भूरा नाम था उसका,,बहुत गोरा बिल्कुल अंग्रेज जैसा,,कदाचित अंग्रेज ही हो,,वो कौन था,कहां से आया था,,कोई कुछ नहीं जानता था,,किसी से मांगता भी नहीं,,कोई दे देता तो खा लेता,,
हमारे घर के नीचे कई दुकानें बनी हुई थी,,ऊपर 4 परिवार किराये से रहते थे,,इसी प्रकार सामने भी भविष्य में उपयोग के लिए दुकानें बना दी गईं थी,,पर सब खाली थीं,,
उन्हीं दुकानों के सामने चबूतरे पर वह बैठा या लेटा रहता,,बहुत कम बोलता,,जवान था,,यही कोई 25-30 साल का,,कोई काम बता देता तो कर देता,,मंद बुद्धि था शायद,,
कभी-कभी वह 4-6 दिन के लिए गायब हो जाता तो निगाहें ढूंढ़ती उसे,,
एक दिन पड़ोस में रहने वाली तिवारी आंटी की तबियत खराब हो गई,,अंकल उन्हें हॉस्पिटल ले गये दिखाने,,वहां उन्हें बैड पर भूरा लेटा हुआ दिखाई दिया,,
बड़ी हैरत हुई उन्हें,,इसे क्या हुआ,,वह उसका हालचाल जानने के लिए उस ओर बढ़ गये,,तभी उन्होने वार्ड बॉय को एक बिगड़ैल लड़के से बात करते सुना,,अब यह सब बंद करो तुम,,मर जायेगा यह,,
तिवारी जी उस लड़के को भी जानते थे,,अब्ब्ल दर्जे का नशेड़ी था वो,,
भूरा अर्धबेहोशी की हालत में पड़ा हुआ था,,दिल भर आया उनका,,उसे हुआ क्या है यह जानने के लिए कुछ देर बाद वो उस वार्ड बॉय से मिले,,तो जो उसने बताया,,उसे सुनकर तिवारी जी की आत्मा चीत्कार कर उठी,,
वह बोला,,यह लड़का हर 2 महीने बाद इसे लेकर आता है और इसका खून बेचकर,,पैसे लेकर चला जाता है,,बार-बार ऐसा करने के कारण बहुत कमजोर हो गया है यह,,कुछ दिन और ऐसा चला तो यह मर जायेगा,,
हे भगवान,,ऐसे नरपिशाच भी हैं इस दुनिया में,,
तिवारीजी ने उसको जूस पिलाया और छुट्टी करा के अपने साथ घर ले आये,,उनके कोई सन्तान नहीं थी,इसी सिलसिले में वो हॉस्पिटल गये थे,,
उस दिन के बाद उन्होंने अपने घर में एक छोटा सा कमरा उसे दे दिया और आजीवन भूरा उनके साथ उनके संरक्षण में रहा ,,
कमलेश राणा
ग्वालियर