वो आई……(हास्य व्यंग रचना) – डॉ उर्मिला सिन्हा

  ‘वो’आपको यत्र तत्र सर्वत्र मिल जायेंगी। बागों में , बहारों में , गलियों में , चौबारे में, गांव में, शहर में , स्कूल में, कालेज में। उनकी परिचय देने की जरूरत नहीं है वे अपने आप में परिचय है।

चांदनी से उन्होंने गोरा रंग चुराया है। फूलों की कोमलता , परागों की सुरभि , हवाओं की तीव्र गति सभी उनमें विद्यमान है।वे सुगन्धित वायु के झोंके के समान अचानक मण्डली के बीच में प्रकट होती है और आप हम सभी को अपने सुगंध से सुवासित कर जिस तेजी से प्रवेश  है

उसी तेजी से प्रस्थान भी कर जाती हैं। उनकी साड़ी,सूट, लहंगा या यूं कहिए कि समय स्थान के अनुसार आधुनिक परिधान जो उनके कोमल काया पर सुसज्जित रहता है कि सरसराहट भर हमारे आपके पास शेष रह जाता है।

आप मेरी ओर तिरछी नजरों से न देखिए मैं कोई पहेली नहीं बुझा रही ;खुले शब्दों में उनकी प्रशंसा कर रही हूं या उनका व्यापक चरित्र चित्रण कर रही हूं__अपने शब्दों में।

     आप अगर किसी दफ्तर या प्रतिष्ठान में कार्यरत ईमानदार , परिश्रमी और कार्य कुशल कर्मचारी हैं , चाहे आप किसी उम्र , धर्म और लिंग के हैं : आप जी-जान से अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं । अपने जिम्मे के काम को पूरा कर चैन की सांस लेते हैं इस उम्मीद पर कि बास तरक्की नहीं तो प्रशंसा के दो शब्द जरुर कहेंगे। ठीक उसी समय’ वो’ वहां प्रवेश करतीं हैं ।नख से शिख तक सजी-धजी जैसे ब्यूटी पार्लर से सीधे चली आ रही है।वो आपके पास इतरायेंगी ,इठलायेंगी ,

आंख भौं चमकाएंगी आपको हर तरह से वशीभूत कर आपके क‌ई महीनों के परिश्रम से सम्पादित कार्य का कुछ इस तरह आगे बढ़ बास से वर्णन करेंगी कि बास उसकी कार्य की सफलता का सारा श्रेय उन्हीं को देंगे। जैसे—आप के समान अनाड़ी, अयोग्य व्यक्ति ने अगर कार्य सिद्ध किया तो वह वो के कुशल निर्देशन से ही…. और आप चारों खाने चित।

आपकी साधारण वेशभूषा, सपाट चेहरा ,मिमियाती आवाज सफाई में एक शब्द भी नहीं कह सकेंगी। अगर आप स्थिति स्पष्ट करना भी चाहें तो उनके रुप यौवन , आकर्षक वाक् चातुर्य के समक्ष आपकी एक न चलेगी। आप मन ही मन कुढ़ने और उस घड़ी को कोसने के सिवा कुछ कुछ नहीं कर सकेंगी  … जिस घड़ी में वो आपकी सहकर्मी बनीं।



  अगर आप गृहिणी हैं । पाक-कला में निपुण हैं। हृदय से अपने पति, बच्चों की देखभाल करती हैं । सास-ससुर की सेवा,ननद-देवर का सत्कार अपना धर्म समझती हैं । किसी विशेष अवसर पर घर को कलात्मक ढंग से सजा_संवारकर विशेष रूप देती हैं। मेहमानों के लिए सुबह से रसोईघर में क‌ई प्रकार के स्वादिष्ट,चटपटा व्यंजन मर-मर कर पकाती हैं । व्यंजनों की खुशबू से घर क्या मोहल्ला और गली सुवासित हो उठता है। मेहमान जी भर कर खाते हैं

और भोजन के प्रशंसा के लिए उचित शब्द तलाश ही रहे होते हैं कि ठीक ऐन वक्त पर’ वो ‘ प्रकट होती है ।वो कोई भी हो सकती हैं आपकी जिठानी , देवरानी ,ननद, मुंहबोली बहन ,सखी या कभी कभी सास भी ।वो तो वो ही रहेंगी , उम्र से कुछ नहीं होता वह भी स्त्रियों की। आकर्षक दिखने की कला में वो पारंगत हैं। मेहमानों के समक्ष अपनी चूड़ियों से भरी कलाईयों को छमकाऐंगी ,जतन से की गई मेकअप का जलवा दिखाएंगी__

“और लीजिए भाईसाहब….”

“ओह मिसेज फलाना आपने कुछ लिया ही नहीं …;””आप ही लोगों के लिए इतना सबकुछ बना है…!”

 इसी तरह के कुछ आम  रटे रटाए सदाबहार जुमले पेश करेगी और पार्टी के सफलता का सारा श्रेय स्वयं ले जाएंगी।

मेहमान भोजन का स्वाद भूल उस कामिनी के मेहमान नवाजी पर फूले नहीं समाऐंगे और आप….पर्दे के ओट से मुड़ी तुड़ी साड़ी , तेल-मसाले के गंध से चुपड़ा शरीर , दिनभर के जी-तोड़ मेहनत को इस तरह लहुलुहान होते देख कटकर रह जायेंगी।। अब आपके पास समय कहां है या इतना आता ही कहां है ….!

