Moral stories in hindi : तबले पर सधी हुई उसकी उंगलियां त्रि ताल बजा रही थी पूरा हॉल मानो सुध बुध खो कर किसी और लोक में निमग्न सा हो गया था…सबके बिच बैठी. शामली जी की आंखें सामने मंच पर तबला बजाती उस किशोरी में मानो खुद अपने आपको साक्षात देख रहीं थीं…!!
गोपाल जी गुरु जी थे तबले वाले मत्साब … धुरंधर वादक थे सीखने भी धुरंधर और बेहद अनुशासित.. शामली जी उनकी प्रिय शिष्य थी… युवा उत्सव में शामली जी की भागीदारी करवाने के लिए पिता जी की अनुमति अनिवार्य थी .. नहीं लड़कियां कहीं बाहर नहीं जाएंगी कोई आवश्यकता नहीं है किसी तबला प्रतिस्पर्धा में भाग लेने की.. पिताजी की सख्त आवाज से भी गुरु जी ने हिम्मत नहीं हारी थी मिन्नते करते रहे पूरी एहतियात रखने का भरपूर बार बार आश्वासन और बेटी शामी की उत्कंठा से पिताजी थोड़े पिघल गए थे और अनुमति दे दी थी….!
खुली प्रतियोगिता थी वह उम्र का कोई बंधन नहीं था भाग लेने के लिए … किशोरी शामली संकोच कर रही थी लेकिन गुरु जी का उस पर दृढ़ विश्वास अडिग था… दर्शक किशोरी को देख हंस रहे थे लेकिन जब शामली की उंगलियां तबले पर थाप देने लगीं तो क्षण भर में ही सुई पटक सन्नाटा छा गया था बड़े बड़े उस्तादों ने खड़े होकर दाद दी थी गुरु जी को अनगिनत बधाई मिली थी….!
लेकिन उसके बाद लाख सर पटकने पर भी पिताजी ने बेटी को कभी भी किसी प्रतियोगिता में जाने की अनुमति नहीं दी ।
शामली तबले के साथ हारमोनियम बजाने में भी सिद्ध हस्त थी आवाज भी ऐसी मीठी कि बस सुनते ही जाओ.. सीधी सादी भोली भाली सी शामली दुनियादारी सेकोसो दूर रहती थी सारे शिक्षकों की प्रिय शिष्या थी पढ़ाई लिखाई में अव्वल रहने वाली शामली ने स्नाकोत्तर में यूनिवर्सिटी टॉप करने की पूरी संभावनाएं सभी प्रोफेसर्स को स्पष्ट परिलक्षित होती थीं… एक निष्ठ भाव से पढ़ाई में जुटी रहती थी …!
बेहद सादगी से रहने वाली शामली में कुदरती खूबसूरती थी मोहक निश्छल मुस्कान अदब से सुसंस्कृत तरीके बात करना समझदार और छल कपट से दूर अपनी किताबों की दुनिया में खोई रहने वाली लड़की किसी विद्वत को भा गई और अपने होनहार बेटे के साथ शादी के लिए शामली के पिताजी के ऐसे पीछे लगे कि पिताजी को भी हां करनी पड़ी और एम ए अधूरा ही रह गया गृहस्थी बसा ली शामली ने।
इस कहानी को भी पढ़ें:
लौटकर आऊंगा – प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’
नानी कहां खो गईं आप…! जब से तबला सुनकर आई हैं आप खोई खोई सी हैं क्या आपको दुख हो रहा है अपनी जिंदगी से!!
नहीं तुषार कैसी बाते कर रहा है बेटा तू!! दुखी क्यों होऊंगी मैं अपनी जिंदगी से!!
हां मां दुखी होने वाली बात तो है ही बेटी प्रीति भी बोल पड़ी आप में कितने टैलेंट थे अगर आपको मौका मिला होता तो आप एक प्रसिद्ध तबला वादक हो सकती थीं या फिर अपनी पढ़ाई पूरी करके प्रोफेसर बन सकती थीं… लेकिन इस शादी ब्याह गृहस्थी बाल बच्चों सबके लालन पालन में आपके सपने आपके शौक स्वाहा हो गए मां आप अपनी तरक्की अपनी प्रतिभा अपने शौक सब भूल गईं।
भूली नहीं बेटा ये सब तो मेरे अंदर ही हैं बस उनके विकसित होने के रूप बदल दिए मैंने आज इस किशोरी को देख कर अपनी जिंदगी का वह समय याद आ गया मुझे और मन विश्लेषण करने लग गया अगर इस राह पर जाती तब भी क्या प्राप्त करने के लिए जाती सुख संतोष ही ना वो सब तो मेरे पास है अभी भी…. जिंदगी के इस कर्तव्य पथ पथ पर जैसी परिस्थितियां मिली जैसे अवसर मिले जैसी चुनौतियां मिली जैसे सुख दुख मिले मैने पूर्ण निष्ठा से निभाए….जीवन भी तो तबले की ही तरह होता है… ताल से ताल मिला कर चलना ही प्रतिभा है… पढ़ाई या नौकरी भी क्यों की जाती है.. जिंदगी में सुख संतोष शांति पाने के लिए… पिता की हर बात मानी पिता की इज्जत में ही अपनी इज्जत समझी मेरी अलग से कैसी तरक्की पिता मेरी तरक्की से खुश हों उनकी इच्छा में उनकी खुशी में ही अपनी खुशी घोलना ही तो मेरी खुशी थी….. शादी के बाद पति की इच्छा पति की तरक्की पति की खुशियों में शामिल होना ही मेरी सबसे बड़ी खुशी थी.. तुम सब बच्चों की तरक्की तुम सबकी इच्छाएं पूरी करने में ही मेरी खुशी थी… !!हर लक्ष्य प्राप्त किया मैने।
लेकिन इन सबमें आपकी खुद की क्या तरक्की हुई मां आपकी प्रतिभा तो दबती गई किसी ने आप पर ध्यान तक नहीं दिया.. दुखी और नाराज थी प्रीति।
इन सबमें खुद को कभी नहीं भूली मैं खुद अपने साथ हमेशा रही तभी तो तुम सबके साथ रही
यही तो समझाना चाह रही हू तुझे मेरा लक्ष्य या किसी का भी अंतिम लक्ष्य क्या होता है ..सुख संतोष और इज्जत कमाना ही होता है ना तो वही सब तो मुझे मिला …प्रतिभा मुझमें थी तभी तो पति की घर की और तुम बच्चों की तरक्की में शामिल हो पाई सबकी इच्छा ही मेरी इच्छा बन गई मेरी अलग से कौन सी इच्छा बची … तुम सबने मेरा ही तो ख्याल किया मेरा ही तो ध्यान रखा जब अपनी अपनी रहो में सफलतम लक्ष्यों को प्राप्त करते गए और मुझे गर्वित होने के अनगिनत पल उपलब्ध कराते रहे…।
ये आजकल की खुद के बारे में सोचने की खुद का ख्याल खुद की कामयाबी खुद की पहचान बनाने की प्रवृत्ति में व्यक्ति धीमे धीमे सिर्फ खुद का ही ख्याल रखने में खुद के ही इर्द गिर्द सिमट जाता है .. मैने तो खुद को तुम सबमें बांट दिया और खुद को पूरा कर लिया।
मां सच में आपके बिना हम सब अधूरे हैं कहती प्रीति मां से लिपट गई।
लतिका श्रीवास्तव