” सुनिए जी, आप गुस्सा थूक दीजिये.. नवीन अब बड़ा हो रहा है ..। जवान बेटे पर इतना गुस्सा करना सही नहीं है। कल को वो आवेश में आकर कोई गलत कदम ना उठा ले …। ,,
“तो क्या.. अब मुझे अपनी औलाद से भी डर कर रहना पड़ेगा !! आने दो आज उसे घर …. क्या इसी दिन के लिए उसकी पढ़ाई लिखाई पर अपनी औकात से ज्यादा खर्च कर रहा हूँ .?? ,,
राकेश जी बहुत गुस्से में थे और उनकी पत्नी नूतन जी किसी तरह उनके गुस्से को शांत करना चाह रही थी कि नवीन घर आते ही अपने पिता राकेश जी के गुस्से का सामना कैसे करेगा ??.. और यदि गर्म खून के जोश में अपने पिता को कुछ उल्टा बोल दिया तो एक पिता कैसे बर्दाश्त करेगा?
दरअसल आज राकेश जी ने अपने हाई स्कूल में पढ़ने वाले बेटे को सिनेमा हॉल के सामने दोस्तों के साथ देख लिया जहाँ वो सिगरेट पी रहा था । उनका मन तो कर रहा था कि उसी वक्त नवीन के पास जाकर उसके कान पर दो थप्पड़ जड़ दे लेकिन उनके साथ उन्हीं के आफिस में काम करने वाला एक सहकर्मी भी था जिसके लिहाज से वो नवीन को अनदेखा करके निकल गए। लेकिन अंदर ही अंदर उनके मन में ज्वाला धधक रही थी। कितने अरमानों से वो नवीन को पढ़ा रहे थे कि एक दिन वो अपने पैरों पर खड़ा होकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर चलेगा… ।
एक दो बार स्कूल से फोन भी आया था कि नवीन आज स्कूल नहीं पहूँचा । लेकिन नवीन से पूछने पर वो बहाना बना देता कि आज कोई अध्याय समझने के लिए वो ट्यूशन टीचर के पास चला गया था ।
आज उसे सरेआम सिगरेट पीते देख एक बाप का विश्वास टूट गया था जिसके टुकड़े उनके दिल में कांच की भांति चुभ रहे थे ।
नूतन जी किसी तरह राकेश जी को शांत करने की कोशिश कर रही थी कि नवीन के घर आने की आहट से उनका कलेजा जोरों से धड़कने लगा । … राकेश जी की गुस्से में लाल आंखें देखकर नवीन सहम सा गया।
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हिम्मत करके मुंह खोलने हीं वाला था कि राकेश जी ने कांपते हाथों से एक थप्पड़ उसके मुंह पर दे मारा ,
“नालायक.. , मेरे भरोसे का ये सिला दिया तुने ??आवारागर्दी हीं करनी थी तो क्यों पढ़ाई का नाटक करता है ? आज के बाद कोई जरूरत नहीं है स्कूल जाने की… और हाँ, एक रूपया नहीं मिलेगा तुझे खर्चे के लिए । ,,
नवीन यूँ अचानक से पिता का ये रूप देखकर हैरान रह गया। उसे करारा सा झटका लगा था जिससे उसके अंदर प्रतिशोध की ज्वाला धधकने लगी । कभी पिता के आगे मुंह नहीं खोला था इसलिए कुछ बोल नहीं पाया लेकिन खून का घूंट पीकर रह गया।
नूतन जी उसे खींचते हुए दूसरे कमरे में ले गईं। बहुत समझाया लेकिन उस वक्त शायद उसके दिमाग में सिर्फ थप्पड़ की आवाज हीं गूंज रही थी । इधर राकेश जी भी धप्प से बैठ गए । आज पहली बार इस तरह नवीन पर हाथ उठाया था जिसका दर्द उन्हें खुद महसूस हो रहा था ।
ऐसा भी नहीं था कि नवीन शुरू से हीं बिगड़ा हुआ था । वो तो एक होनहार छात्र था लेकिन शायद गलत संगत में आकर वो ऐसी हरकतें करने लगा था।
आज घर में किसी ने खाना नहीं खाया । नवीन मन हीं मन ना जाने कितने प्लान बना रहा था.. “घर छोड़ कर चला जाऊंगा या फिर ऐसी जिंदगी से अच्छा जहर खा लेता हूँ….. लेकिन मर जाऊंगा तो पापा को मजा कैसे चखाऊंगा? देखता हूं जब मैं यहाँ नहीं रहूंगा तो क्या करेंगे ???” पता नहीं उसके गर्म दीमाग में क्या क्या विचार आ रहे थे ..।
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रात को उसने चुपके से उठकर माँ की अलमारी खोली । एक बार तो उसके हाथ कांपे लेकिन घर छोड़कर जाने पर कैसे अपना गुजारा करेगा ये सोंचकर उसमें रखे पैसे और माँ के कुछ गहने उठा कर जेब में डाल लिए ।
चुपके से निकलते हुए देखा कि मम्मी पापा के कमरे से कुछ आवाजें आ रही थी… । जरूर पापा अभी भी माँ से मेरी शिकायत कर रहे होंगे ? ऐसा सोचकर वो बंद दरवाजे के करीब चला आया और अपने कान दरवाजे पर लगा दिए ।
“अजी, आप अपना मन खराब मत कीजिये ।,, नूतन जी बोल रही थीं ।
“नवीन की माँ , आज मैं अंदर से टूट गया हूँ । मैंने आज नवीन को नहीं खुद को थप्पड़ मारा है…… । मैं तो बस यही चाहता हूँ कि मेरा बेटा मुझसे कई गुना तरक्की करे । जो मैं उसे नहीं दे सका वो अपने जीवन में वो सबकुछ हासिल करे। … लेकिन इस तरह गलत रास्ते पर चलकर वो कैसे अपनी मंजिल पाएगा?? गलती शायद केवल उसकी नहीं है .. मैं भी तो एक अच्छा बाप नहीं बन पाया । . मैं अभी जाकर उससे माफी मांग लेता हूँ….। ,, कहते हुए राकेश जी अपनी जगह से उठ गए ।
बाहर खड़े नवीन के पैर जैसे जम गए थे ।आंखों में पश्चाताप के आंसू थे और हाथों की पकड़ ढीली पड़ गई थी ।
राकेश जी कमरे से बाहर आते इससे पहले उसने खुद को संभाला और वापस अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया ।
थोड़ी देर में राकेश जी उसके कमरे में आए और उसे सोया देखकर थोड़ी देर भरी आंखों से निहारते हुए वापस चले गए।
नवीन के जीवन को अब नई दिशा मिल गई थी जिसने उसे माता पिता के त्याग का सम्मान करना सिखा दिया था……. ।
सविता गोयल