“ग़लतफ़हमी” – मंजू सक्सेना

उसकी गोद मे खूबसूरत हैन्डराइटिंग मे लिखा पत्र खुला पड़ा था जिसे वो एक घंटे मे कमसेकम बीस बार पढ़ चुकी थी…उसकी पलकों की लम्बी खूबसूरत बरौनियाँ आँसुओं से तर थीं पर पुतलियाँ थीं कि उस कागज़ के टुकड़े से हटने का नाम ही नहीं ले रही थीं।मात्र एक ग़लतफ़हमी ने क्या से क्या कर … Read more

ना जाने मेरी दोस्त कहां खो गई –   नीतिका गुप्ता

रक्षाबंधन के अवसर पर मायके आई रीमा अपने पसंदीदा उसी कोने में बैठी है जहां परेशान या दुखी होने पर शादी से पहले बैठा करती थी।  शादी से अब तक 2 सालों के अंतराल में जैसे अपना यह कोना भूल ही गई थी… ऐसा होता भी क्यों ना.. इतना प्यारा ससुराल जान छिड़कने वाली सासू … Read more

  रिश्ता दोस्ती का – गीता वाधवानी

सार्थक के लिए आज की सुबह बहुत अलग थी। उसकी आंखों में आंसू थे और दिल में बेबसी कि वह अपनी मासी को बचाने के लिए सब कुछ करते हुए भी ना कम है। ईश्वर ने जो लिखा है भाग्य में, होगा तो वही। उसे कौन बदल सकता है।         सार्थक और उसकी पत्नी सुहानी दोनों … Read more

दोस्ती  – गोमती सिंह

 ——-वे स्कूल, काॅलेज आज भी गवाह हैं जहाँ पाँच दोस्त राजेश, सुधीर ,अमित,भानु  तथा नरेन्द्र प्रायमरी से लेकर हायर सेकेंडरी तथा स्नातक तक की पढ़ाई एक साथ किए । वह स्टेडियम भी यथा स्थान बना हुआ है जहाँ वे लोग खेला करते थे ।             उस शहर का चप्पा चप्पा उन पाँचों की दोस्ती का … Read more

एक अजनबी दोस्त – डॉ पारुल अग्रवाल

अपराजिता एयरपोर्ट पर बैठी अपनी उड़ान का इंतजार कर रही थी। नितांत अकेली, बस कोई साथी था तो उसके मन में उठने कई सारे ख्याल। उसके दिमाग में कभी कुछ चलता,तो कभी कुछ। यहां कहने को तो वो अकेली थी पर ये अकेलापन शायद अब उसका सबसे अच्छा साथी था क्योंकि ये उससे कुछ सवाल … Read more

 आंसू… – कीर्ति रश्मि ” नन्द

 “ऑनलाइन राखी भेज दो अपने भाई को” प्रकाश जी ने रचना को समझाते हुए कहा।      ” इसकी कोई जरूरत नहीं है जब इतने सालों से नहीं भेज रही हूं तो अब कैसे …” कहते कहते रचना की आंखे भर आई गला रूंध गया।     उसकी आंखों के सामने उसके छोटे भाई की छवि घूमने लगी… उसके … Read more

वो लड़का… एक फ़रिश्ता – कीर्ति रश्मि नन्द

बात उन दिनों की है जब हमारी नई नई शादी हुई थी,होता है न अक्सर ने नवेली दुल्हन को लापरवाह समझा जाता है मुझे भी समझा जाता था। मेरे पति श्रावस्ती जिले में कार्यरत थे मैं भी उन्हीं के साथ रहती थी , कुछ कारणों से हमें अपने गांव चंदौली जिले आना पड़ा था , … Read more

मेरे साथ चलो शैलजा ” –   सीमा वर्मा

“पापा नहीं रहे “ ” क्या! कब ? “ जब शैलजा ने फोन करके बताया तो मैं  ‘रुहिका’ एकदम से चौंक पड़ी।  ‘कल सुबह … ही हार्ट अटैक से ‘  रोज की तरह उसदिन भी मैं अल्लसुबह ही जगी थी कि शैलजा का फोन आ गया। मैं और शैलजा बचपन की मित्र हैं। हम दोनों … Read more

चंगु और मंगू की यारी – बेला पुनीवाला

  चंगु और मंगू दोनों बड़े पक्के दोस्त थे। बचपन से ही साथ में ही खाना,पीना, घुमना, फ़िरना, पढ़ना, लिखना, खेलना, कूदना, सब कुछ साथ मिल के ही करते थे। दिन गुज़रते गए।         चंगु और मंगू दोनों अब बड़े हो गए। मस्ती में एक नंबर और पढाई में ज़ीरो नंबर। ” इसकी टोपी उसके सर,”  यही … Read more

अपनेपन की खुशबू – कंचन श्रीवास्तव

डोर बेल ने रीमा का चेहरा खिला दिया। मोबाइल छोड़कर दरवाजे की तरफ लपकी,हो न हो पापा या भाई होंगे। हो भी क्यों न रईस घर की इकलौती बेटी जो ठहरी मुंह से निकला नहीं कि  डिमांड पूरी अब वो चाहे जैसा हो तभी तो यहां उसकी शादी हो गई। कोई तो नहीं चाहता था … Read more

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