ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा – डॉ. पारुल अग्रवाल

प्रिया आज जब शाम को  की आज शाम को टहल रही थी तो पीछे से किसी ने डॉक्टर प्रिया कह कर आवाज़ दी, प्रिया एकदम से चौंक गई क्योंकि कम ही लोग उसके नाम के आगे डॉक्टर लगाते थे। उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसकी ही सोसायटी में रहने वाली नीरजा थी। 

औपचारिक बातचीत के बाद नीरजा ने बताया कि जब उसकी छोटी बेटी स्कूल चली जाती है तब वह पेंटिंग की कक्षाएं करने जाती है। पेंटिंग का शौक उसको बचपन से ही है।उसने प्रिया से ये सब बताते हुए ये भी कहा कि उसकी बड़ी बेटी का एडमिशन आगे की शिक्षा के लिए दूसरे शहर में हो गया है और छोटी बेटी भी कुछ सालों के बाद आगे की पढ़ाई के लिए बाहर चली जाएगी। 

अब बच्चों के बाहर चले जाने के बाद उसके पास काफी समय बच जाया करेगा, ऐसे में खाली रहने पर कहीं वो किसी निराशा और कुंठा का शिकार ना हो जाए इसलिए तब वो अपनी पेंटिंग की कक्षाएं भी शुरू करेगी। फिर बातों-बातों में उसने प्रिया की भी तारीफ करते हुए कहा कि आपने बहुत अच्छा किया जो अपने बच्चों के छोटा होने पर भी अपने काम को नहीं छोड़ा और अपने नाम के आगे डॉक्टर भी जोड़ ही लिया।

 तमाम संघर्ष के बाद आज अपनी जिंदगी को व्यवस्थित कर लिया। मैं तो आपको एक आदर्श के रूप में देखती हूं। नीरजा को अपनी तारीफ़ करने के लिए धन्यवाद कहकर प्रिया आगे की तरफ बढ़ गई। आज उसे ऐसा लगा जैसे उसके त्याग और मेहनत को कुछ हद तक अपना मुकाम मिल गया हो पर उसके ज़ेहन में कहीं ना कहीं पुरानी यादें फिर से ताज़ा हो गई। 

उसे याद आया वो समय जब उसने बी.एड में एडमिशन लिया था, उस समय उसकी बेटी सिर्फ चार वर्ष की थी। उसके बी.एड कोर्स कहने को तो एक साल का पर उसकी कक्षाएं काफ़ी लम्बी चलती थी , कभी कोई फाइल पूरी करना, कभी भी किसी विषय की अचानक से परीक्षा का आ जाना, कभी किसी भी प्रोजेक्ट को पूरा  की समय-सीमा पास आ जाना बस ये ही लगा रहता था उस पर उसके सास-ससुर भी दूसरे शहर में रहते थे। 

इन सब के साथ चार साल के बच्चे का ध्यान रखना एक चुनौती साबित हो रहा था पर अब उसने ठान लिया था कि रूकना नहीं है हालांकि अपनी सोसायटी को अपने बारे में उसने खुसर-पुसर करते हुए कई बार सुना, अपने आपको उसका दोस्त बताने वाली महिलाओं को पीठ-पीछे मज़ाक बनाते देखा।

अपने रिश्तेदारों को बच्चे का ख्याल ना रखकर अपनी जिंदगी जीने वाली मां का ताना भी सुना। कई महिलाओं ने तो ये तक कहा कि अरे हमारे पति तुम्हारे पति की तरह सपोर्टिव नहीं है, इसलिए हम तो ऐसा चाहकर भी नहीं कर सकते। एक बार तो एक साथ की ही मित्र ने ये भी बोला एक ही बच्चा है ना, इसलिए सब कर लेती है।

 दो बच्चे हों तो इंसान का तो पूरा समय उन्हें पालने में ही निकल जाए। जितने मुंह उतनी बातें,पर अब उसने सोच लिया था कि रूकना नहीं है, बी.एड के पूरा होते ही उसने एम.एड में भी एडमिशन ले लिया। नौकरी के साथ साथ पीएचडी भी पूर्ण की। कई बार तो अपने असाइनमेंट और परीक्षा की तैयारी में कई रातों की नींद भी त्याग दी

क्योंकि जब आखों में सपने भरे हों तो नींद कहां से आती। धीरे धीरे लोगों केमुंह भी बंद हो गये। अब उसके पास फालतू बातों के लिए कोई समय नहीं है, जिंदगी भी अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रही है। उसे ये भी पता है कि कल को उसकी बेटी भी जब अपनी पढ़ाई के लिए बाहर चली जाएगी तो वो किसी निराशा और अकेलेपन  का शिकार नहीं होगी।

इस कहानी  के माध्यम से मेरा,अपनी बात रखने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि हम महिलाएं अपने-आप को भूलकर अपना सारा समय अपने परिवार में लगा देती हैं जबकि हमारे भी अपने शौक और खूबियां होते हैं। हमें अपने इन शौक और खूबियों को जिंदा रखना है क्योंकि कल जब बच्चे बड़े होकर अपनी दुनिया में लगें हो तब हम तन्हाई को ही

अपना साथी ना बना लें। किसी भी तरह की तनाव पालने से अच्छा है कि हम एक दूसरे में कमी निकलने ना निकालें,बल्कि सीख लें। जो हम करना चाहते हैं,वो करें क्योंकि ये जिंदगी ना मिलेगी दोबारा।

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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