करुण अन्त – डा. मधु आंधीवाल

नन्हीं सी परी उतरी है ,

आज मां के द्वार,

सब कर रहे थे ,

उसका इन्तजार

पापा की नन्ही गुड़िया ,

मां की थी परछाई,

भाई का दुलार थी ,

दादी का अभिमान,

परी होती गयी बड़ी,

सुकोमल काया 

रूप का खजाना ,

मां पापा का सपना 

अपनी गुड़िया को बनाना था दुल्हन,

देखा एक परिवार ,

गुड़िया को देख कहने 

लगे नहीं चाहिये दहेज, 

शादी होकर नये सपने 

सजा कर परी चली पिया के देश,

जो भी देखता कहता 

क्या रुप अप्सरा है,

दो तीन दिन बाद ही 

आने लगा नया चेहरा सामने,

सास ननद के ताने 

कुछ ना लाई दहेज में ,

मागां नहीं तो सूखा,

 विदा कर दिया ,अब देख 

हम क्या करते हैं ,

और बस होगया तांडव शुरू ,

परी बेचारी क्या करती ,

रोती अपने भाग्य पर,

बस एक दिन गया पड़ गया पर्दा,

अखबारों पेज पर छपा था ,

दहेज के लिये जला दिया एक बिटिया को…..

           

डा. मधु आंधीवाल एड

अलीगढ़

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