Moral Stories in Hindi : घर से बाहर क़दम रखते हुए वह एक पल को ठिठकी। इस घर में बिताए बाइस वर्ष उस एक पल में सिमट गये। उसकी सारी आकांक्षाएँ, इच्छाएँ पलक झपकते ही पूरी करते पापा, लाड़ दुलार से पापा के कंधों पर झूलती वो, उसकी चोटी खींचकर चिढ़ाते अमित भैया, उसके छुपने की जगह बनता माँ की साड़ी का आँचल, बालों में तेल लगाती माँ, अपनी गोद में उसका सिर सहलाती माँ और गरम गरम नाश्ता मुँह में खिलाती माँ…
वैदेही ने अपने आँसुओं को भरसक रोकने की कोशिश की परन्तु भावनाओं के आवेग ने इस सैलाब के बाहर निकलने के लिए पलकों के फाटक खोल दिये।
वैदेही ने अपने आँसू पोंछे और स्वयं से वादा किया,
“अब मैं माँ, पापा और भैया के लिए नहीं रोऊँगी अब मुझ फ़ौलाद सा दिल रख कर जीने की आदत डालनी होगी । उसे बचपन में दादी से सुनी हुई कहावत याद आ गई, “जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना?”
बाहर निकल कर वैदेही ने अयान के हॉस्टल जाने के लिए टैक्सी पकड़ी। टैक्सी में बैठते ही अनेक आशंकाएँ सर्प की भाँति फन उठाने लगीं,
“मैंने अयान को तो कोई सूचना ही नहीं दी कि मैं इतना बड़ा कदम उठाने जा रही हूँ…यदि वह हॉस्टल में नहीं मिला तो? कहीं उसने कल कोई गलत कदम उठा लिया हो तो? कहीं उसका प्यार छलावा हो तो? अगर वह मुझे अपनाने से इन्कार कर दे तो? जैसे अनेक प्रश्न उसके मन मस्तिष्क में हलचल मचाने लगे ।
एकाएक हॉस्टल के सामने टैक्सी रुकने से वैदेही की तन्द्रा टूटी। सूटकेस लेकर उतरी वैदेही को सड़क किनारे बनी चाय की गुमटी पर एकत्रित लड़कों के हुजूम की तीखी नज़रें ऐसे बींधने लगीं जैसे कि वे उसके समूचे शरीर को लील जायेंगी।
उनमें से एक लड़का शातिर अंदाज़ में गुनगुनाते हुए आगे बढ़ा…
“वो आए तो आया हमें याद कि गली में आज चाँद निकला…आज यहाँ कैसे वैदेही जी? आप जिस पंछी से मिलने यहाँ तक का सफ़र तय करके आई हैं वो तो कल रात ही यहाँ से उड़ गया”
“ओह! कहाँ गया अयान? वह ठीक तो है न?”
वैदेही का मन अनजानी आशंका से काँप उठा।
“हाँ…हाँ, बिलकुल ठीक है…वह कल रात हॉस्टल ख़ाली करके अपने घर चला गया…वैसे आप सूटकेस के साथ आई हैं, यदि आपका कोई ठिकाना न हो तो बंदा आपकी मदद करने के लिए हाज़िर है”
लड़के के होंठों पर कुटिल मुस्कुराहट खेल रही थी।
वैदेही को लगा कि काश धरती फट जाए और वह उसमें समा जाए। कल तक जो लड़के उससे बात तक करने की हिम्मत नहीं करते थे, आज उसे लड़कों के हॉस्टल के बाहर सूटकेस के साथ देखकर *सर्वसुलभ वस्तु* समझ रहे हैं।
वैदेही ने ग़ुस्से में आग्नेय नेत्रों से लड़के को घूरा और हॉस्टल के अंदर स्थित कार्यालय की ओर बढ़ चली।
कार्यालय में बैठे क्लर्क बाबू से उसने विनम्र स्वर में पूछा,
“सर, मुझे अयान मलिक के घर का पता मालूम करना था”
“इतना तो आपको मालूम ही होगा मिस वैदेही कि हम किसी की पर्सनल डीटेल्स शेयर नहीं करते”
क्लर्क बाबू ने टका सा जवाब दिया।
“सर प्लीज़…यह मेरी ज़िन्दगी का सवाल है, आज एक लड़की ने बहुत हिम्मत करके अपने लिए एक क़दम उठाया है सर, प्लीज़ उसका हौसला मत तोड़िए”
वैदेही ने गिड़गिड़ाते हुए कहा और उसके सुन्दर चेहरे के चिकने कपोलों पर दो बूँद आँसू ढलक पड़े ।
“ठीक है…ठीक है…रो मत…मैं अयान का अलीगढ़ का पता दे रहा हूँ, लेकिन मैं तुम्हें अपनी बेटी समझ कर एक सलाह दे रहा हूँ, मेरी मानो तो तुम वापस अपने घर लौट जाओ, तुम जितना समझती हो, ज़माना उससे कहीं अधिक ख़राब है”
क्लर्क बाबू ने वैदेही को चेतावनी देते हुए कहा।
अब वैदेही के हाथ में एक काग़ज़ की छोटी सी मुड़ी तुड़ी सी पर्ची थी जिसमें अयान का अलीगढ़ के घर का पता लिखा था। हॉस्टल से बाहर आते समय क्लर्क बाबू के कहे शब्द वैदेही के कानों में शोर मचा रहे थे…”मेरी मानो तो वापस घर लौट जाओ”
उसके दिल और दिमाग़ के बीच भीषण युद्ध जारी था…दिमाग़ उसे वापस घर की ओर मुड़ने को कह रहा था और दिल उड़कर अलीगढ़ पहुँचने के लिए आतुर।
कुछ ही पलों में यह युद्ध दिल ने जीत लिया और वैदेही की टैक्सी रेलवे स्टेशन की ओर दौड़ रही थी।
ट्रेन की खिड़की वाली सीट पर बैठी वैदेही, पीछे भागते पेड़ों, खेतों और मकानों को देख रही थी। लखनऊ पीछे छूटा जा रहा था। उसका बचपन, उसकी यादें, पिछले बाइस साल अतीत की काल कोठरी में समाते जा रहे थे जिस कोठरी के किवाड़ों पर वैदेही ने अपने आत्मविश्वास का ताला जड़ दिया था। अलीगढ़ की सँकरी गलियाँ अब उसके भविष्य का प्रवेशद्वार बनने को तत्पर थीं।
ऐसी ही किसी सँकरी अँधेरी गली में अयान का छोटा सा घर था, जहाँ तक वैदेही की टैक्सी भी न पहुँच पाई थी।
क्रमश:
अंशु श्री सक्सेना
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