फिर भी तुमको चाहूँगा – स्व्पनिल रंजन वैश

खनकती रंग-बिरंगी चूड़ियों और छमछमाती पायलों के साथ मधुरिमा ने अपने भरे पूरे संपन्न ससुराल में गृहप्रवेश किया। यूँ तो लक्ष्मी की कोई कमी नहीं थी उसकी ससुराल में पर फिर भी सासूमाँ ने उसकी हाथों के छाप लेकर देवी माँ से कृपा बनाये रखने की प्रार्थना की। मधुरिमा एक मध्यम वर्गीय परिवार की सुंदर … Read more

ऐ ज़िंदगी गले लगा ले – कमलेश राणा 

ज़िंदगी कितनी खूबसूरत और अनमोल है,,यह वही बता सकता है जिसके पास ज़िंदगी के थोड़े ही दिन बचे हों,,और वह इस सत्य से वाकिफ हो,, जानकी का जीवन हर तरह से खुशी और संतुष्टि से भरपूर चल रहा था,,बच्चों,घर और नौकरी के बीच कब दिन गुजर जाता,,पता ही नहीं चलता,,बस वक़्त की लहरों के साथ … Read more

माँ मैं आपकी बेटी नहीं हूं – चाँदनी झा 

गायत्री ने महसूस किया, उसकी बेटी कुछ खोयी-खोयी सी है कुछ दिनों से, क्या बात है?? नीतिका वैसे हमेशा खुश और बिंदास रहनेवाली है। नीतिका अकेले जाकर खिड़की से बाहर निहारने लगती कभी। तो कभी अपने कमरे को बंद कर लेट जाती। कॉलेज भी जाना बंद कर दिया था। एक-दो दिन तो अंजनी ने नीतिका … Read more

कोई हमारे रिश्ते पर उंगली उठाए मुझे मंजूर नहीं – संगीता अग्रवाल 

“मेरे बारे में सोचना छोड़ दो नितिन अगर इतना सोचोगे तो अपनी होने वाली पत्नी से कैसे न्याय करोगे!” मोहिनी ने हंसते हुए फोन पर कहा। ” क्या यार मोहिनी तुम भी ना कुछ भी बोलती हो पत्नी अपनी जगह है तुम अपनी जगह!” नितिन हंसता हुआ बोला। ” पर नितिन दुनिया ऐसी दोस्ती को … Read more

ये मेरे पिता के दिए हुए संस्कार हैं – गीतू महाजन

  हर रोज़ की तरह आज की सुबह भी वैसी ही थी। ममता  जी ने सुबह उठकर अपने काम निपटाए और नहा धोकर मंदिर में पूजा की। उनकी सुबह सवेरे पांच बजे उठने की शुरू से ही आदत थी। पूजा कर वह उठी तो देखा उनकी बेटी पूनम मुस्कुराती हुई उन्हीं के पास खड़ी थी। … Read more

मेरा हौसला –   मृदुला कुशवाहा

आज जो मैं लिख रही हूँ, लिखना नहीं चाहती थी, फिर मैंने सोचा शायद इससे कोई प्रेरित हो l  दस साल पहले ही मैंने बीएड करके पढा़ई छोड़ दी थी, एक दो बार मैंने यूपी टीईटी और सी टीईटी की प्रतियोगी परीक्षा दिया लेकिन असफल रही। मैंने परीक्षा देना भी छोड़ दिया, और मैं अपने … Read more

वो आई……(हास्य व्यंग रचना) – डॉ उर्मिला सिन्हा

  ‘वो’आपको यत्र तत्र सर्वत्र मिल जायेंगी। बागों में , बहारों में , गलियों में , चौबारे में, गांव में, शहर में , स्कूल में, कालेज में। उनकी परिचय देने की जरूरत नहीं है वे अपने आप में परिचय है। चांदनी से उन्होंने गोरा रंग चुराया है। फूलों की कोमलता , परागों की सुरभि , हवाओं … Read more

मेरा नाम भी तो है – पुष्पा पाण्डेय

जब भी डाॅक्टर साहब के घर ज्यादा काम होता है तो  कस्तुरी अपनी बेटी को भी बुला लेती थी। उसको भी आराम होता था और मेमसाहब भी कहती हैं कि बुला लो। रविवार होने से वह घर पर ही रहती थी। बाकी दिन तो स्कूल जाना होता था। कस्तुरी की बेटी अंजलि पढ़ने में होशियार … Read more

सीधी गंगा – नीरजा कृष्णा

आज सुबह से ही दादीजी का आलाप चालू था। मीनू का कॉलेज में दाखिला हो गया था। वो जोर शोर से कॉलेज जाने की तैयारियां कर रही थी। उसकी गुनगुनाहट उनके कानों में जहर सा घोल रही थी। बहू सीमा भी बहुत खुश होकर सुबह  की व्यस्तताओं में मगन थी। उसने अचानक बेटे रोहित को … Read more

पुरुषीय -नैतिकता – शिखा कौशिक ‘नूतन’

”हत्यारे को फांसी दो …फांसी दो …..फांसी दो …!!!” के नारों से शहर की गली गली गूँज रही थी .अपनी ही पत्नी की हत्या कर सात हिस्सों में लाश को काटकर तंदूर में भून डालने वाले विलास को फांसी दिए जाने की वकालत समाज का हर तबका कर रहा था . विलास की दरिंदगी का … Read more

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