“नई सोच” – कविता भड़ाना

अरे रोहन बेटा, आज भी तुम ही

 सब्जी ले रहे हो?

“जी आंटी, मम्मी को तीन दिन से बुखार और कमजोरी भी है बहुत, तो में ही सब्जी लेने आया हूं। पर बेटा तुम स्कूल भी नही जा रहे हो दो दिन से, पियूष (पड़ोसन का बेटा) ने बताया था मुझे….

जी दरअसल पापा कुछ दिनों के लिए काम से बाहर गए हुए है और आभा आंटी (घरेलू सहायिका) भी अपने गांव गई है, तीन दिन पहले मम्मी को बुखार आ गया और देखभाल के लिए कोई नहीं है तो ध्यान रखने के लिए मैने स्कूल से भी अवकाश लिया हुआ है, कहते हुए रोहन अपने घर आ गया।

अब पड़ोसने आपस में खुसर – फुसर करने लगी की बताओ की हद है जरा से बुखार में अपने बेटे से “नेहा”(रोहन की मम्मी) कैसे काम करा रही है, भला लड़के भी कही अच्छे  लगते है घर के काम करते हुए,और मुंह बनाती हुई अपने अपने घरों को चली गई।

शाम को वही पड़ोसने रोहन की मां से मिलने उनके घर आई तो देखा बड़ा ही साफ सुतरा घर था, सब कुछ करीने से सजा हुआ। रोहन सब के लिए पानी लेकर आया और फिर थोड़ी देर में चाय भी लेकर आ गया।

पियूष की मम्मी ने थोड़े व्यंग से कहा… बेटा खाना भी लगता है तुम ही बना लेते हो और खी खी करके हंसने लगी

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नेहा कुछ कहती उससे पहले ही रोहन ने कहा” जी आंटी आपने बिलकुल सही कहा में घर के दूसरे कामों के साथ खाना भी अच्छा बना लेता हूं पर मुझे समझ नहीं आ रहा आप मुझे काम करते देख इतनी हैरान क्यो है? में अपने मम्मी पापा का एकलौता बेटा हूं, और मेरी मम्मी ने मुझे सब काम करने सिखाए है ताकि जरूरत पड़ने पर में अपने साथ – साथ, दूसरे का ख्याल भी रख सकूं, आज कल पढ़ाई और नौकरी के लिए बाहर भी अकेले रहना पड़ता है तो ये काम लड़के और लड़कियों दोनो के लिए समान रूप से आवश्यक भी है।

कोई भी काम सीखना गलत नहीं है, कब जरूरत आ पड़े कुछ नही पता होता।

मुझे मेरी मम्मी ने ये सब सिखाया, तभी तो आज में अपनी बीमार मां और घर को संभाल पाया हूं…..

दोनो पड़ोसने भी कुछ सोचती हुई चुपचाप बाहर निकल गई।…. 

नेहा को आज अपने बेटे और अपने दिए संस्कारों पर गर्व हो रहा था और खुशी के दो मोती, आंखों के कोरो में ठहर से गए।

स्वरचित काल्पनिक

#संस्कार

कविता भड़ाना

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