Moral stories in hindi : घर में पार्टी चल रही थी..डीजे की धुन पर घर के सभी लोग मेहमानों के साथ थिरक रहे थे..उस आलीशान घर के एक कमरे में जीवन के सत्तर बसंत देख चुके रामदयाल जी कमरे में बैठे ख्यालों में खोये हुए थे..नौकरी से सेवानिवृत्त होने के पश्चात वह घर पर ही रहते थे..वह बिना किसी जरूरी काम के कही बाहर आते-जाते नहीं थे..कुछ वर्ष पहले ही उनकी पत्नी सावित्री उन्हें अकेले छोड़कर इस दुनिया से अलविदा हो चुकी थी।
कहने के लिए उनका भरा पूरा परिवार था..दो बेटे रवि और आकाश दो बहूए रमा और गीता और उनके बच्चे लेकिन रामदयाल जी का जीवन पत्नी सावित्री के निधन के बाद अनगिनत कष्टों से घिरा हुआ था..एक पुराना नौकर राजू जो अनाथ था दस वर्ष पहले जिसे रामदयाल जी अपने साथ लेकर आए थे..सावित्री के रहते हुए राजू केवल उनका हाथ बटाता था..
वह उसे भी अपने बेटों की तरह मानती थी। उनके गुजरने के बाद उनके बेटे और बहूओ ने राजू को घर का नौकर बना दिया था।उसकी दिवंगत मां को रामदयाल जी जानते थे..राजू का और कोई नहीं था। वह रामदयाल जी के पास रहकर उनकी सेवा किया करता था..उसके सिवा रामदयाल जी का दुख दर्द भावनाओं को समझने वाला उनके अपने ही घर में कोई और नहीं था।
“बाबुजी!खाना खा लीजिए” राजू मेज पर प्लेट लगाते हुए रामदयाल जी से बोला। “मुझे आज भूख नहीं है राजू! तू इसे वापस ले जा” रामदयाल चिन्तित होते हुए राजू से बोले। “मैं जानता हूं बाबूजी!आज आप दुखी हैं इसलिए आपको भूख नहीं लग रही है ” राजू उदास होते हुए बोला। “तू तो सब कुछ जानता है,कल तक मेरे घर में घंटियां गूंजती थी,
किसी की हिम्मत नहीं होती थी,इस तरह की पार्टी करना नशा करना..सब कुछ बदल गया सावित्री के जाने के बाद ” कहते हुए रामदयाल जी की आंखें छलकने लगी।”आप दुखी ना हो बाबूजी! मैं हूं ना आप के पास, और हमेशा रहूंगा ” राजू रामदयाल जी के करीब आकर सहानभूति प्रकट करते हुए बोला।
“रामू आज मेरे बेटे बहूए बच्चे सब मुझे एक बोझ समझते हैं..तेरे सहारे ही मैं जिंदा हूं ” रामदयाल जी राजू को दुलारते हुए बोले। “ठीक है बाबूजी अब आप थोड़ा सा ही कुछ खा लीजिए ” राजू खाना प्लेट पर निकालते हुए बोला। “ठीक है अब तू कह रहा है तो थोड़ा सा खा लेता हूं ” कहते हुए रामदयाल जी खाना खाने लगे।
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रात के ग्यारह बज रहे थे..राजू रामदयाल जी को खाना खिलाकर जा चुका था। “पापा!आपने खाना खाया” उनका बड़ा बेटा रवि अपनी पत्नी रमा के साथ उनके पास आते हुए बोला। रामदयाल जी ने उसकी ओर देखते हुए सिर हिला दिया।”पापा इतने मेहमान घर पर आकर चलें गये..और आप कमरे से बाहर नहीं निकले ” रमा मुंह सिकोड़ते हुए रामदयाल जी से बोली।
“तुम लोग जानते हों मुझे और तुम्हारी दिवंगत मां को घर पर शाराब और इस तरह की पार्टी नहीं पसंद है.. तुम लोगों को भी नहीं करना चाहिए..मगर अब तुम्हारी मम्मी तो हैं नहीं?जो विरोध करेगी..मैं कुछ हूं ही नहीं?” रामदयाल जी रमा और रवि की ओर देखते हुए बोले। “चलिए पापा! सठिया गए हैं ” रमा रवि का हाथ पकड़कर चलने का इशारा करते हुए बोली। रवि कुछ देर रामदयाल जी की ओर देखता रहा फिर चुपचाप रमा के साथ वहां से चला गया।
रामदयाल जी का छोटा बेटा आकाश उनके पास नहीं आया शायद वह नशे में होने के कारण सो गया था। सावित्री ने अपने रहते हुए ही दोनों भाईयों ने घर के कमरे बांट दिए थे। वह पूजा पाठ करने वाली धार्मिक महिला थी.. दोनों बहूए अलग-अलग स्वाभाव की थी, इसलिए उसने उनके मन को देखते हुए ही ऐसा किया था।
रामदयाल जी और राजू के लिए खाना सावित्री देवी खुद ही बनाती थी। रामदयाल जी की अन्य सम्पत्ति भू-भाग जो सावित्री के नाम पर थे व उसके कीमती ज़ेवर गहने सब दोनो बहूओ और बेटों ने आपस में बांट लिया था। सिर्फ एक आलीशान मकान जो कि रामदयाल जी ने लखनऊ के पाश इलाके में बनवाया था..जिसमें वे रहते थे..
