अपना गाॅ॑व – माता प्रसाद दुबे

“सुनो जी अब तो ट्रेन चलने लगी है, हम लोग अपने गाॅ॑व

चलते हैं?”रमा अपने पति प्रकाश से बोली। “क्यूं क्या हो गया?”प्रकाश रमा को हैरानी से देखते हुए बोला। “अरे ये कहिए की क्या नहीं हुआ बीमारी का डर..लोगों की भीड़..लापरवाह लोग..मुझे हमेशा डर लगता है..आपके और हमारी नन्ही गुड़िया शुभि की सुरक्षा को लेकर?”रमा चिंतित होते

हुए प्रकाश से बोली।”रमा तुम्हे ही तो यहां मेरे पास शहर में रहना पसंद था, तुम तो जिद करके यहां आयी थी?”कहते

हुए प्रकाश  दूसरी तरफ देखने लगा।

कुछ देर खामोश रहतने के बाद रमा बोली।”आप का गुस्साना जायज़ है..वह मेरी बहुत बड़ी भूल थी..शहर की चमक-दमक

ने मेरी आंखों  में पर्दा डाल दिया था?” रमा उदास  होते हुए बोली। “अच्छा ठीक है..मैं तुम्हें गाॅ॑व छोड़कर वापस आ जाऊंगा?”प्रकाश रमा को दिलासा देते हुए बोला।”नहीं आप

भी वही रहेंगे..जितना पैसा आपको यहां मिलता है..सब खर्च

हों जाता है..हर चीज का पैसा देना पड़ता है.. पानी जैसी चीज़ को भी मोल लेना पड़ता है..इससे अच्छा है कि हम लोग गाॅ॑व

में ही रहें?” रमा तर्क देते हुए प्रकाश से बोलीं। “तुम यह चाहती हों, कि मैं अपनी नौकरी छोड़ दूं?” प्रकाश परेशान


होते हुए बोला। “हा छोड़ दिजिए..यहां क्या रखा है..हम जैसे

गरीब लोगों के लिए..महामारी में सारी मुसीबतों का सामना

हमी को करना पड़ता है..जैसे हम इंसान नहीं जानवर है?”

रमा बिना रुके बोले जा रही थी।

कुछ देर शांत रहने के बाद प्रकाश बोला।”फिर दुबारा शहर

आने के लिए नहीं कहोगी?” प्रकाश गंभीर होता हुआ बोला।

“नहीं कहूंगी, यहां इंसान को सिर्फ पैसे से तौला जाता है..

हमारा गाॅ॑व कितना सुंदर है..इस शहर से..चारो तरफ हरियाली..

सुख शांति..ना भीड़..ना शोर..ना बीमारी ना रोग..सब एक दूसरे

के करीब रहते है..शहर की तरह नहीं.अब हम अपने गाॅ॑व में

रहेंगे सुख चैन से?” रमा प्रकाश के नजदीक आते हुए बोली।

“ठीक है रमा..मैं आज ही जाकर टिकट बुक कराकर आता

हूं..तुम तैयारी करों वापस अपने सपनों से सुंदर गाॅ॑व की ओर

चलने के लिए?” कहते हुए प्रकाश घर से बाहर निकल गया।

माता प्रसाद दुबे

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