मृग मरीचिका – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : कोलकाता में अपनी मौसी के पास रहकर पढ़ाई करने आया था, सिद्धांत। मौसा जी का पुश्तैनी मकान था श्याम बाजार में। उनके दोनों बच्चे विदेश में निवास करते थे। उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था, तो  मौसी ने मां से सिद्धांत को अपने यहां रहकर पढ़ने देने की वकालत की।अच्छे कॉलेज में एडमिशन हुआ था।घर से पास से ही बस मिल जाती थी।

मौसी के दोनों बेटों के कमरे दूसरी मंजिल में थे। सिद्धांत को अपने छोटे बेटे का कमरा दिया था मौसी ने,जो काफी बड़ा था। सिद्धांत को उस कमरे की बालकनी से हुगली नदी का सौंदर्य देखना बहुत पसंद आया।सुबह सूरज की पहली किरण मानो खिड़की पर आकर उसे टटोल जाती थी।

सफेद पर्दों से छनकर आती धूप सिद्धांत का मन गुदगुदा जाती।एक पवित्र वातावरण में आंख खोलना जैसे स्वर्ग का सुख देता था।मोगरे और चंदन की खुशबू से भरी हुई सुबह, सिद्धांत को बालकनी में खड़े होने के लिए मजबूर कर देती।

अभी कुछ ही दिन हुए थे,वहां रहते हुए कि एक सुबह उसके घर के ठीक सामने वाली बालकनी में एक अप्सरा जैसी सुंदर युवती अपने गीले बाल गमछे से झाड़ रही थी।यौवन अभी – अभी आगंतुक बन कर आया था सिद्धांत के जीवन में। किसी नवयौवना के गीले बाल झाड़ते देखने का प्रथम अनुभव हृदय को झंकृत कर गया।

अपने चेहरे पर उन बालों के पानी की नमी महसूस कर रहा था वह।थोड़ी देर के बाद ही,वही युवती तुलसी के गमले पर पानी देती दिखाई दी।मोगरे और चंदन की खुशबू वाली अगरबत्ती जलते ही, सिद्धांत के कमरे में वही पवित्र वातावरण बन गया।

अब सिद्धांत को समझ आया ,प्रतिदिन कमरे में उस अलौकिक ख़ुशबू का रहस्य। उम्र में बड़ी थी वह युवती,इस बात का अंदाजा लगा चुका था वह।अब सिद्धांत शाम होते ही फिर बालकनी में जा पहुंचा।शाम को युवती के साथ एक तीन-चार साल की बच्ची दिखाई दी।

दोनों संध्या आरती कर रहे थे,तुलसी के मंच के पास। सिद्धांत दोनों को देखने में इतना खो गया कि कब मौसी आकर उसे बुलाने लगी ,पता ही नहीं चला।

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मौसी ने जब जोर से उसे झिंझोड़ा तब सिद्धांत को लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई।मौसी ने कड़े स्वर में निर्देश दिया कि उस तरफ नहीं देखना।वह लड़की अच्छे चरित्र की नहीं।सोनागाछी से आई है,अपनी बेटी के साथ अभी -अभी यहां रहने आई है।

पास के काली मंदिर के पुजारी ने इसे उस जगह से उद्धार करके अपने रिश्तेदार के खाली पड़े घर में आश्रय दिया है।इसे अपनी बेटी मानते हैं।कोई भी उससे बात नहीं करता,तो उसे भी सचेत रहना पड़ेगा।

सिद्धांत स्वयं ही लज्जित था ,इस तरह से असभ्य की तरह उस ओर‌ देखने की वजह से।उसने मौसी को आश्वस्त किया कि उसकी तरफ से शिकायत का मौका नहीं देगा वह।

अगले दिन रविवार होने से काली मंदिर जाने के पैदल ही निकला था सिद्धांत।मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते हुए ,वही युवती और बच्ची दिखे।छोटी बच्ची दौड़ रही थी और युवती उसे रोकने के लिए उसके पीछे भाग रही थी।उसके हांथों से पूजा के प्रसाद की थाली गिरी,और सिद्धांत ने नीचे गिरा हुआ प्रसाद उठाकर उसके हांथों में देने के लिए जैसे ही उसके सम्मुख हुआ,अपलक देखता रह गया उस अप्सरा को।

अभी तक अस्पष्ट आभास ही हुआ था बालकनी से।आज अपने सामने उसे देखकर सिद्धांत का मन बल्लियों उछलने लगा।उसकी बड़ी-बड़ी निष्पाप आंखों में सिद्धांत को अपना व्यक्तित्व डूबता हुआ लगा।युवती ने प्रसाद सिद्धांत के हांथ से ले लिया और बेटी के साथ बाहर निकल गई।