कि मेहमानों का दिल इन अदाओं से जीत लें। अपने आप को कोसती आप मुंह फुलाए जूठे बर्तन समेटने लगती है और वो आपकी बनाई गई पकवानों को वैसे चटखारे लेकर खायेंगी जैसे आप पर एहसान कर रही हों।

अगर आप स्कूल या कॉलेज में पढ़ने वाली सीधी-सादी अध्ययन प्रिय छात्रा हैं । प्रतियोगिता में आपकी गहरी रुचि है फिर तो वो आपको पग-पग पर मिलेंगी। भले ही वो पढ़ाई लिखाई में औसत हों। रिजल्ट साधारण हो । इससे क्या ___वह तो कालेज की धड़कन हैं ।

जिधर से भी गुजरेंगी अपनी बांकी अदा से घायल करने की कोई कसर नहीं छोड़ेगी। निष्कर्ष यह है कि वो हर जगह, मौके पर बाजी मार लेने में अक्सर कामयाब भी हो जाती हैं…. छोड़ जाती हैं प्रशंसा , उपलब्धि के वास्तविक हकदार के लिए खीझ, कुंठा, ग्लानि और हीन-भावना।

अगर आप अपने घर गृहस्थी या किसी संस्था की प्रमुख हैं तो वो से सामना बारम्बार होगा। उन्हें आपकी कार्यकुशलता का श्रेय लेकर आपको‌ अक्षम साबित करना है।वो आपके लिए कभी भी उपयोगी सिद्ध नहीं होंगी क्योंकि कार्य के प्रति गम्भीरता और उत्तरदायित्व की भावना उनमें है ही नही।उनकी मनोवृत्ति है सिर्फ वाहवाही बटोरना और दूसरे को बेवकूफ बनाना। अपने मोहक व्यक्तित्व का नाजायज फायदा उठाना। आप क्या समझती हैं

उन्हें सिर‌आंखों पर लेने से वो आपकी एहसानमंद हो जायेंगी ।अपनी प्रशंसा से आप पर मेहरबान होंगी तो आप धोखे में हैं। पीठ पीछे आपका मजाक उड़ाना , कैसे अपने लटके-झटके से आपको चारों खाने चित किया इसका रोमांचक वर्णन अपने मित्रमंडली में करेंगी। अपने आप को सर्वश्रेष्ठ घोषित करना उनका शगल है। कार्य की गरिमा से उनका कोई लेना-देना नहीं। किसी भी प्रोजेक्ट को अंजाम तक पहुंचाने में उसकी सफलता के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े ,क्या क्या मुसीबतें झेलनी पड़ी , कार्यसिद्धि के बाद उसका क्या अच्छा या बुरा परिणाम होगा इसमें उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं।



 वो नींव का पत्थर होने में नहीं बल्कि मेहराब की नक्काशी दार बेल-बूटा बनने में रुचि रखतीं हैं। कार्य दक्षता से उनका कोई लेना-देना नहीं।उपरी चमक-दमक वाक्चातुर्य , रुप लावण्य , नित्य नए फैशन, आधुनिक परिधान, जादू भरा आकर्षक व्यक्तित्व ही उनका वास्तविक हथियार होता है।

अब आपको समझ आ गया होगा कि वो कौन हैं? अगर वो आपकी सहकर्मी हैं तो कार्य सम्पादन का श्रेय उन्हें ले जाने दीजिए। आप कत‌ई हतोत्साहित नहीं हो । आखिर कबतक लोगों को बेवकूफ बनाएंगी। आप बिना किसी उत्तेजना के धैर्य पूर्वक अपनी स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश करें। फिर भी आप की कोई न सुने तो अपना रक्तचाप न बढ़ाइए वरन आत्मविश्वास से काम लीजिए।उनका छद्म रूप कभी न कभी लोगों के समक्ष आयेगा और आप अग्नि में तपे कुंदन के भांति सबके नज़रों पर छा जायेंगी।

 अगर आप किसी भी कार्यालय या संस्था की प्रमुख हैं तो सावधान हो जाइए। क्योंकि वो अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए आपके किसी भी कुशल सहकर्मी या अधीनस्थ मातहत का निराशाजनक तस्वीर आपके समक्ष प्रस्तुत करने में जरा सा भी संकोच नहीं करेंगी।अपनी धवल दंतपंक्ति , नाजुक लिपिस्टिक लगे होंठ , कजरारे तिरछे नैन , सुरीली आवाज़ , नाज-नखरा , लटके-झटके का प्रयोग आपको बरगलाने के लिए निश्चित तौर पर करेंगी।दक्ष कर्मचारी जो वास्तविक तरक्की या प्रशंसा का पात्र है उसका हक मारकर स्वयं बाजी मारी ले जाना वो अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती हैं और अपनी कुचेष्टा में शत-प्रतिशत सफल भी हो ही जाती हैं।

वो कोई भी हो सकता है स्त्री या पुरुष?

अतः आप हम सभी वो से खबरदार रहें।अपनी जिम्मेदारियों को मिल बांटकर सामर्थयानुसार उठायें।अपनी पद की गरिमा के प्रति जागरूक रहें। किसी को हावी न होने दें।

  और हंसकर कहें,”बामुलाहिजा बाअदब,बा होशियार” वो”की सवारी आ रही है….!”

 (यह मात्र मनोरंजन के लिए लिखी गई हास्य व्यंग रचना है)

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना–डॉ उर्मिला सिन्हा

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