देखो मैंने देखा है ये एक सपना फूलों के शहर में हो घर अपना …….यह गाना सुनते सुनते मैं पुरानी यादों में खो सी गई। हमारा छोटा सा गाँव ,जहाँ जब मैं शादी होकर आई तो मुझे लगा जैसे सच में मैं हरी-भरी वादियों से गुजर रही हूं ।चारों तरफ रंग बिरंगे फूल ।हरियाली ही हरियाली ।मन देखकर हरा भरा हो गया और होठों पर मुस्कान आ गयी ।जैसे ही मैं कार में बैठी कनखियों से इन्हें देखा और इनकी चोरी पकड़ी गई क्योंकि यह भी मुझे ही देख रहे थे ।
जैसे ही मेरी उनसे नजरें मिली चेहरा गुलाबी हो गया व मैंने नजरें झुका ली ।घर पहुंचते ही मैं दंग रह गई। घर के मेन गेट से अंदर तक का रास्ता पूरा फूलों से सजा हुआ,व मेरे कदम धरती पर नहीं ।सच में फूलों पर ही चलकर वह नया रास्ता मैंने तय किया। घर के बच्चों से लेकर बड़े तक ,दोनों ओर से फूलों की बरसात करते हुए आशीर्वाद के मंत्र हवा में उछाल रहे थे । मैं मखमली सा एहसास लिए खुशी से गदगद ,सकुचाते हुये से इनका हाथ थामे उस नये सफर पर चल पड़ी जिसका आगाज तो ये था ।पर अंजाम मुझे नहीं पता था ।भोर की नई सुबह ।नई जिंदगी की शुरुआत ।नए परिवेश में नए लोगों से मिलने का एक सुखद अहसास ले आई ।
सबका बेशुमार प्यार और सहयोग से जीवन मानो मधुबन बन गया क्योंकि मायका शहर में था ।सभी लोगों को यह लगता था कि इसका यहाँ मन लगेगा भी या नहीं ।पर यह कोरा भ्रम ही निकला। मैं शहर की तेज रफ्तार जिंदगी से दूर ,प्रेम की वादी में प्यार के फूल खिलाते चली गई ।फूलों से बातें करना ,पत्तियों को स्पर्श देना और बेलों को सहला कर रमकना मेरी दिनचर्या में शामिल हो चला ।जिंदगी गुलजार लगने लगी ।समय ने पंख फैलाए व उड़ चला।
वैसे भी सुख के पल पलक झपकते ही बीत जाते हैं। बहुत कुछ बदलाव आए जो लाजिमी थे ।बच्चे बड़े हो गए थे व उनके लिए कुछ नया नहीं रह गया था गाँव में ।वे भी शहर में बसने को आतुर हो चले थे ।इन्होंने भी मन बना लिया ।पर मैं और मेरी आत्मा वहीं फूलों की वादियों में बसी रह गई ।हमने भारी मन और भीगे नयनो से सब को अलविदा कहा और आ गए पत्थरों के शहर में, जहाँ किसी को किसी से कोई लगाव नहीं ।बच्चों के लिए सब कुछ अलग रोमांच पैदा करने वाला था ।इन्हें नए सिरे से कर्तव्य का पालन करना था ।
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पर मैं …….मेरा तो एक हिस्सा वहीं छूट गया था ।कहने को तो सब कुछ था ।मेरा निज का पूरा परिवार ।सुख सुविधा ।पर यह सब तो ऊपरी था ना ।भीतर तो वही खामोशी और बस मैं खामोश होती चली गई। मेरी वह खिलखिलाहट कहीं खो सी गई और मैं अपने ही घर में बेगानों की तरह रहने लगी ।एकांत की सजा काटते हुए ….क्योंकि सब अपने आप में बिजी हो चले थे ।पर मैं अभी भी वही ठहरी थी ……जहाँ से रास्ते मुड़ चुके थे ।
आज जब मैंने यह गाना सुना तो ना जाने क्यों और कैसे कुछ दिल ने कहा और मैं मुस्कुरा उठी ।तुरंत नर्सरी गई ।ढेर सारे फूलों के प्लांट्स ,तरह-तरह की सुंदर बेलें खरीद लाई ।उन्हें लाकर बालकनी में सजा दिया बड़े प्यार से। हर फूल हर पत्ती से एक नया स्पर्श मिला ।मैं जी उठी।शाम को जब सब आए तो मुझे देख कर हैरान हो गए। भीतर आते से ही मौन-शब्द ,मौन-आँखें और मौन लबों ने सब कुछ कह डाला ।वो भीना -सा सुखद एहसास मोगरे की खुशबू बनकर हम सबके चेहरे पर खुशी की बहार ले आया। वाकई पहली बार लगा बदलाव भी खूबसूरत होता है ।चाहे मन का हो या तन का ।
कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए। साधन सभी जुट जाते हैं केवल सँकल्प का धन चाहिए।
विजया डालमिया