बाबूजी नौकरी में रहते ही,घर बनवा गए थे। फिजूलखर्ची ना करने वाले बाबूजी ने गांव में बंजर पड़ी काफी ज़मीन खरीद कर रखीं थीं।वैभव को पढ़ा-लिखा कर नौकरी भी लगवा दी और दोनों बेटियों की शादी भी करवाई थी संपन्न घरों में।उनकी मृत्यु के पश्चात अक्सर वैभव मां को ताना देता था”मां,तुमने बाबूजी को रोका क्यों नहीं?बेकार में पैसा बर्बाद करते रहे,बंजर जमीनों को खरीदने में।”निर्मला समझाते हुए कहती”नहीं बेटा,उस आदमी ने जीवन भर कड़ी मेहनत करके तुम सभी का भविष्य बनाया है।अपने लिए कभी कुछ नहीं किया।वे बहुत दूरदर्शी थे।कुछ ग़लत कर ही नहीं सकते वे””!
“हां-हां,बैंक में तो कुछ रखा ही नहीं हमारे लिए।जो भी है, तुम्हारे नाम पर है।अब अगर कल को पैसों की जरूरत पड़ी तो,मैं किसके सामने हांथ फैलाऊं?”
“तुझे हांथ फ़ैलाने की जरूरत क्यों आएगी बेटा?इतना बड़ा घर है,खेती है,तेरी शादी के लिए अलग से पैसा छोड़ कर गए हैं।जो मेरे नाम है वह भी तो तुम लोगों का ही है।”निर्मला समझाती वैभव को।अपने पति की तस्वीर के सामने रोती हुई निर्मला आज बोलने लगीं”क्यों आपने अपनी कसम दी मुझे,कि पैसा बच्चों के नाम ट्रांसफर ना करूं? रोज-रोज बेटे का ताना सुनना अच्छा नहीं लगता मुझे।क्या करूंगी मैं भला इन पैसों का।दस साल जिऊंगी क्या मैं?जो एफ डी कर दिया तुमने।
वैभव की शादी धूमधाम से हुई ,पिता के पैसों से ही।बहू सुशील और समझदार थी।घर संभाल लिया था उसने।
अचानक एक दिन वैभव काम से आते ही निर्मला जी से कहने लगा”शहर में फ्लैट बिक रहें हैं तीन बेडरूम वाले।मेरे सारे दोस्त खरीद रहें हैं मां,पर मैं कुछ नहीं कर पा रहा।सभी मुझे चिढ़ा रहें हैं कि तेरे बाबूजी का पैसा है इतना,आराम से खरीद सकता है।किराए पर देने से मासिक आय भी आती रहेगी।”
निर्मला जी ने फिर से समझाया कि बेटा अपनी जरूरतों पर अंकुश लगाना सीखो।घर है तो अपने पास ,फिर फ्लैट खरीदने की जरूरत क्या है?
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अगले ही दिन दोनों बेटियां अपने पति के साथ आईं। निर्मला जी को संदेह हुआ कि वैभव ने ही बुलाया होगा।बहू से पूछने पर उसने सरलता से सब बता दिया कि वैभव ने ही उन पर जमीन बेचने का दवाब डालने के लिए बुलवाया है।
अपमान बोध से दुखी हो गई निर्मला,”इतना अधीर हो गया वैभव,बाप की जमीन बेचने के लिए।बहनों से वकालत करवाने के लिए बुलवा लिया।जमीन तो मां लक्ष्मी है,एक बार बिक गई तो भविष्य में कभी खरीद नहीं पाएगा।पापा ने अपने नाती-पोतों के भविष्य का सोचकर ही खरीदा था।”
ख़ैर अब समझाने से कोई फायदा नहीं।दिन पर दिन क्लेष बढ़ता ही जाएगा घर में।अगले ही दिन वैभव को ज़मीन के कागजात देते हुए बोलीं थीं वह”ये सब तुम लोगों के बाबूजी ने तुम्हारी संतानों के भविष्य के लिए खरीदा था।अब जब तुम लोगों का मन है तो बेच दो,पर एक जमीन मैं नहीं बेचने दूंगी।मेरे मरने के बाद ही बेचना।”
दो दिनों के अंदर ही वैभव ने खरीददार भी ढूंढ़ लिया और चार जमीनें बेच दीं।बहनों को कुछ रुपए देकर फ्लैट खरीद लिया था वैभव ने।अपनी पत्नी से निर्मला पर दवाब बनाने लगा शहर में जाकर रहने के लिए। निर्मला ने मना कर दिया।
अभी कुछ महीने ही बीते थे जमीन बेचे हुए कि सरकारी सूचना मिली।जो बंजर ज़मीन थी जंगल में,वहां खदान खुलने वाली है।जिनके पास दस साल पहले का पट्टा है वो एक करोड़ रुपए मुआवजा और एक सरकारी नौकरी पाने के हकदार होंगें।वैभव को भी यह सूचना मिली।उसके तो होश ही उड़ गए।जिन जमीनों को उसने हाल ही में बेचा था ,सारी जमीन खदान के क्षेत्र में पड़ रही थी।अब तो जिसने खरीदी है,वह भी मुआवजा नहीं ले पाएगा।
मां से कैसे कहें इन सब के विषय में यही सोच रहा था। निर्मला वैभव को परेशान देखकर समझ गई।उसके माथे पर हाथ फेरकर कहा”मैं कहती थी न,तेरे बाबूजी दूरदर्शी थे। भविष्य के बारे में सोचकर ही खरीदी थी जमीन,पैसे बर्बाद नहीं किए थे।तूने लालच में फंसकर जिस जमीन को मिट्टी का टुकड़ा समझा ,वह सोना थी सोना।अब तूने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी ली है,पछताने से कोई फायदा नहीं।तू कहे तो बची हुई जमीन भी बेच दूं।”
“नहीं मां,वह जमीन खदान के क्षेत्र में नहीं आती।मैं बहुत शर्मिन्दा हूं।उस जमीन को तुम कभी मत बिकने देना।वह जमीन मुझे हमेशा सीख देती रहेगी मेरी लालच के फल का।
शुभ्रा बैनर्जी
#अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारना।