कौन घर का चिराग़ – उषा गुप्ता

“बधाई हो ,आपको पुत्री रत्न प्राप्त हुआ है ।”डॉक्टर ने प्रसव के बाद आशा को बधाई देते हुए कहा।यह वह अस्पताल था जहाँ पुत्री के जन्म पर पूरे अस्पताल में मिठाई बाँटी जाती थी।

आशा ने प्यार से बेटी का माथा चूम लिया।तभी सासु मां और पति अंदर आकर जोर-जोर से चिल्लाने लगे-” फिर से बेटी जन दी….पहले दो बेटियाँ कम थी क्या जो तीसरी भी पैदा कर दी ?”

फिर पति बोलने लगे- “मैं क्या करूँगा …कितना कमा लूँगा …कैसे तीन तीन छोरियों का ब्याह करूँगा …तू बस बेटी पर बेटी जनती जा ।”

आशा ने मुंह फेर लिया ।उसके गालों पर आँसू लुडकते कर जा रहे थे।वह क्या करें ?क्या यह उसका दोष है ?वह तो एक बेटी के बाद से ही मना करती रही कि अब और दूसरा बच्चा नहीं चाहिए।इसी का अच्छे से लालन-पालन करेंगे …पर नहीं …पति और सासू मां को घर का चिराग बेटा चाहिए था।इसलिए उसकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बन कर रह गई।




उसके पेट में अचानक से जोर से दर्द उठा पर वहाँ कोई नहीं था जो उसकी देखभाल करता।तभी उसकी दोनों बेटियां आध्या और आन्या उछल कूद करती हुई आई और बोली -” वाह मम्मी ,हमारी बहन आई है …कितनी प्यारी है।हम दोनों इसका खूब ध्यान रखेंगे।”

आशा के मुंह से कराहने की आवाज़ सुनकर बड़ी बेटी आध्यासमझ गई कि माँ को कुछ दुख रहा है।वह दौड़कर नर्स को बुला लाई।नर्स ने दवाई दी जिससे उसे आराम हुआ।

आशा फिर से अतीत में चली गई और सोचने लगी कि उसके जैसी कितनी आशाएँ इस दुनिया में सताई जाती होंगी।पर अब वह हिम्मत नहीं हारेगी।उसकी माँ ने उसे दसवीं तक पढ़ा कर स्कूल छुड़वा दिया था पर वह अपनी बेटियों को खूब पढ़ाएगी और अच्छे संस्कार भी देगी और उन्हें अपने घर का चिराग बनाकर ही रहेगी।

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बस फिर क्या था ? आशा ने कमर कस ली।सबकी इच्छा के विरुद्ध जाकर उसने तीनों पर खूब ध्यान देना शुरू किया।उनकी पढ़ाई में वह जरा भी लापरवाही नहीं बरतती।खाली समय में सिलाई करके इतना कमा लेती कि बच्चों की फ़ीस आदि भर सके।अपनी सासू जी और पति की बात जरा भी नहीं मानती।

बड़ी बेटी आध्या बहुत ही समझदार और पढ़ाकू थी।उसने विज्ञान विषय लेकर बारहवीं की परीक्षा बहुत अच्छे मार्क्स से पास की। उसे छात्रवृत्ति मिलने लगी।वह डॉक्टर बनना चाहती थी ,अतः उसकी पढ़ाई जी जान से करने लगी।

साथ ही वह दोनों बहनों पर भी खूब ध्यान देती।माँ की वह विशेष परवाह करती।आध्या की तरह दोनों बहनें भी अपनी-अपनी छात्रवृत्ति के सहारे आगे बढ़ती गई।

एक समय आया कि आध्या डॉक्टर बनकर पापा व दादी के सामने खड़ी थी।मेडिकल के बहुत सारे पन्ने उनके सामने फेंकते हुए बोली -” यह लो पापा , अच्छे से पढ़ लो और दादी को भी समझा दो कि बेटा या बेटी पैदा होने में माँ की नहीं वरन पिता की खास भूमिका होती है। अतः अब माँ को ताना देना बंद कर दो।मेरी माँ अकेली नहीं है हम तीनों उसकी ढाल बनकर खड़े हैं।”

पिता ने उन कागजों को ध्यान से पढ़ा और समझने पर आँसू बहाते हुए अपनी माँ से बोले -” माँ , ये विज्ञान कह रहा है कि बेटा या बेटी पैदा करने का सामर्थ्य केवल पुरुषों में है क्योंकि उनके पास एक्स के साथ वाई क्रोमोसोम्स हैं जबकि स्त्री के पास केवल एक्स क्रोमोसोम होते हैं।पिता का वाय क्रोमोसोम्स माता के एक्स से मिलकर बेटे का और पिता का एक्स माता के एक्स क्रोमोसोम्स से मिलकर बेटी का जन्म निर्धारित करते हैं ।और माँ यह सार्वभौमिक सत्य है।इसे कोई झुठला नहीं सकता।”

अब पिता और सासू माँ पश्चाताप की आग में जल रहे थे।आशा से उन्होंने क्षमा मांगी और आशा ने उनका पूरा मान रखा।

आन्या पीएससी की परीक्षा पास करके कलेक्टर बन गई और आलिया इंजीनियर।पूरे शहर में उनके चर्चे थे।

आशा की खुशी का ठिकाना नहीं था।अब कोई नहीं कह सकता कि बेटे ही घर का चिराग होते हैं।

स्वरचित

उषा गुप्ता इंदौर

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