ज़िंदगी : तेरी मेरी कहानी है – कुमुद मोहन  

रोज मार्निग वाॅक को जाते एक सुन्दर से घर की तरफ निगाहें बरबस उठ जातीं, पैर ठिठक जाते।

बरामदे में दो केन की कुर्सियों पर एक बुजुर्ग पति पत्नी बैठे चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ते दिखते। कभी-कभी किसी बात पर दोनों की खिलखिलाती हंसी भी सुनाई दे जाती। लगता था अपनी दुनिया में मस्त हैं।

जाने क्यों कभी उनसे उनकी ज़िन्दादिली का राज़ जानने की इच्छा होती ।

“अन्तर्राष्ट्रीय वृद्ध  दिवस” पर कुछ महिलाओं का इंटरव्यू लेना था सोचा इन आंटी का ही ले लूँ।

एक दिन रुक कर उनसे पूछ ही लिया कि मैं  उनका कुछ समय लेकर मिलना चाहती हूँ।

दोनों बहुत खुशी से बोले “जब चाहो, आपका घर है “

अगले दिन शाम का समय तय हुआ ।

उनके घर जाकर देखा साफ़ सुथरा, बहुत टेस्ट फुली सजाया, छोटा सा लान,फूलों के गमले, छोटा सा किचन गार्डन ,बड़ा आश्चर्य हुआ इस उम्र पर इतना अच्छा मेंटेन कैसे करते होगे?

खैर मैं तो उनकी शादी शुदा जिन्दगी की लंबी पारी का राज़ जानने आई थी। मैं और आंटी एक तरफ़ बैठ गए, अंकल उठ कर बाहर चले गए।

आंटी ने बताया कि उनकी शादी को पचास साल हो गए, अरेंज मैरिज थी, उनके पिता ने सिर्फ उनके पति की सरकारी नौकरी को देख कर रिश्ता तय कर दिया, उनके घर जाकर भी नहीं देखा था जहाँ उनकी बेटी को जाना था, मुझे रिश्ता पसंद नहीं था, पिता के दबंग स्वभाव के कारण किसी की हिम्मत उनके खिलाफ जाने की नहीं थी, परन्तु उन्होंने मुझे आल राउंडर जरूर बनाया था,हर क्षेत्र में मै पर्फेक्ट बनू ये उनकी कोशिश थी।

शादी के बाद कुछ दिन एडजस्टमेंट में बहुत परेशानी हुई ,शुरू में बहुत कुछ था जो पसंद नहीं था।

माँ ने सिर्फ, सब्र, बर्दाश्त, जिम्मेदारी और इंतजार का पाठ पढ़ाया था।एडजस्टमेंट के अलावा कोई चारा नहीं था।

धीरे-धीरे मन लगने लगा, पति के धैर्य और लविंग, केयरिंग होने के कारण मैंने खुद को एडजस्ट कर लिया।  फिर बेटा-बेटी आ गये। तीन साल ठीक ठाक बीत गए।

लेकिन हर शादी शुदा जिन्दगी फूलों की सेज नहीं होती, कभी कभी काटों का सामना करना पड़ता है, मेरी सास बहुत दबंग और तेज़ थीं ,ससुर जी का देहान्त हो गया था,  पति दूसरे श्रवण कुमार थे, मां की गलत से गलत बात को भी मानने को तैयार नहीं थे।उन्होंने मेरे पति का ट्रांसफर वहां करवा लिया जहाँ वो रहती थी, बेटे-बहू का सुख वो देख नहीं सकतीं थी।उन्हें हर वक्त डर लगता कहीं बहू उनके बेटे को अपने च॔गुल में ना कर ले।इस लिए वे इनको मेरे खिलाफ़ भड़काती रहतीं। मेरी अर्जी की कोई सुनवाई नहीं थी, इसलिए मैं अंदर ही अंदर घुटती रहती।



वहां आकर पति का रवैया भी मां के डर से एकदम बदल गया। इनकी माँ ने मेरे खाने पीने, उठने बैठने हर चीज़ पर ऐतराज करना शुरू कर दिया, साथ बैठने और बाहर जाने की तो दूर।

उनके साथ का बिताया वक्त मैं याद नहीं करना चाहती। उस वक्त जिन्दगी में बहुत से उतार चढ़ाव देखे,कभी-कभी तो घर से भाग जाने या कुछ कर बैठने का मन करता था, पर बच्चों के कारण चुप रह जाती।सास अब इस दुनिया में नहीं हैं इसलिए उनके लिए मैं कोई बुरी बात नहीं कहना चाहती। दो दशक उनके साथ कैसे गुज़ारे मैं ही जानती हूँ।

उनके जाने के बाद शायद मेरे पति की आंखें खुली, उन्हें मेरी वकत नज़र आई, बच्चे बढ़िया सेटल हो गए।

रिटायरमेंट के बाद पेंशन और सेविंग्स में हम अच्छी तरह से रह रहे हैं, पूरी दुनिया घूम आऐ हैं ।मेरी छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी हर ख्वाहिश बिना कहे बिना मांगे पूरा करते हैं।

मेरी इतने वर्षों की परेशानी को मैं भूल चुकी हूँ। आज हम “लव बर्ड्स “एक दूसरे के साथ बहुत खुश हैं मस्त हैं, इनका रिटायरमेंट ऐंजाय कर रहे हैं।

बच्चे अपने साथ रहने को कहते हैं पर उनके पास एक हफ्ते से ज्यादा मन नहीं लगता वापस अपने घर ही आने का मन करता है।

मैंने पूछा “अगर आप की लव मैरिज होती तो क्या आप ज्यादा खुश रहती?

आंटी ने बताया अरेंज मैरिज में सिर्फ घरवालों  की प्रोब्लम रहती है चाहे लडक़े के चाहे लड़की के। ये तो अंधा सौदा है, कहीं फ़ायदा कहीं नुकसान। जरूरत है एक दूसरे पर विश्वास, प्रेम, समझदारी, धैर्य की।

लव मैरिज में माँ बाप की जिम्मेवारी नहीं रहती, “जब मियां बीबी राज़ी तो क्या करेगा काजी”। कभी-कभी लव मैरिज सफल भी होती हैं, और कभी प्रेम का भूत उतर जाने पर  हर वक्त एक दूसरे की गलतियाँ नज़र आने लगती हैं जो तलाक़ का कारण बनती हैं।

अरेंज मैरिज और लव मैरिज के अलावा अब “लिव इन” और शुरू हो गया है, पता नहीं कितना सही कितना ग़लत।

आंटी के हाथ की चाय और गरमा गरम पकौड़े,

उनका छोटा सा आशियाना, जीवन संध्या में उनका एक दूसरे से प्यार और समर्पण देख कर मन खुश हो गया।

कुमुद मोहन 

 

 

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