पता नहीं ये ज़िन्दगी भी जाने क्या क्या रंग दिखाती है … ये उतार चढ़ाव.. कभी ख़ुशी तो कभी गम दे जाती है… और ये बारिश भी आज यूँ झमाझम बरस रही है मानो मेरे आंसुओं के सैलाब को अपने साथ बहा ले जाना चाहती हो…मैं इन्हीं सब ख़्यालों में खोई थी की मेरे कंधे पर चपत लगी और महसूस हुआ कोई पास आकर बैठ गया है ।
“ तुम ये दिन भर अकेले बैठ कर क्या सोचती रहती हो …..समझ रही हूँ अभी जो समय चल रहा तुम्हारे अनुकूल नहीं है पर ये समय भी इन काले बादलों की तरह बरस कर छँट जाएगा….वैसे एक बात बताओ तुम जो ये चावल बनाती हो…उसको अच्छे से चुनती बिनती हो….
हाँ… मैंने कहा ..
फिर भी कभी कभी खाते वक्त जब ये कंकड़ मुँह में आते तो अगला कौर खाने से पहले देखती हो ना..
हाँ… मैंने कहा
“बस ज़िन्दगी में भी वही सबक सीख लो… जब आसपास बहुत लोग होते और सब आपके बहुत ही क़रीब होते हैं उनमें ही कोई एक-दो उस कंकड़ के समान होते हैं जो पूरी ज़िन्दगी के ख़ुशनुमा पलों को दुख में बदल देते हैं…. अपनी ज़िन्दगी में उन लोगों को चुनो और उन्हें अपनी ज़िन्दगी से निकाल फेंको… कई बार ऐसे ही बहुत करीबी ज़िन्दगी में कोढ़ के समान हो जाते है…. हम जब तक समझते हैं देर हो जाती है…मैं कभी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूँगी सदैव तुम्हारे साथ चलूँगी… बस मुझे मेरी प्यारी सखी मुस्कुराती हुई दिखनी चाहिए । “ कहकर वो मुस्कुरा कर चलने को हुई
मैंने झट उसका हाथ थामा और बोला,“ अभी तो कह रही थी साथ रहूँगी फिर जाने को हो रही हो… ?”
“ वो बोली साथ ही हूँ बस कुछ देर को तेरे अंदर से निकल कर बाहर तुम्हें समझाने आई थी…. मैं तेरी अंतरात्मा ….भला तुम्हें कैसे छोड़ कर कहीं जा सकती हूँ !” वो कह कर वापस मुझ में ही समाहित हो गई
मैं फिर से लग गई सोचने पर इस बार उन बातों को जो मुझे तकलीफ़ दे रहे थे …. उन कंकड़ को निकाल बाहर जो करना था ….खुश रहने के लिए….!
रश्मि प्रकाश