जेठानी जी आप तो यशोदा मैया बन गई!! – चेतना अग्रवाल

“सिर्फ जन्म देने से कोई माँ नहीं बन जाता। माँ बनने के लिए दिल में मातृत्व का एहसास होना जरूरी है…. जो तुम्हारे अंदर बिल्कुल नहीं है।” समीर गुस्से से चिल्ला रहा था। “क्या कमी कर दी मैंने अपने मातृत्व में… क्या नहीं मिल रहा रूही को… समय से खाना, दूध… पढ़ाने के लिए टीचर … Read more

रुठी हुई लक्ष्मी वापस आ रही है…. भाविनी केतन उपाध्याय  

रिया अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी और आज वो अपने किए पर पछता रही है.… अब उसे आदित्य के बगैर जीना जैसे जन बिन मछली ऐसा प्रतीत होता था तो उसने बिना वक्त गंवाए और बिना किसी की बात में आकर बिना सोचे समझे उसने अपनी ग़लती सुधारने के लिए आदित्य को फोन लगाया। … Read more

तिरस्कृत कौन – ऋतु अग्रवाल 

   “रोज रोज एक ही बात! थक गया हूँ तुम्हारी बकवास सुनकर। तुम समझती क्यों नहीं? जितनी मेरी आमदनी है उतना ही तो खर्च करने के लिए दे सकता हूँ। तुम्हें मेरी आमदनी के हिसाब से ही खर्च करना चाहिए।” रोज रोज की किचकिच से अभिषेक परेशान हो चुका था।        “अभिषेक! तुम्हारा तो रोज का रोना … Read more

तिरस्कार का तिरस्कार – सुभद्रा प्रसाद 

सूर्यास्त का समय था |श्याम लाल पुल पर खड़े डूबते सूरज को एकटक देख रहे थे |पुल पर सन्नाटा था |शीतल हवा बह रही थी |श्याम लाल को  अच्छा लग रहा था | वे शांत और स्थिर खड़े थे, पर उनका मन तेजी से अतीत की ओर दौड़ रहा था आज उनकी पत्नी का जन्म … Read more

फूल जैसी लड़की(HEIDI) -लेखिका -योहन्ना स्पायरी-(रूपान्तर =देवेंद्र कुमार)

एक थी लड़की सुन्दर सलोनी लेकिन अनाथ। उसके पिता एक दुर्घटना में मारे गए इसी दुःख  में माँ भी चली गई। नन्ही हाइडी को उसकी मौसी ने पाला था।वह स्विट्ज़रलैंड के एक गांव में रहती थी, तभी एक समस्या आ गई। हाइडी की मौसी को शहर में नौकरी मिल गई।वह हाइडी को अपने साथ नहीं … Read more

हूँ तो मैं भी पिता ही ना!! कोई पत्थर तो नहीं…. – चेतना अग्रवाल

वह उसके कलेजे का टुकड़ा थी… ये बात आज तक कोई ना जान सका। आज जब सुबह रेवती जी सौरभ जी के लिए चाय लेकर कमरे में पहुँची तो देखा वो उसकी तस्वीर हाथों में लेकर फूट-फूटकर रो रहे थे, उन्हें रोता देख रेवती जी की आँखों में भी आँसू आ गये। वो तस्वीर वाली … Read more

आखिर दिल जीत ही गया – ज्योति आहूजा

बहुत दिनों से संध्या के दिल और दिमाग में एक लड़ाई चल रही थी। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक ना एक बार ऐसा समय अवश्य आता है जब उन्हें दिल अथवा दिमाग किसी एक को  चुनना पड़ता है अर्थात किसी एक पर विश्वास करके जीवन पथ पर आगे बढ़ना पड़ता है। परंतु क्या जो … Read more

बहन का ससुराल क्या घर नहीं होता!! – अर्चना खंडेलवाल

मनोरमा जी ने अपनी दोनों बेटियों को बड़े ही लाड़ प्यार से पाला, अच्छी शिक्षा और परवरिश दी। दोनों बेटियां दीप्ति और सोनल  काफी समझदार और संस्कारी थी। अपने पति को खोने के बाद मनोरमा जी पहले तो टूट गई थी, फिर बच्चों की परवरिश के लिए मजबूत बनी। घर और बाहर अच्छे से संभाला। … Read more

ठेंगना (कहानी ) – डाॅ उर्मिला सिन्हा

डाॅ उर्मिला सिन्हा       इस भरे -पूरे परिवार में ..ठेंगना और इसके जन्मदाता की जरा सा भी इज्जत नहीं…कहने को सभी सगे…किंतु ठेंगना के पिता का अर्द्धशिक्षित होना ..मां का साधारण रंग-रुप ..मोट-महीन सब घरेलु कार्य करना ..उसपर ठेंगना जैसा पुत्र..चपटी नाक ,तवे जैसा रंग ,कंजी आंखें और लम्बाई सामान्य से कम।     मां-बाप के जिगर का … Read more

“तिरस्कृत” – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा 

 बाबूजी आप भी अंदर आइए सब लोग आ चुके हैं। बस आप के लिए ही सब रूके हुए हैं । पूरा कमरा सजा हुआ था। उसी बेल बूटो के बीच सजी-धजी डॉल की तरह तीन साल की भतीजी केक के सामने खड़ी चहक रही थी। बड़े भैया ने बेटी के  जन्मदिन पर सबको बुलाया था। … Read more

error: Content is protected !!