जिम्मेदारियां कभी खत्म नहीं होंगी – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

मैं बाजार जा रही थी. बाजार में मेरी दोस्त प्रतिमा मिली. बहुत सालो बाद. कैसी हो? ठीक हूं! तुम बताओ?  मैं भी ठीक हूं डियर, बस बच्चों का कुछ सामान लेने आई थी, चलो साथ में बैठते है, मैने उसे बोला. आज नहीं किसी और दिन, आज मुझे बहुत काम है. प्रतिमा की मनुहार सुन मैने ओके कहा और बोला अपना नंबर दे मैं कॉल करूंगी.

मैं घर आ गई. अपनी दोस्त प्रतिमा से मिल बहुत अच्छा लगा. स्कूल टाइम हम काफी अच्छे दोस्त थे लेकिन आज उसके चेहरे पे अजीब सी उदासी थी. अब मन उसके उदास चेहरे पर अटक गया. आज मुझे भी एक प्रोग्राम में जाना था. सोचा प्रतिमा को पूछ लेती हूं, इसी बहाने कुछ वक्त दोनों साथ बिता लेंगे. पहली बार में ही उसकी कॉल उठ गई. कल शाम को रेडी रहना,मैं तुमको लेने आऊंगी और ड्रॉप भी कर दूंगी तेरे घर. उसने बिना कोई सवाल किए मना कर दिया. मुझे बहुत ही गुस्सा आया मैंने तुरन्त ही फोन काट दिया. कम से कम वह यह तो पूछ सकती थी कि जाना कहां है? कब या कितना वक्त लगेगा?

..मैं सोचने लगी इसको क्या हो गया है? जरूर कोई बात है. मैं उसके घर पहुंच गई. उसकी मॉ सास मां ने दरवाजा खोला. बेटा आप कौन? मैने बोला आंटी मैं प्रतिमा की दोस्त हूं. वो घर पे है क्या? मॉ जी बोली, हां प्रतिमा घर पर ही है, कहां जाएगी? घर का सारा काम, झाड़ू, पोछा, बर्तन, तीनो टाइम का खाना, सब उसी को तो करना होता है, ऊपर से बूढ़ी सास की देख-भाल, उसको कहा टाइम होता है.  इतने में प्रतिमा आ गई. उसके कपड़े गीले थे, मैने अदांजा लगाया कि अभी कपड़े धो कर आ रही है.  

बोली तुम कहां से आ गई. मैने बोला तुमने मना कर दिया आने से तो, मैं ही आ गई. चल अच्छा किया तुमने, रुको मैं तुम्हारे लिए कुछ बनाती हूं.  उसकी हालत देख मै बोल पड़ी, नहीं बिल्कुल भी नहीं. मैं ऑर्डर कर के मांगती हूं कुछ. तुम मेरे पास बैठो. प्रतिमा मान गई, फिर हम सब ने खूब बातें की. स्कूल टाइम की बहुत सारी बातें की. अचानक प्रतिमा बोली, अब तुम अपने घर जाओ, मेरे पति जी के आने का टाइम हो गया है. जाती हूं फिर मैं आऊंगी, बोल निकलने लगी तो याद आया. सुनो प्रतिमा मेरे बेटे का दो दिन बाद जन्मदिन है तुम जरूर आना. ओके आऊंगी, बाय!

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शाम के पांच बज गए, आंखे दरवाजे पर ही लगी थी. प्रतिमा ने कहा था लेकिन नहीं आई. सात बजे गए.  अचानक डोरवेल बजी. मै भाग के दरवाजे पर गई, प्रतिमा ही थी. बोल पड़ी, अरे! लगता है मै बहुत लेट हूं, पार्टी खत्म हो गई क्या? पागल है क्या, कोई पार्टी नहीं ये तो सिर्फ तुझसे मिलने का बहाना था.

 नहीं, यार तुमने ठीक नहीं किया. . मैने बिल्कुल ठीक किया, तुमने क्या हाल बना लिया है अपना? इकलौती बहू है तू अपने घर की. सब कुछ तो है तेरे पास फिर क्यों अपनी जान दे रही है. काम वाली रख लो अगर घर के सारे काम नहीं होते हो तुमसे? अपनी हालात देखी है कभी तुमने? तुम से अच्छे से तो आज कल की

काम वाली रहती है, समझी. मैने उसे उलाहना दिया, यही नहीं रुकी. अपने आप को टाइम दो प्रतिमा, तुम चालीस की होने जा रही हो. अब तुमको भी आराम की जरूरत है. काम कर कर के जान तक निकाल दोगी, फिर भी कुछ नहीं मिलेगा. उल्टे टाइम से पहले ही बूढ़ी हो जाओगी फिर निभाते रहना अपनी जिम्मेदारियां. प्रतिमा चुप थी, मेरी बात को ठीक से सोचना. लेकिन बिना कुछ बोले प्रतिमा लौट गई. 

चाय की प्याली के साथ सोच रही थी, आज के समय में हर दूसरी औरत प्रतिमा बनी है. यह गलत है. जिम्मेदारिया अंतिम सांस तक खत्म नहीं होती. हमें खुद को समय देना होगा. अपने लिए भी खुशियां सहेजनी होंगी. आखिर ये जिम्मेदारी भी तो स्वयं पर ही है.

रंजीता पाण्डेय

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