पछतावा – डॉ संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi:  अनुभा शॉपिंग मॉल से निकली ही थी कि उसकी मुलाकात एक लड़की से हो गई जो उसे देखी सी लगी।

वो आगे बढ़ गई पर सोचती रही,ये कौन थी,देखी हुई सी लग रही थी,वो पलटी पीछे फिर से तो वो लड़की भी उसे पहचानने की कोशिश कर रही थी।

अचानक अनुभा खुशी से चिल्लाई…”तुम शीतल हो न?”

और तुम अनु…?”

दोनो एक दूसरे के गले लग गईं,कितने समय बाद मिले हैं आज…तुम यहां दिल्ली में कैसे?अनुभा बोली।

मैं जॉब करती हूं एक मालती नेशनल कंपनी में यहां…और तुम?शीतल ने पूछा।

मेरे पति रोहन, डी यू में प्रोफेसर हैं, मैं यहीं गीता कॉलोनी में रहती हूं।

कौन कौन है परिवार में?शीतल पूछे बिना न रह सकी।

मै,मेरे पति,दो बच्चे और सासू मां …बस ये छोटा सा परिवार है मेरा।

इसे छोटा कहती हो?शीतल आश्चर्य से बोली,कितनी चेंज हो गई हो तुम,सिंपल रहने की आदत तो पहले ही थी अब तो लगता है बिलकुल ही मेक अप छोड़ दिया तुमने?शीतल हंसते हुए बोली।

कहां फुरसत मिलती है घर गृहस्थी में,सजने संवरने की…अनुभा को थोड़ा कॉम्प्लेक्स हुआ शीतल को देखकर…वो आज भी पूरी तरह टिप टॉप थी।

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अच्छा तुम बताओ… किससे शादी की, उस ज़माने में तो तुम शादी के बहुत खिलाफ थीं,हंसते हुए अनु बोली।

तो वो तो मैं आज भी हूं….शादी क्यों की जाए जब सब कुछ ऐसे ही मिल जाता है…वो लापरवाही से बोली।

अनुभा चौंक गई…”तो तुम सिंगल हो आज भी?”

यस स्वीटी!वो मुस्कराई,मेरे बॉस मेरे साथ रहते हैं,वो मुझे हरवो सुरक्षा देते हैं जो एक वैवाहिक जीवन में होती है लेकिन मुझे उनका और उन्हें मेरा कोई बंधन नहीं,हम दोनो आजाद हैं।

ये तो बड़ी अजीब बात है शीतल…शादी,शादी ही होती है,ये तो…. तू बुरा मत मानना …लेकिन हमारे समाज में इसे हेय दृष्टि से देखा जाता है।”

अरे!समाज हमसे ही तो बनता है,जो समाज की परवाह करता है वो ये ही सब करते रह जाता है।तुम ही देख लो खुद को,तुम कितना अच्छा गाती थीं,सुनहरा भविष्य था तुम्हारा गायिका बनने का पर छोड़ दिया न तुमने शादी के चक्कर में सब।

वो तो…रोहन कहते हैं,कर लो अपने शौक पूरे,मुझे ही वक्त नहीं मिलता… खिसियाई हुई अनुभा बोली।

फिर भी मै यही कहूंगी, तू शादी कर ले,अभी भी देर नहीं हुई है, तू चाहे तो मै तेरे लिए कोई ढूंढू?

नो वे… मैं खुश हूं अपने बॉस के साथ,वो मेरे पर लट्टू है।

पर वो तो शादीशुदा होंगे?अनु बोली।

हू केयर्स यार…चिल…समझ रही हूं तुझे जलन हो रही है मुझसे…वो हंस पड़ी।

अनुभा उसे देखती रह गई।

कुछ सालों बाद,अनुभा अपनी घर गृहस्थी में रम गई,शीतल उससे दोबारा नहीं मिली,भूल गई थीं वो शायद एक दूसरे को ।

एक दिन,एक बड़े से होटल में,अनुभा,अपने पति और बच्चों के साथ रुकी,रिसेप्शनिस्ट कोई और नहीं,शीतल ही थी ,अनुभा,उसे देखती रह गई,कुछ साल पहले मिली शीतल तो नहीं थी ये…कितनी बदल गई थी, उस समय की चुलबुली शीतल बिलकुल गंभीर नजर आ रही थी,काफी मोटी भी हो गई थी और सांवली भी। मेक अप की परते भी उसको सुंदर नहीं बना पा रही थीं।

“तुम यहां कैसे?पूछा था अनुभा ने शीतल से…?”

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मिलते हैं इस शिफ्ट के बाद…शीतल बुझे स्वर में बोली।

अनुभा को लगातार बेचैनी रही उससे बात करने की,अगले दिन,वो दोनो मिलीं सुबह और शीतल ने बताया…उसके बॉस ने उसे छोड़ दिया था…

लेकिन क्यों?वो तो तुम्हें बहुत प्यार करते थे?अनुभा बोली।

मुझे नहीं,मेरी गोरी चमड़ी को प्यार करते थे,एक बार मुझे टायफाइड हुआ और मै मरते मरते बची… उस बुरे वक्त में, उस बेवफा ने मुझे छोड़ दिया।

मै न कहती थी तुझसे,शादी की बात ही अलग होती है…

सही बात है,मैंने ये बहुत बाद में महसूस किया,मुझे शुरू से ही ऐसा लगता था कि शादी बेवकूफ लोग करते हैं,ऐश करो जिंदगी,न कोई बंधन,न मजबूरी,जब तक अच्छा लगे संग रहो,जब मन भर जाए छोड़ दो पर मै गलत थी।आज मै कितना रोती हूं अपनी गलतियों पर ,लेकिन कोई नहीं है मेरे साथ…

तुम्हारा परिवार…माता पिता,भाई भाभी?अनुभा बोली।

उन्होंने मुझे बहुत समझाया था पर मैंने उनकी भी एक न सुनी, उस समय मुझे जवानी और सुंदरता का नशा सवार था,अब उन लोगों ने मुझसे सारे संबंध तोड़ लिए।

ओह!तुम रो ओ नहीं प्लीज!जब जागो तभी सवेरा है,तुम अब भी अपनी जिंदगी शुरुआत कर सकती हो,उसे दिलासा देते अनुभा बोली।

शुक्रिया अनु! मैं जानती हूं कि ये दिलासा देकर तुम मुझे  अच्छा फील कराना चाहती हो पर अब ऐसा कुछ नहीं होगा, मै इसी लायक हूं,सारी जिंदगी परिवार की जिम्मेदारियों से बचने के लिए मै भागती रही पर नहीं जानती थी जिंदगी  बिना संघर्ष नहीं कटती,इसका विवाह से कोई लेना देना नहीं है,मुझे मेरे हिस्से के संघर्ष झेलने दो दोस्त!

 

अनुभा उसे देखती रह गई।

 

समाप्त

 

डॉ संगीता अग्रवाल

#आठ आठ आंसू रोना

 

 

 

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