Short Stories in Hindi : शीर्षक पढ़कर चौंकिए मत आप कहेंगे तलाक भी पवित्र कैसे हो सकता है?
प्रस्तुत है ,इस विषय में मेरी कहानी …
प्रिया ने कुछ माह पहले ही मेरी स्कूल में शिक्षिका के तौर पर ज्वाइन किया है, नई पदस्थ हुई है। एकदम दुबली पतली ,सुंदर आंखों में गहरी कालिमा है, जीवन के प्रति थोड़ी उदासी… पहले थोड़ा परिचय हुआ शासकीय कार्य में कुछ परेशानी आने पर उसे समझाती ,मुस्कुराते… फिर बातचीत का दौर शुरू हुआ…
पता चला अपने पापा की लाडली बिटिया बीएससी करने के बाद पापा ने दूर शहर में उसकी शादी कर दी। माता पिता को जो देखना चाहिए ,वह देखा, मध्यम वर्गीय परिवार …उनका स्वयं का अपना बिजनेस ..और बिटिया की शादी कर दी …
प्रिया ने बताया, शादी के एक माह तक सब ठीक था, पर बाद में ससुराल वालों ने अपने असली रंग दिखाने शुरू कर दिए। सास ननंद जिठानी को मुझसे कुछ लेना-देना नहीं था… वह सिर्फ मुझसे काम कराना चाहते थे…
पतिदेव से प्यार के दो मीठे बोल को तरस गई… घूमना.. शॉपिंग ना बातचीत ..पर मुझे लगता रहा.. कि धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा …शायद हर शादी में ऐसा ही होता है.. मेरे माता पिता ने बड़े अरमानों से मेरी शादी की थी….
अपनी हैसियत से बढ़कर दहेज भी दिया था.. अतः मुझे लगा कि मेरी छोटी छोटी चिंताओं की बात मेरे मम्मी पापा से नहीं करना चाहिए …पर मैं अंदर ही अंदर कमजोर हो रही थी… तन से भी और मन से भी…
ससुराल दूर था ..बार बार आना जाना संभव नहीं था …मुझे बुखार आने लगा… समय पर इलाज नहीं मिला …आराम भी नहीं और बराबर खाना भी नहीं… मेरा बुखार बिगड़ कर टाइफाइड में बदल गया ,मैं कमजोर हो गई तब मेरे ससुराल वाले मुझे सरकारी अस्पताल ले गए ।
मेरी सासू मां मुझे दिन में अस्पताल ले जाकर ग्लूकोस की सिरिंज चढवाती और घर आकर फिर वही काम…. कुछ भी विरोध करने की मेरी हिम्मत नहीं थी… कभी कुछ बोलने की कोशिश भी की तो तिरस्कार का सामना करना पड़ा…
पतिदेव छोटी-छोटी बातों में तिरस्कृत करते थे… उनके हाथ भी उठने लगे थे। एक दिन जब मेरे हाथों में सीरींज थी, और मैं बर्तन मांज रही थी तब मेरी इस परिचिता जो मेरे पापा को भी जानती थी, आई और मुझे देखा और उन्होंने मेरे पापा को फोन लगाया कि आप आकर अपनी बेटी को देख कर जाओ ।
जैसे ही मेरे पापा को खबर मिली वह आए, आते-आते उन्हें रात हो गई थी। जैसे ही उन्होंने मुझे देखा मेरी हालत को देखा, उनकी आंखों में आंसू आ गए, उन्होंने मेरे ससुराल वालों से कहा कि “आपने मेरी बेटी की क्या हालत कर दी है ,नोकझोंक हुई और मेरे पापा आधी रात को किराए की गाड़ी करके मुझे घर लाए…
मैं अस्पताल में करीब एक माह एडमिट रही, मेरा हीमोग्लोबिन बहुत कम हो गया था …कमजोरी बहुत आ गई थी… मैं धीरे-धीरे ठीक हुई… मेरे पापा और मम्मी ने मुझे ससुराल ना भेजने का मन बना लिया।
मैं बीएससी तो थी फिर मैंने भी बी.एड किया फिर एम एस सी कर लिया। अब मुझे ससुराल से आए हुए 6 साल हो गए।
मेरे पापा ने मेरा तलाक का केस दर्ज कराया, पर मेरे ससुराल वाले किसी भी गवाही पर नहीं आते हैं। अभी 2 माह पहले ही मेरे पापा भी हमें छोड़ कर चले गए अब समझ में नहीं आता कि मेरा क्या होगा?
कहते कहते उसकी आंखों में आंसू आ गए ..वह मुझसे पूछ रही थी” क्यों मैडम क्या हर शादी में ऐसा होता है”?
मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा “नहीं प्रिया हर शादी में ऐसा नहीं होता है, पर किसी शादी में ऐसा हो जाता है” फिर मैंने उससे पूछा” अब तुम्हारा क्या इरादा है? वह कह रही थी,” मैडम मुझे तो दूसरी शादी नहीं करना है, मेरा मन तो अब तलाक लेने का भी नहीं है, क्योंकि तलाक को भी हमारे समाज में कहां अच्छा समझा जाता है?
तब मैंने उसे समझाया” देखो प्रिया तुमने शादी प्यार पाने के लिए , परिवार पाने के लिए , खुशी पाने के लिए की जाती है, हर शादी में पति पत्नी दोनों की चाहत होती है कि हम खुश रहे… पर कभी-कभी इस रिश्ते में इतना कुछ टूट जाता है..
विचारों में… खानपान में.. अपनेपन में… कहीं से भी किसी सूरत में दूर-दूर तक प्यार नजर नहीं आता.. और फिर वह शादी एक पवित्र बंधन नहीं… एक बोझ बन जाती है …और इस कैद से निकलना बहुत जरूरी हो जाता है। एक लड़की के लिए तिरस्कार भरी जिंदगी से अच्छी तलाकशुदा जिंदगी है।
जिस प्रकार शादी एक पवित्र बंधन है ,उसी प्रकार एक गलत शादी भी दोनों जिंदगियों को बर्बाद करती है… जिस प्रकार शादी पवित्र बंधन है.. दो दिलों को बांधने का, दो परिवारों को बांधने का, उसी प्रकार तलाक भी उतना ही पवित्र है…. दो दिलों को आजाद करने का… दो परिवारों को आजाद करने का …
एक गलत शादी को निभा कर हम कुछ भी नहीं पा सकते हैं, जैसे भी इससे आजादी मिले ले लेना चाहिए … जिंदगी भी हम सबको एक सेकंड चांस अवश्य देती है।
वह मेरी बातों को बड़े ध्यान से सुन रही थी, और उसे लगा कि एक गलत शादी को निभाने की बजाय तलाक लेना अच्छा है… तलाक लेना भी उतना ही पवित्र है।
प्रिया ने कहा कि” मैं जल्दी ही अपने वकील से मिलकर बात करूंगी।”
हम दोनों मुस्कुरा उठे।
सुधा जैन
रचना मौलिक