा अपने प्रेमी के साथ बना हुआ था।
किन्तु जैसे ही उसके प्रेमी को सर्विस लगी और दोनों के अनुकूल जैसे ही वातावरण हुआ दृष्टि ने चुपके से उस रात अपने पति का घर छोड़कर अपने प्रेमी की शरण में चली गई।
दृष्टि के बारे में यथेष्ट जानकारी मिलने के बाद रघुवीर और सोमेश दोनों शिवमोहन के यहाँ चल पड़े जो उसके बगल के शहर में रहता था।
वहांँ पहुंँचते ही पिता-पुत्र ने मिलकर दृष्टि की पूरी दास्तान सुना दी और उसके घर आदि का पता भी बता दिया। शिवमोहन को अपनी बेटी के जिन्दा रहने की खुशी तो हुई लेकिन उसे बहुत अफसोस भी हुआ कि उसके संदेह के कारण निर्दोष पिता-पुत्र पर मुकदमा करके उसने बहुत बड़ा गुनाह किया है। उसने दोनों से माफी भी मांगी।
रघुवीर ने कहा कि माफी मांग लेने से कोर्ट में चल रहा मुकदमा खत्म नहीं होगा। बाप-बेटे पर कानून की तलवार लटक रही है। मुकदमा उठाने का उपाय खोजिए। सोमेश ने असंतोष व्यक्त करते हुए कहा,
” मेरे घर-परिवार पर दृष्टि की कुदृष्टि पड़ने के कारण ही हम लोग तबाह हो गए, बर्बाद हो गए।”
” मुझे स्वयं ग्लानि महसूस हो रही है… मैं वो हर उपाय करूंग, जिससे आपलोगों पर से मुकदमा यथाशीघ्र समाप्त हो जाए” शिवमोहन ने आश्वासन दिया।
अंत में दोनों पक्षों ने दृष्टि को जिन्दा रहने का प्रमाण प्रस्तुत करके कोर्ट में सुलहनामा की अर्जी दायर कर दी ।
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# छठवीं बेटियाँ जन्मदिवस प्रतियोगिता
पांँचवीं कहानी
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
©® मुकुन्द लाल
हजारीबाग(झारखंड)