पितृपक्ष के दिनों में मंदिर के पास दान देने और दान ग्रहण करने वालों की बड़ी भीड़ लगी रहती.. सभी लोग अपने पुरखों के नाम पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करते और पंडितों को स्वादिष्ट भोजन भी कराते..
एक दिन मंदिर के पास एक बड़ी चमचमाती हुई गाड़ी आकर रुकी और उसमें से एक सेठ जी उतरे.. उन्होंने पंडित को इशारे से बुलाया और बोले , ” इन गरीब लोगों से बोल दो कि कल हलवा पूरी बंटेगा, समय पर आ जायें वरना देशी घी के व्यंजनों से वंचित रह जायेंगे “.. सेठ जी के इन अहंकार पूर्ण शब्दों को सुन पंडित जी मुस्कराने लगे और बोले, ” जैसी प्रभु की इच्छा “.. तभी थोड़ी देर में मंदिर की सफाई करने वाला बिरजू वहाँ आया.. मंदिर में शीश झुकाकर वह मंदिर के प्रांगण में आया और पंडित जी के चरण स्पर्श करके बोला, ” पंडित जी, कल मेरी माँ का श्राद्ध है..उनके नाम से मैं कुछ दान करना चाहता हूँ कृपया आप सभी लोगों को मेरी माँ के नाम का प्रसाद ग्रहण करने के लिए जरूर रोके रहियेगा.. पंडित जी बोले कि कल तो बहुत बड़े सेठ जी भी पूरी हलवा बांटेंगे परन्तु तू चिन्ता मत कर.. जैसी प्रभु की इच्छा होगी, वही होगा..
सुबह हुई.. एक छोटा सा ट्रक आकर रुका और साथ ही सेठ जी की गाड़ी भी.. एक बहुत बड़े पतीले में बहुत सारे हलवा पूरी के पैकेट बने हुए रखे थे.. सेठ जी ट्रक में बैठे लड़के से बोले, ” सुन लड़के…गरमी बहुत है,मैं गाड़ी में ए सी में बैठा हूँ, तू यह पैकेट बांट दे”.. भीड़ बढ़ने लगी थी.. उस लड़के ने वह भारी सा पतीला उतारा और मंदिर की तरफ ले जाने लगा.. मंदिर के पास वाला नाला पार करते समय जाने कैसे उस लड़के का संतुलन बिगड़ा कि पूरा पतीला उसके हाथ से फिसल कर नाले में जा गिरा.. अब तो सेठ जी आग बबूला होकर उस लड़के पर बरसने लगे..और चिल्लाते हुए वहाँ से चले गये…सब तमाशा देख रहे थे… तभी बिरजू अपना प्रसाद लेकर मंदिर में दाखिल हुआ.. उसने भगवान के सामने प्रसाद का दोना रखकर सबसे हाथ जोड़कर प्रसाद ग्रहण करने का अनुग्रह किया..
पंडित जी ने प्रसाद लेकर बिरजू से कहा, ” भगवान अहंकार से परिपूर्ण देशी घी के पकवान से नहीं.. प्रेम भाव से और सेवा भाव से की गयी प्रार्थना से खुश होते हैं.. “
#अहंकार
– स्वरचित
रक्षा गुप्ता
गाजियाबाद