बहू ने बेटे को घर से निकाल दिया –  पूजा अरोरा

आज वृंदा जब आँगन में बैठी धूप सेंक रही थी तो पास बैठे उसके पोते-पोती गली के दूसरे बच्चों के साथ घर-घर खेल रहे थे कि अचानक उसके पोते अंश की आवाज कानों में पड़ी, “हमारे घर कोई शराब नहीं पीता, य़ह बुरी बात है | हैं ना दादी!”

मुस्कराकर वृंदा ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई और पुरानी यादों में खो गई और उसे अपनी जिंदगी का वो अहम दिन और अहम फैसला याद आ गया |

कितनी पुरानी बात है….

जैसे ही प्रशांत शराब के नशे में धुत घर में घुसा उसी समय वृंदा की कड़कती हुई आवाज आई,”खबरदार! जो घर में कदम रखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा |”

तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है यह क्या कह रही हो?” पीछे से सास शीला बोली |

“नहीं अम्मा! दिमाग खराब नहीं हुआ मेरा, आज तो दिमाग मेरा ठिकाने पर आया है | अब बहुत हो गया |” वृंदा ने गुस्से से उत्तर दिया, “दस साल विवाह को हो गए पर हर रोज शराब पीकर घर पर आना और मुझ पर हाथ उठाना बस यह सब ही तो चलता जा रहा है और अब तो मेरे बच्चे भी बड़े होने लगे हैं और इनकी बुरी आदतों की वज़ह से बच्चों में भी बुरे संस्कार आ रहे हैं |”

“अरे मर्द है थोड़ी बहुत पी लिया तो क्या हुआ? आखिर कमाता भी तो है! ” सास शीला ने अपने बेटे की तरफदारी करते हुए कहा |




” याद रखिए घर में अकेली वे ही नहीं मैं भी कमाती हूँ | मैं भी बराबर की मेहनत करती हूँ परंतु कमाने का अर्थ यह नहीं है कि इनको गलत आचरण करने की भी छूट दे दी जाए |  हमसे हर रोज का यह क्लेश बर्दाश्त नहीं होता और अपने बच्चों की मैं इस तरीके से परवरिश नहीं कर सकती |” गुस्से से वृंदा बोली |

” ठीक है! कोई बात नहीं अभी तू गुस्से में है चल हम सुबह इस बारे में बात करेंगे |  अभी इसको अंदर आने दे |” कहते हुए शीला जी ने वृंदा को हल्का सा पीछे की धकेला  परंतु वृंदा तो अड़कर खड़ी हो गई |

” नहीं अम्माँ! यही करते-करते बहुत वक़्त निकल गया और वह सुबह कभी आई ही नहीं है जिस पर कि आप अपने बेटे को समझा सके |  माफ करना आज दस  साल में पहली बार कह रही हूँ यदि आपने बाबूजी को सही समय पर रोका होता तो शायद इन्होंने कभी शराब को हाथ नहीं लगाया होता | आज मेरे बच्चे अपने पिता को शराब पीता देखते हैं | मैं नहीं चाहती कि मेरे दो बच्चे भी इस बुरी आदत को सीखे और इसका एक न एक दिन हल तो निकालना ही है इसीलिए आज से आपका बेटा हमारे साथ नहीं रहेगा |

गुस्से में वृंदा ने अपना निर्णय सुना |

प्रशांत सब कुछ चुपचाप सुन रहा था परंतु उसे अब बर्दाश्त नहीं हुआ और वृंदा को धकेलता हुआ अंदर घुस आया और गुस्से से बोला,” मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगा यह मत भूलो मेरा घर है और यहां तुम रहती हो| अगर इतनी ही दिक्कत है तो चली जाओ अपने मायके |  मैं देख लूँगा तुम्हारे भाई भाभी कितने दिन तुमको अपने साथ रखते हैं |”




