देर से आना – विभा गुप्ता : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : ” पापा….देखिये ना…., आज फिर से भइया को देर हो रही है…।आज तो मैं उनसे बिलकुल भी बात नहीं करूँगी।”

तुनकते हुए विधि अपने कमरे में जाकर बेड पर औंधे मुँह लेट गई।

विधि का भाई स्नेहिल उससे तकरीबन आठ साल बड़े थें, फिर भी वह उनसे छोटी-छोटी बातों पर ऐसे लड़ती थी जैसे वो उसके हमउम्र हों।माँ जब तक थीं तब तक तो वो ही उनके झगड़े सुलझाती थीं।अक्सर विधि से कहतीं भी थीं कि मेरे जाने के तेरे झगड़े कौन सुलझायेगा? तब वह हा-हा करके हँसते हुए कहती,” तुम कहाँ जाने वाली माँ …,मामाजी के पास जाती हो तो अगले ही दिन वापस आ जाती हो।”

फिर एक दिन विधि की माँ ने सीने में दर्द होने की शिकायत की।डाॅक्टर के पास जाने से इंकार कर दिया।बेटी से थोड़ी मालिश करवाकर बोली कि अब बहुत आराम है, नींद आ रही है।उस दिन वो ऐसी सोईं कि फिर कभी नहीं उठी।विधि तो अपनी माँ को पकड़ को रोये जा रही थी, तब स्नेहिल ने ही उसे थामा था।उस दिन के बाद से तो उसने अपने भाई तो क्या…पापा से भी बहस करना छोड़ दिया था।

विधि को अपने भाई से एक सबसे बड़ी शिकायत थी कि स्नेहिल कभी भी समय पर नहीं आते थें।पार्टी-समारोह में जाना हो या कहीं घूमने जाना…अक्सर ही स्नेहिल देर से पहुँचते थें।रक्षाबंधन पर तो ख़ासकर विधि को इंतज़ार करवाते।कभी कहते ट्रैफ़िक में फँस गया तो कभी कहते कि तुम्हारी पसंद का गिफ़्ट ही नहीं मिल रहा था।जबसे नौकरी करने लगे तो फ़ोन पर व्यस्त रहते तो कभी दो मिनट में आया’ कहकर जाते तो घंटे-दो घंटे बाद ही आते।और तब विधि गुस्से-से लाल-पीली हो जाती थी लेकिन भाई को देखकर उसका सारा गुस्सा काफ़ूर हो जाता।

कल रात ही उसने स्नेहिल को कह दिया था कि मैं भूखी नहीं रहूँगी..आप मेरे से राखी बँधवाकर ही कहीं जाना।स्नेहिल ने ‘हाँ.. मेरी बहना ‘ कहा भी था।फिर भी आज नहा-धोकर सुबह-सुबह ही बाहर निकल गया और आधे घंटे बाद विधि को फ़ोन करके कहा कि तेरा फ़ेवरेट गिफ़्ट लेकर दस मिनट में आ रहा हूँ लेकिन अब तो दो बजने को आये…दो बार आरती का दीपक जलाकर वो बुझा चुकी थी।

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” विधि…स्नेहिल आ गया…।” पिता के मुख से हर्षित स्वर सुनकर वो दौड़ पड़ी।मुँह-हाथ धोकर स्नेहिल सोफ़े पर बैठ गया।विधि ने भाई को तिलक लगाया, उसकी दाहिनी कलाई पर गुलाबी रंग की रेशम की डोरी बाँधी, आरती करके मिठाई खिलाई और अपना हाथ आगे करते हुए बोली,” मेरा गिफ़्ट….।”

” वो….।” कहते हुए स्नेहिल की आवाज़ लड़खड़ा गई।उसने पाँच सौ का नोट विधि को देते हुए कहा,” एक गिलास पानी तो ला…, तब तक तेरे गिफ़्ट को पैक करता हूँ।”

विधि अपने गिफ़्ट की कल्पना करते हुए भाई के लिये पानी लेने रसोई में चली गई।पानी लेकर आ रही थी कि भाई की बात सुनकर वह ठिठक गई।स्नेहिल अपने पापा से कह रहा था,” पापा…वो सड़क पर पड़ी तड़प रही थी, मैं ऐसे-कैसे छोड़ देता।आप ही कहते हैं ना कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं।उसे अस्पताल ले गया, उसकी मरहम-पट्टी करवाकर उसके भाई को फ़ोन किया।पापा….उसने पहले राखी मुझे बाँधी फिर अपने भाई को।कहने लगी ,” आपने मेरी जान बचाई है तो मेरे भाई बन गये ना।ऐसा लगा जैसे विधि बोल रही हो, पापा.. विधि के लिये खरीदा उपहार मैंने उसे दे दिया।वह बहुत खुश हो गई थी।अब विधि को…।”

” तू चिंता मत कर…विधि को मैं समझा दूँगा लेकिन अब उस बच्ची की हालत कैसी है?”

” अच्छी है पापा..सोचता हूँ, एक बार शाम को जाकर मिल लेता हूँ …।” भाई के देर हो जाने का कारण जान कर विधि को खुद पर ग्लानि होने लगी।उसका भाई किसी की जान बचा रहा था और वह उसपर गुस्सा कर रही थी, सोचकर उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।उसको रोते देख दोनों समझ गये कि उसने उनकी बातें सुन ली है।हँसते हुए स्नेहिल बोला,” किसी की बातें सुनना बैड मैनर है…।”

” आई एम साॅरी भईया…।”

” अभी ही सारे आँसू बहा देगी तो ससुराल जाते समय क्या करेगी…” उसके आँसू पोंछते हुए स्नेहिल बोला तो वो ‘भईया..’ कहकर शरमा गई।भाई-बहन का स्नेह देखकर उनके पिता भी भावविह्वल हो गयें।

विभा गुप्ता

स्वरचित

 

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