ज़िंदगी मिलेगी दोबारा – रश्मि स्थापक

“कुछ भी कहो कर्नल…चमक रहे हो आजकल…भई बात क्या है?” कहते हुए नरेंद्र ने जोरदार ठहाका लगाया।

ये दोनों सेवानिवृत्त दोस्तों की सुबह की सैर की बातचीत थी।

“अरे यार ….तुम भी अच्छा मज़ाक करते हो …इस पचहत्तर की उम्र में अब क्या चमकेंगे और तुम्हारी भाभी के बाद तो जैसे सब चला गया।”

“वो तो है…पर फिर भी कुछ तो बात है…।”

“इतना ही कह सकता हूँ… यह जमाना इतना बुरा नहीं जितना हम सोचते हैं। तुम्हें जान के आश्चर्य होगा…।”

” अब यह बात यहां कहां से आ गई…।”

” तुम्हारी भाभी के जाने के बाद… सब ने मुझे अपने पास आने को कहा… पर इस उम्र में अपना घर छोड़ते नहीं बनता यार। मैंने अकेले रहने का ही सोचा था।”

” तुम अकेले ही तो हो यहाँ…।”


” मैं अकेला था पर अब हूँ नही… बेटी का बेटा चंदन आ गया है।”

” अरे वाह… पर उसकी तो पढ़ाई होगी न अभी?”

“यही मैंने भी कहा था उससे… तो उसने कहा नानाजी मैंने फॉर्म यहीं से भर दिया है। यहाँ शांति से मेरी पढ़ाई भी हो जाएगी।”

“यानी उसने आपके लिए… अपनी लाइफ में इतना बड़ा चेंज किया।”

” उसका कहना है कि वह मेरे लिए नहीं अपनी नानी जी के लिए आया… क्योंकि नानी जी ने उसके साथ नौ दस बरस पहले घर के पीछे आम का पेड़ लगाया था… और उससे यही कहा था कि बेटा ये पेड़ मैं लगा रही हूं पर इसके आम तुम खाओगे….और जब मैंने उससे कहा कि बेटा मेरे लिए…अपना घर मत छोड़ो… तो जानते हो उसने क्या कहा था?”

“क्या?”

“मैं तो आम खाने आया हूँ जो नानीजी मेरे लिए लगा गई  हैं।”

“सच है यार कर्नल…अपने जब चले जाते हैं तो लगता है ज़िंदगी चली गई पर अपने ही ज़िंदगी ले  भी आते हैं।”

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रश्मि स्थापक

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