जिसकी कीमत करोड़ों में थी..केवल वही उनके नाम पर था..बाकी लाखों का कैश व अन्य कीमती सामान गाडियां सबका इस्तेमाल आकाश रवि और उनका परिवार करता.. रामदयाल जी के पास चालीस हजार प्रति माह मिलने वाली पेंशन ही बची थी..जिसे वह घर में अथवा रवि के बेटे अंश व आकाश की बेटी स्वीटी व राजू की जरूरतें पूरी करने में खर्च कर देते थे।
इतना सब होते हुए भी रामदयाल अपने बेटे बहूओ से कुछ नहीं कहते थे..जिनके लिए उनका बूढ़ा पिता सिर्फ एक प्रतीक की तरह था..जिसकी हर चीज पर वह अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे..मगर पिता की भावनाओं को समझने की शायद वह जरूरत ही नहीं समझते थे। रामदयाल जी की घुटन दिनों दिन और बढ़ती जा रही थी।
वह कभी राजू के साथ बाहर टहलने घूमने जाते थे..मगर उनका कही मन नहीं लगता था..सावित्री के रहते हुए वह लोग हर वर्ष तीर्थ स्थलों की यात्रा करते थे..सात साल से वह कही नहीं गए थे..आकाश रवि और दोनों बहूओ को तीर्थस्थलों पर जाने में कोई रूचि नहीं थी। वे तो पिकनिक पर ही कही दूर जाना पसंद करते थे।
रामदयाल जी हमेशा उदास और खिन्न रहने लगें थे..उन्हें यह समझ में आ चुका था कि वह उम्र बढ़ने के साथ ही अपने ही बच्चों पर सिर्फ एक बोझ बनकर रह गए है,अब शायद उनका कोई काम नहीं था..उनकी जिन्दगी में..बस एक घर है उनके नाम पर उस पर भी उनके रहते हुए उनके बेटे बहूओ का अधिकार नहीं है.. उनके न रहने पर वह उसे भी आपस में बांट लेंगे शाय़द उन लोगों को इसी का इंतजार था।
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रात के दस बज रहे थे.. रामदयाल जी के कमरे में रवि और आकाश एक साथ प्रविष्ट हुए आकाश रामदयाल जी से बोला। “पापा! हम लोग एक महीने के टूर पर शिमला जा रहें हैं..आप और राजू यही रहेंगे.. आपको कोई दिक्कत हो तो बताइए”। रामदयाल जी एकटक दोनों भाईयों को देखते रहे फिर बोले। “मैं यहां अकेला क्या करूंगा “।
“आप अकेले कहा है..राजू है ना आपके साथ?” रवि रामदयाल जी को समझाते हुए बोला। “ठीक है बेटा जैसा तुम लोग समझोंगे वही करोंगे.. फिर यह दिखावा क्यूं?” रामदयाल जी हैरान होते हुए बोले। “पापा हम लोग काहे का दिखावा करते हैं.. क्या हम आपका ख्याल नहीं रखते” रमा गीता के साथ कमरे में आते हुए बोली।
दोनों भाई और उनकी पत्नियां सबने मिलकर जाने की तैयारी कर चुके थे। रामदयाल जी और राजू तो घर पर रहेंगे ही इसलिए वह चिंता से मुक्त थे। रामदयाल जी के साथ कही जाना शायद उनके मनोरंजन में बाधा न पैदा कर दें.. इसलिए वह उन्हें अपने साथ नहीं ले जाते थे।
आकाश रवि अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ एक महीने के लिए शिमला के लिए निकल चुके थे। रामदयाल जी कमरे में अकेले बैठे गंभीर होकर कुछ सोच रहे थे। बाबूजी!चाय पी लीजिए” राजू चाय की प्याली रामदयाल जी को पकड़ाते हुए बोला। “राजू बैठ बेटा! क्या तू हमेशा मेरे पास रहेगा..
छोड़कर तो नहीं जाएगा?”रामदयाल जी चाय की प्याली पकड़कर राजू को दुलारते हुए बोले।”कैसी बात करते हैं बाबूजी! आप यह सोच भी कैसे सकते है कि मैं आपको छोड़कर जाऊंगा?” राजू रामदयाल जी के पैरों को पकड़ते हुए बोला। “ठीक है बेटा!तू मेरी बात ध्यान से सुन” रामदयाल जी राजू को कुछ समझाने लगे।
राजू बहुत ध्यान से रामदयाल जी की बातें सुन रहा था। जिसे सुनकर उसके चेहरे पर मुस्कान नजर आ रही थी। रामदयाल जी ने कुछ सोचकर प्रशन्न नजर आ रहे थे। उनके मन कुछ करने का फैसला कर लिया था।
एक महीने बीत चुके थे..रवि आकाश और उनका परिवार वापस आ चुका था। घर के पास पहुंचते ही रवि आकाश उनकी पत्नियां हैरानी से अपने घर की ओर देख रहें थे। उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उनके घर के बाहर बड़ा सा साइन बोर्ड लगा हुआ था।जिस पर लिखा था कि यह घर बिक चुका है। जल्दी-जल्दी वह सभी लोग घर के अंदर जाने लगें।
“यह सब क्या है..आप लोग कौन है?” रवि वहा पर तैनात गार्ड से बोला।”साहब आपने बाहर बोर्ड नहीं पढ़ा क्या?” वह गार्ड रवि आकाश और उनके साथ खड़ी रमा गीता और बच्चों की तरफ हैरानी से देखते हुए बोला।”क्या बकवास करते हो..यह हमारा घर है” रमा और गीता एक साथ बोली।
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“पहले होगा..यह घर रामदयाल जी ने हमारे साहब को बेच दिया है “गार्ड सभी लोगों को समझाते हुए बोला।”क्या हुआ आप लोग कौन हैं?” उस गार्ड का सुपरवाइजर उन लोगों के करीब आते हुए बोला। रवि आकाश ने उस गार्ड को अपना परिचय दिया।”अच्छा तो आप लोग रामदयाल जी के बेटे हैं ” गार्ड चेहरे पर मुस्कान लिए उन लोगों को देखते हुए बोला।”हा हम लोग उनके बेटे हैं..यह घर हमारा है..
इस पर हमारा अधिकार है ” आकाश गुस्से से तमतमाते हुए बोला।”साहब आपको हम लोगों पर गुस्सा दिखाने से कुछ हासिल नहीं होगा..आपके पिताजी आप लोगो के लिए संदेश छोड़कर गये है ” वह गार्ड रवि के हाथ में एक लिफाफा पकड़ाते हुए बोला। रवि फटाफट उस लिफ़ाफ़े को खोलकर उसमें लिखें संदेश को पढ़ने लगा।
“रवि आकाश तुम लोग हमेशा खुश रहो, मैं तुम लोगों पर बोझ नहीं बनना चाहता, तुम्हारी मां के जाने के बाद मैं घुट-घुट कर जी रहा था.. मुझे रोज घुटन महसूस होती थी..शायद तुम लोगों को मेरे रहने से और भी ज्यादा परेशानी होगी.मेरे पास जो कुछ भी था,वह सब कुछ तुम्हें मैं पहले ही दें चुका हूं,इस घर के सिवा, जिसे मैं बेचकर राजू के साथ हरिद्वार चला आया हूं,
अब मैं यही रहूंगा, मैंने यहा आश्रम में जब तक जीवित रहूंगा तब तक के लिए स्थान ले लिया है..तुम लोग तीन महीने तक उस घर में रह सकते हो,सारा सामान और नया घर लेने के लिए समय पर्याप्त है, आगे मुझे ढूंढने व आने की कोई जरूरत नहीं है, मैं बाकी का जीवन ईश्वर की साधना में व्यतीत करना चाहता हूं,तुम लोग हमेशा खुश रहो। तुम्हारा पिता रामदयाल।
संदेश पढ़ते ही रवि आकाश एक टक एक दूसरे को देखकर मन ही मन पश्चाताप कर रहे थे।रमा और गीता के चेहरे पर अपने व्यवहार की वजह से एक आलीशान घर को देने का दर्द साफ नजर आ रहा था।
माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ
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