मृगमरीचिका – नीलम सौरभ

व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा में सबको पीछे छोड़कर सफलता के उच्चतम शिखर पर जा बैठने का स्वप्न इतना सम्मोहक होता है कि कई बार महत्वाकांक्षी मानव को उस लक्ष्य के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं देता। कदाचित यह लक्ष्य किसी ‘मृगमरीचिका’ के समान होता है, समीप पहुँचते ही और दूर दिखने लगता है। मृगमरीचिका! …मरुस्थल में प्यास … Read more

पिता के नाम पत्र – रीटा मक्कड़

आदरणीय पापा जी.. आप क्यों चले गए हमे छोड़ कर।इतनी जल्दी क्यों थी आपको जाने की। अभी तो बहुत कुछ करना बाकी था।अभी बहुत सी बातें थी मेरे मन मे जो अनकही ही रह गयी और वो अभी तक कह नही पायी ..कहूँ भी तो किससे.!!! जो बातें सिर्फ और सिर्फ आपसे ही कह सकती … Read more

पापा – नीलिमा सिंघल

नमित को आज तरक्की मिली थी कंपनी का CEO बन गया था, उसकी शान में पार्टी रखी हुई थी, सब बहुत खुश नजर आ रहे थे बुके का ढेर लगा देखकर नमित थोड़ा अनमना सा हो गया था, जाम पर जाम टकराए जा रहे थे पार्टी पूरे शबाब पर थी पर नमित का ध्यान बार … Read more

“रक्षक या भक्षक” – ॠतु अग्रवाल

आज मन बहुत उदास था रम्या का। पता नहीं, कभी-कभी मन क्यों उन गलियारों में खो जाता है, जहाँ बचपन की एक कच्ची,कड़वी सी याद उसके अंतस के घाव को कुरेद देती है। कितना ही उस नासूर को भरने की कोशिश की, उसने,उसके पापा मम्मी ने। पर जब तब उससे रिसता मवाद अपनी सड़ांध से … Read more

चीत्कार – श्वेता मंजु शर्मा

#चित्रकथा हिना स्तब्ध खड़ी थी। सामने था उसका रहबर, उसका साथी । एक झटके में उसने उसका सब छीन लिया । तलाक़ तलाक़ तलाक़, इन तीन लफ्जों ने उसकी जिंदगी बदल दी । कैसे इतना संगदिल हो गया उसका सनम । वो सामान बाँधने लगी । नन्ही जोया रो रो कर हलकान थी। बार बार … Read more

कैद से मुक्त – डा.मधु आंधीवाल

इस  कोरोना काल ने सारा जग जीवन ही अस्त व्यस्त कर दिया । रुचिका आज अपने को बिलकुल अकेला और असहाय महसूस कर रही थी । जब सब सयुंक्त परिवार था अपने लिये सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली । सास  का अनुशासन  और भरा पूरा परिवार । कालिज के समय के सारे शौक पता … Read more

दर्द – प्रमोद रंजन

घर से बाहर निकला ही था कि सामने से रमन जी आते दिखे शायद प्रातः भ्रमण कर लौट रहे हों, मैंने सुप्रभात कहा तो उन्होंने अनमने ढंग से सर हिला दिया। मैं समझ गया कि जरूर कोई बात है। मैंने पूछा क्या बात है क्यूं उदास हैं क्या हुआ ।उन्होंने हलके से हंस कर कहा … Read more

कुछ ख्वाब अधूरे से – रीटा मक्कड़

अपने दौर की हर लड़की की तरह मैंने भी बहुत से सपने, बहुत से ख्वाब खुली आँखों से देखे थे…जो बस ख्वाब ही रहे उनको पंख कभी नही मिले। उम्र के इस पड़ाव पर आकर भी लगता है ..मन का एक कोना अभी भी खाली है..कुछ है जो अधूरा रह गया है..कुछ है जो छूट … Read more

 तमन्ना – रणजीत सिंह भाटिया

#चित्रकथा धनीराम जो शहर के बहुत बड़े व्यापारी थे अपने कुछ साथियों के साथ वापस अपने घर लौट रहे थे, रात बहुत अंधेरी थी, करीबन आधी रात होगी, एक घने जंगल से गुजरते हुए अचानक उनकी कार खराब हो गई ड्राइवर कोशिश कर रहा था पर उसे उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था l … Read more

चित्कार – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

#चित्रकथा लगभग ढाई साल बाद मैं अपने गांव गई थी। माँ के गुजरने के बाद जैसे हमारा जहान ही लुट गया था। कभी इच्छा ही नहीं होती थी वहां जाने की। इस बार गर्मी की छुट्टियों में छोटे भाई और बच्चों की जिद की वज़ह से मैं अपने गांव गई। बच्चे बहुत खुश थे। भाई-भाभी … Read more

error: Content is protected !!