शाम के साथ ही जैसे डूबते सूरज के साथ ही मन भी डूबने लगा था , रात की गहराती स्याही
उतरने लगती थी चेतना में ।बरामदे में गौरी पिछले कुछ समय में घटी घटनाओं की त्रासदी में डूबने लगी थी।
कितना प्यारा भरा पूरा परिवार ।बेटा , बहू, सात वर्ष की
चहचहाती पोती।बेटा कनाडा में , अचानक किसी दुर्घटना का शिकार हो गया । उसकी मृत्यु के बाद कितने अनुनय-विनय के बाद भी बहू बेटी को लेकर चली गई हमेशा के लिए अपने पिता के घर ।जाते समय अपने प्रिय दादा, दादी से अलग होने की पीड़ा, उसके मुँह पर झलक रही थी ।याद करते ही सिहर जाती थी उमा।
रह गये दोनों पति पत्नी उमा और शिव दोनों एक दूसरे से अपनी व्यथा छुपाते हुए और एक दूसरे को खुश रखने का प्रयास करते हुए ।उमा अपनी खुश्क आँखों में एक तीखा दर्द महसूस कर रही थी ।
शिव को सामने देख
अपने होठों पर मुस्कान लाकर बोली ” कहाँ चले गये थे आप ? कितनी देर लगा दी? बता कर भी नहीं गये क्या बनाऊं ।”
“बच्चों के लिये सामान लाना था ।कापी ,पैन ,पेन्सिल ,बिस्कुट और नमकीन ।कल से कुछ नये बच्चे भी आयेंगे।कल सुबह अनाथालय भी तो चलना है।वहां के लिये भी सामान ले आया ।”
सामान रखते हुये शिव बोले । फिर उमा के पीछे पहुंच कर उसके बालों में गजरा लगाते हुए कहा ” आज सारी रात महकोगी इस मोगरे की खुशबु मे।”
अपने को खूब खुश दिखाते हुए उमा बोली ” अरे वाह , कितने दिन बाद ।खाना क्या बनेगा? ।”
‘ मै तुम्हारे पसंद का कटहल लाया हूँ ।चलो पहले चाय बनाते हैं “
हमेशा टेलीविजन और किताबों में डूबे रहने वाले शिव अब हर समय उमा के साथ किचिन मे नजर आते थे।साथ बनाना साथ खाना ।मिल जुलकर बगीचे पौधों की देख भाल करना । अपनी छोटी छोटी खुशियाँ संग साथ बांटना ।
आस पास के झुग्गी झोपड़ी के गरीब बच्चों को पढ़ाने
लगे थे दोनों ।अपने एक मित्र की समाज सेवी संस्थाओं से जुड गये थे । जितना हो सकता था उतना दूसरों को खुशियाँ बाँट रहे थे।
तन मन धन को सेवा मे लगा कर अनन्त खुशी प्राप्त कर ने का प्रयास कर रहे थे।
समझौता
मौलिक स्वरचित
सुधा शर्मा