एक औरत के लिए सब से बड़ी चुनौती का वक़्त तब आता है, जब उसे अपने पति और बच्चों में से किसी एक को चुनना होता है।
ऐसा ही कुछ हमारी कहानी की नमिता के साथ हुआ है। नमिता एक हाउस वाइफ है और उसके पति निशांत किसी बड़ी कंपनी में जॉब करते है। एक बार निशांत को अपनी जॉब के काम से सिंगापुर कुछ महीनों के लिए ट्रिप पे जाना हुआ और कंपनी ने उसके साथ किसी एक पर्सनल को जाने की अनुमति दी और कंपनी में से ही सिंगापुर आने-जाने की टिकट, रहना, खाना सब कुछ वो लोग ही मैनेज करने वाले थे। इसलिए निशांत ने अपनी पत्नी नमिता को अपने साथ सिंगापूर चलने को कहा,
निशांत : तुम भी मेरे साथ सिंगापूर चलो, काम के साथ-साथ हम वहांँ घूम भी लेंगे, बच्चों को माँ और पापा कुछ दिन देख लेंगे।
बस उसी वक़्त नमिता सोच में पड गई, कि अब वो क्या करे ? नमिता का मन निशांत के साथ जाने का तो था मगर बच्चों का क्या ? नमिता जितना प्यार अपने पति से करती, उतना ही प्यार अपने बच्चों से भी करती है। बच्चों को उसने कभी अपने से अलग नहीं किया। बच्चों के साथ ही खाना-पीना, मस्ती, बातें करना, उनके पीछे-पीछे भागना, कभी खाना खिलाने के लिए तो कभी मारने के लिए, घूमने जाना, मूवी देखना, उनका स्कूल-टूशन, एक्स्ट्रा क्लास, डांस, ड्राइंग क्लास का टाइम सँभालना, स्कूल के लिए दोनों को तैयार करना, टिफ़िन बनाना, कभी कोई बीमार पड़े तो उसकी दवाई वगेराह का ख्याल रखना, कितना सब कुछ बच्चों का ख्याल रखना होता है,
और ऐसे में नमिता कैसे कुछ महीनों के लिए यही अपने बच्चों को अकेले छोड़ के चली जाए ? वैसे घर में निशांत के माँ और पापा बच्चों का ख्याल रखने के लिए थे, उन्होंने भी नमिता को सिंगापुर जाने की इजाज़त दे दी थी, मगर फिर भी नमिता का मन नहीं मान रहा था। वह बच्चों की आदि हो गई थी और बच्चे उसके आदि हो गए थे। नमिता का एक दिन के लिए भी अपने बच्चों को किसी और के भरोसे छोड़ के जाना मुश्किल था, चाहे वह उनके अपने ही क्यों न हो, तो ये तो कुछ महीनों की बात थी।
नमिता ने एक पत्नी के नज़रिए से भी सोचा, कि “उसे अपने पति का साथ देना चाहिए, कहीं वो उसके साथ ना गई और वहां सिंगापूर में कहीं कोई लड़की निशांत को मिल गई और उसके साथ निशांत का अफेयर हो गया तो ? निशांत का प्यार उसके लिए इतने दिनों में कम हो गया तो ? उसने बहुत सोचा, उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। ”
आखिर नमिता दो बच्चो की माँ जो थी, उसके लिए इस वक़्त अपने प्यार को या कहूं तो अपने आप को दो हिस्सों में बाँटने जैसा था। या तो अपने पति के साथ सिंगापूर चली जाए या तो अपने बच्चों के साथ घर पे रहे।
आख़िर बड़ी मुश्किल से नमिता ने निशांत को बच्चों की ख़ातिर घर पे रुकने का फैसला सुनाया। ये सुनकर पहले तो कुछ देर के लिए निशांत का दिल टूट गया, कि “अब उसे अकेले ही जाना पड़ेगा, नमिता उसका साथ नहीं देगी, मगर निशांत समज़दार इंसान था, उसे बच्चों के प्रति नमिता के लगाव के बारे में पता था, कि नमिता अपने बच्चों से बहुत प्यार करती है और उनके लिए वह जैसे सब कुछ करने को तैयार थी, वैसे ही सब कुछ छोड़ने को भी तैयार थी। ” इसलिए अब निशांत अकेला ही सिंगापूर जा रहा था।
नमिता ने निशांत को जाते हुए इतना ही कहा, कि मैं तुम्हारा इंतज़ार करुँगी और उसकी आँखें भर आती है, उसका दिल बड़ी ज़ोरो से धड़कने लगा, उसका शरीर काँपने लगता है, मगर फ़िर भी उसने अपने आप को संँभाल ही लिया।
तो दोस्तों, एक औरत शायद इसी डर के साथ जीती है, कि उसकी नामौजुदगी में कहीं उसका पति किसी और लड़की के चक्कर में ना पड जाए। बस यही सोच वह अपने आप को खूबसूरत बनाऐ ऱखने की कोशिश में लगी रहती है, अपने पति का हर पल साथ बनाऐ रखने की कोशिश में लगी रहती है और दूसरा अपने बच्चों का डर, कि कहीं उसे किसी दिन अपने पति या बच्चों में से किसी एक को चुनना पड़ा, तब वो क्या करेगी ? किस का साथ देगी ? बात जब सच या झूठ का साथ देने की होती है, तब हर औरत अपने दिल पर पत्थर ऱखकर सच और सही का ही साथ देने की कोशिश करती है, मगर बात जब प्यार की आती है, तब तो उसे बड़ी मुश्किल दौर से गुज़रना पड़ता है।
तो दोस्तों, क्या आपके साथ भी ऐसा कभी हुआ है ? और अगर आपको अपने पति या बच्चों में से किसी एक को चुनना पड़े तब आप क्या करेंगे ?
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बेला पुनीवाला