 सिद्धांत को लगा जैसे उसे जन्म-जन्मांतर से जानता है।यही तो है वह चेहरा जिसकी कल्पना उसने सपनों में उकेरी थी।यह अनुभूति पहले कभी नहीं हुई,क्या उसे पहली नजर में प्रेम हो गया?।मंदिर के पुजारी ने बताया,मालती नाम था उसका।

सिद्धांत शाम होने का इंतजार करने लगा बालकनी में,तभी छोटी बच्ची ने उसे देखकर हांथ हिलाया। सिद्धांत ने भी जवाब में वैसा ही किया।मालती नहीं निकली बाहर।कई दिन हो गए सिद्धांत को मालती को देखे हुए।मन में अजीब बैचेनी हो रही थी।अपनी काम वाली बाई से पूछा उसके बारे में,तो उसने बताया कि मालती दीदी की तबीयत ठीक नहीं।

सिद्धांत से अब सब्र नहीं हो पा रहा था,काम वाली मौसी के हांथों एक पत्र भेजा मालती को।इतना दुस्साहस कैसे आया उसमें,ख़ुद ही समझ नहीं पा रहा था।पत्र का जवाब कुछ दिनों बाद मिला उसे।सीधे शब्दों में मालती की चेतावनी दी कि उससे दूर रहे।सभ्य समाज में मालती जैसी युवती से मेल मिलाप अच्छा नहीं होगा उसके लिए।अपनी बेटी की दुहाई दी थी उसने।लिखा था कि शांति से उसे वहां रहने दे।

सिद्धांत यथार्थ से अनभिज्ञ नहीं था पर अपने प्रेम के हांथों विवश होता जा रहा था।किसी तरह मिलकर अपने प्रेम का इजहार करना चाहता था।रविवार को मंदिर में ही मिल गई मालती। सिद्धांत ने अपने मन की बात आज कह दी थी।मालती ने रोते हुए कहा “सिद्धांत बाबू, मैं उम्र में आपसे बड़ी हूं,जिसे आप प्रेम समझ रहें हैं वह केवल एक मृग मरीचिका है।

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ढाल – विनय कुमार मिश्रा

आपके जीवन में बसंत अभी-अभी आया है,और मैं पतझड़ का फूल हूं।प्रेम की परिकल्पना भी नहीं कर सकती मुझ जैसी औरत।आप मुझसे प्रेम करतें हैं ऐसा सोचिएगा भी नहीं।आपके भविष्य की नींव हिल जाएगी।

मेरा कलंक आपके जीवन को विषैला कर देगा।आपके प्रेम उपहार मेरे लिए नहीं है।जीवन में कुछ बन जाइए और अपने निश्छल प्रेम को उसे समर्पित करिए जो इसके योग्य है।”

मालती की बातें सुनकर सिद्धांत का मन हुआ कि उसका हांथ पकड़े और कहे निर्भीक होकर कि मैं सच में तुमसे प्रेम करता हूं।तभी मालती ने वचन मांगा काली मां की मूर्ति को साक्षी मानकर “आज के बाद आप किसी भी तरह से मुझसे मिलने का,या पत्र देने की कोशिश नहीं करेंगे।मेरा और मेरी बेटी का जीवन नर्क मत होने दीजिए।आप तो कुछ समय के बाद यहां से कहीं और चले जाएंगे,पर मेरा कहीं कोई ठिकाना नहीं।आपके जीवन में मेरे कलुषित अतीत की छाया नहीं पड़नी चाहिए।”

सिद्धांत अवाक था,कब मालती ने उसका हांथ पकड़ कर अपने सर पर रखा और वचन मांगने लगी,उसे आभास ही नहीं हुआ।मां के चरणों का फूल देते हुए बोली थी वह”यह आशीर्वादी फूल हमेशा अपने पास रखिएगा,आपको अपने वचन की याद दिलाएगा।

“वह जा रही थी,फिर कभी ना मिलने के लिए। सिद्धांत सोचने लगा”सच में,मुझमें कहां सामर्थ्य है कि मैं समाज की कुरीतियों को छोड़ सकूं।प्रेम तक छिपकर करता हूं,तो उसे समाज के सामने अपना नाम कैसे दे सकता हूं?अपने परिवार के खिलाफ जाने का साहस है क्या मुझमें?जिस युवती को एक निश्चित भविष्य नहीं दे सकता,उसे प्रेम करने का भी अधिकारी नहीं मैं।”

सिद्धांत मौसी का घर छोड़कर जा रहा था अन्यत्र रहने।आज आखिरी बार बालकनी में खड़े होकर उस अनुपम सुगंध को ज़िंदगी भर के लिए आत्मसात कर रहा था।मालती के दिए हुए फूल को उसने जतन से रखा और कहा ख़ुद से”तुम्हें कभी भूल तो नहीं पाऊंगा मैं,प्रथम प्रेम बनकर इस फूल में आजीवन रहोगी तुम।

शुभ्रा बैनर्जी

#आँखें चार होना

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