गीता ने घड़ी देखी”हाय राम!सात बज गए?मम्मी पापा मार्निग वाॅक से आ गए होंगे कहकर उठने की कोशिश की तो रमन ने उसे वापस खींच लिया कहते हुए “कोई लाम पे जाना है क्या ?आज संडे है थोड़ी देर और रूको ना?”मन तो गीता का भी था सुबह-सुबह की मीठी नींद की बात ही कुछ और होती है! यूं ही मान मनव्वल में दस पंद्रह मिनट तो सरक ही गए!
कपड़े ठीक कर खुले बाल समेटती बाहर आई तो सासू मां उमा की उलहाने भरी नजरों का सामना करती किचन में पहुँची सासू मां ने अपनी तरकश का एक बाण चला ही दिया”भई! हमें तो वाॅक से आते ही चाय ना मिले तो सारा दिन ही बरबाद हो जाता है!ऐसा है कल से हमें समझा देना मैं खुद ही बना लिया करूंगी फिर तुम हमारी चाय की फिक्र छोड़कर आराम से पड़ी सोती रहना।
कैसे कहती कि सासू जी अपने बेटे से पूछो
पर उसने धीरे से कहा”आज इतवार था ना इसलिए देर हो गई “।
“अरे!इतवार तो रमन के लिए था बेचारे को हफ्ते का एक दिन ही तो चैन से देर तक सोने के लिए मिलता है”कहते मम्मी जी कैसे भूल गई कि गीता भी ऑफिस जाती है उसका भी एक ही दिन आराम से उठने का करता है!
वैसे तो गीता और रमन अकेले रहते थे पर अब दो चार दिन पहले ही गीता के सास-ससुर दिवाली मनाने आए हुए थे!
गीता का नौकरी करना उमा जी की आँखों में शूरू से ही खटकता था!फिर रमन हमेशा से कामकाजी लड़की से शादी करना चाहता था जिससे दोनों कमाऐंगें तो और अच्छी तरह से रह सकेंगे!दोनों में अच्छी अंडरस्टेंडिंग थी रमन छुट्टी के दिन गीता का हाथ भी बंटा देता।
गीता खाना बनाती तो कितना भी बढ़िया बना हो उमा जी खोज खोज कर कोई ना कोई नुक्स निकाल ही देती!मजाल है जो उनके सामने रमन और उसके पापा दो शब्द भी तारीफ के निकाल दें!
उमा जी जब तब गीता को बच्चे के लिए टोकती रहतीं,जब गीता कहती कि अभी रमन भी तैयार नहीं हैं फैमिली बढ़ाने के लिए तो उमा सारा दोष गीता के मत्थे मढ़ कर कहतीं “तुम ही नहीं चाहती सोचती होगी कौन झंझट में पड़े नौकरी जो छोड़नी पड़ेगी?और तो और वे एक दिन गीता को टेस्ट कराने के लिए भी ले जाने को कहने लगीं!रमन के टेस्ट कराने को कभी नहीं कहतीं।
रमन पहले अच्छी तरह सैटल होकर तब बच्चे के चक्कर में पड़ना चहता था यह डिसिजन उसी का था!पर उमा जी भला बहू को क़ुसूरवार ठहराए बिना कहां मानने वाली थीं।
रमन को अक्सर ऑफिस से आने में देर होती तो घर में शांति रहती पर अगर कहीं गलती से भी गीता किसी मीटिंग में फंस जाए या किसी का फेयरवैल पड़ जाए गीता बता भी दे तो उमा जी का बड़बड़ाना जो चालू होता कि मत पूछिये !कहीं भूल से भी रमन गीता के पक्ष में एक शब्द भी मुंह से निकाल दे तब तो भूचाल आया ही समझो।
एकदिन रमन का एक दोस्त अपनी बीवी के साथ आया चारों बहुत टाइम बाद मिलकर बहुत ऐक्साईटेड थे जोर जोर से बातें करते हुए ठहाके लगा रहे थे!
उनके जाते ही उमा जी ने गीता को आड़े हाथ लिया”अरे!बाहर वालों के साथ इतनी जोर से बातें करना और ठहाके लगाना भले घर की बहू बेटियों को शोभा देता है क्या?”उमा जी को रमन के ठहाके लगाने पर कोई एतराज नहीं पर गीता हंस ले यह गवारा नहीं।
गीता के बस इतना कहने पर कि रमन और उन लोगों के साथ मैं भी हंस ली तो क्या हो गया?
बस उमा जी का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया”अब तुम रमन की बराबरी करोगी क्या?कमाने लगी हो तो बड़ी तोप हो गई क्या?हमारे घर में ये बेशरमी नहीं चलती!रमन तू भी समझ ले इतना सर पे बिठाऐगा तो सर पर चढ़कर नाचेगी।इसीलिए मैं शुरू से काम करने वाली बहू के खिलाफ थी!चार पैसे क्या कमाने लगीं तो अपने आप को खुदा समझने लगीं!
आऐ दिन उमा किसी ना किसी बात पर गीता की गलती निकाल कर उसे कटघरे में खड़ा किये बिना नहीं मानती!भले ही गलती किसी की भी हो!
अपनी मां के आने से अपने घर की चैन शांति भंग होते देखकर रमन और उसके पिता ने उमा जी को समझाया कि छोटी छोटी बातों पर हर चीज के लिए गीता को ही दोषी करार देना कहाँ तक उचित है!ये करके वो गीता की नज़रों में अपनी इज्ज़त खो देगी!
दोस्तों
कुछ सासों को सिर्फ बहुओं की गलतियां ही नज़र आती हैं उनके मन में यह विचार कूट कूट कर भरा होता है कि गलती चाहे बेटे की ही क्यूँ ना हो कुसूर बहू का ही होता है।बहू को क़ुसूरवार ठहरा कर उन्हें आत्मिक शांति मिलती है!
कहीं आप भी तो ऐसी नहीं हैं या भविष्य में बन तो नहीं जाऐंगी।
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धन्यवाद!
आपकी सखी
कुमुद मोहन