बीच-बचाव करती शीला बोली, “बहू बात को मत बढ़ा | अगर बात बढ़ गई तो सोच बच्चों को लेकर भाभी के घर कितने दिन तक रहेगी? “

” अम्मा! घर  इनका हो या आपके नाम हो पर मैं इस घर से अपने बच्चों को लेकर कहीं नहीं जाने वाली हूँ | मेरे इस घर में एक शराबी और अपनी पत्नी पर हाथ उठाने वाले व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है|  यह सीढ़ियों के ऊपर जो स्टोर से  बना है वह मैंने साफ करवा दिया है आज से आपका बेटा वहीं पर जाकर रहेगा |  उसका मुझसे और मेरे बच्चों से तब तक कोई नाता नहीं होगा जब तक य़ह सुधर नहीं जाते और जिस दिन यह शराब पूरी तरह से छोड़ देंगे मैं उस दिन का इंतजार करूंगी और नहीं तो यदि इन्हें तलाक चाहिए तो मैं तलाक देने को भी तैयार हूँ |”

दोनों बच्चे बेटा मात्र 8 साल और 7 साल की बेटी भी पहली बार अपनी माँ के इस रूप को देखकर हैरान थे कि हर रोज मार खाकर रोने वाली माँ में आज इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई थी |”

सास फिर से बोली, “तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? मेरे बेटे को घर से निकालेगी |”

“नहीं अम्माँ! मेरा दिमाग आज सही ठिकाने पर आया है और यदि आज के बाद इन्होंने मुझे हाथ भी लगाया तो मैं पुलिस को बुला लूँगी और यदि आपको भी तकलीफ है तो आप भी इनके साथ अपना बिस्तर ऊपर लगा लीजिए |” कहते हुए अपने दोनों बच्चों को हाथ पकड़ा और घर के अंदर की ओर जाने लगी |




शीला लड़खड़ाते हुए प्रशांत का हाथ पकड़कर कहा,”  जा बेटा अभी तो फिलहाल ऊपर जाकर सो जा अब सुबह बात करते हैं |” आज पहली बार शीला जी को लगा था कि उनकी बहू ने जो हिम्मत दिखाई है वह सही है | सच ही तो कह रही कह रही थी उनकी बहू  वृंदा कि यदि उन्होंने हिम्मत उस समय दिखाई होती तो उनका जीवन नर्क नहीं बनता और शायद प्रशांत को अपने बाबा से ऐसी बुरी आदत नहीं लगती |”

शीला जानती थी कि प्रशांत दिल का बुरा नहीं है परंतु शराब पीते ही उसके अंदर एक हैवान जाग जाता था | उन्हें पूरा विश्वास था कि वृंदा के इस कदम से प्रशांत की आंखें खुल जाएंगी |

वृंदा अपने दोनों बच्चों को छाती से लगाए सोच रही थी काश उसने यह निर्णय बहुत पहले ही ले लिया होता |  अंदर से जानती थी कि प्रशांत भी  अपनी बीवी और बच्चों के बिना ज्यादा दिन तक नहीं रह पाएगा और शायद इसी कदम से उसकी शराब की लत छूट जाएगी |

और वृंदा का य़ह कदम सही साबित हुआ इतने में बच्चों के आपस में लड़ने की आवाज आयी और वृंदा वर्तमान में लौट आई |

दोस्तों अक्सर हम जिंदगी में कठिन परिस्थितियों में कुछ कठोर फैसले नहीं ले पाते और उसको अपना किस्मत मानकर मजबूरी में अपनी जिंदगी बिता देते हैं | जरूरत होती है कई बार दिल को मजबूत करके कुछ कठोर निर्णय लेने की और ऐसा करने से अक्सर जिंदगी बदल जाती है |

उम्मीद है हर बार की तरह यह स्वरचित अप्रकाशित एवं मौलिक कहानी आपको पसंद आएगी | अगर कहानी पसंद आए तो मुझे फॉलो करना ना भूले |

आपके कमेंट के इंतजार में

 पूजा अरोरा

 

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