जिम्मेदारियां और जीवन एक दूसरे के पूरक हैं – सरोजनी सक्सेना : Moral Stories in Hindi

जिम्मेदारियां और जीवन एक दूसरे के पूरक हैं ! दादी मां कहा करती थी लाडो पढ़ाई के साथ साथ मम्मी के साथ थोड़ा काम भी करवा लिया करो, तेरी मां पर घर की जिम्मेदारियां बहुत हैं ! सारा दिन काम कर के थक जाती हैं !

मैं ज्यादा उनकी बातो पर ध्यान नहीं देती थी कब मैं बड़ी हो गई पता ही नही चला !

पापा मम्मी को अब मेरी शादी की चिंता होने लगी ! एक दिन पापा के मित्र हमारे घर आए और मुझे देखकर बोले बिटिया की शादी का विचार बना या नहीं ! 

आपकी लाडो मुझे बहुत अच्छी लगी , मेरा बेटा भी एक कम्पनी में ऊंचे पद पर काम करता हैं , वह विदेश से इंजीनियरिंग कर के आया है, आप लोग चाहे मेरे घर संडे को आ जाइए , लड़का देखने हमे और क्या चाहिए , जाना पहचाना घर लड़का अच्छा लगा वो बोले अगले वीक आप हमारे घर आइए !

राजीव , मम्मी,पापा, बहन चारों घर आए !

आप लोग भी लड़का देख लीजिए, मेरे को राजीव बहुत अच्छे लगे अब हम लोगों की शादी तय हो गई ! 3 महीने बाद हम दोनो की धूमधाम से शादी हो गई पारिवारिक रीति रिवाज के साथ ही में नए परिवार में आ गई ! शादी की रीति रिवाज से निपट कर जब अपने कमरे में आई कहा राजीव मेरा इंतजार कर रहे थे ! मैं अपने सपनों के साथ अपने जीवन साथी के साथ सुहागसेज पर सोकर उठी, सुबह का सूरज हम दोनो को नए परिवार का आशीर्वाद दे रहा था ! 

2 साल के बाद मेरी ननद रानी की शादी हो गई ! वो परिवार में खुशहाल हैं ! मम्मी पापा भी बच्चों की जिम्मेदारी निपटा कर बहुत खुश है एक दिन मेरे ससुर जी सासू मां से कह रहे थे हम दोनों बच्चों की जिम्मेदारी से निपट गए हैं ! हम घूमने के लिए साथ-साथ तीर्थ यात्रा को निकलेंगे उन दोनों का प्लान बन ही रहा था ! 

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कुछ दिनों बाद ननद रानी का फोन आया उसने बताया मां मेरी सासू मां की तबीयत कई दिनों से खराब है इस कारण मैं डिलीवरी के लिए आपके पास आ रही हूं सुन कर मां पापा को अच्छा लगा और प्रोग्राम आगे खिसक गया ! उन दोनों ने सोचा 2 के बाद चले जाएंगेन! एक महीने बाद मैंने सासू मां को खुशखबरी दी ! दोनों सुनकर बहुत खुश हुए ,एक जिम्मेदारी से निपट कर दूसरे की तैयारी में लग गए ! 

दोनों का समय पोते को संभालने और खिलाने पिलाने में कब गुजर जाता है पता ही नहीं चलता ! मां पापा यानी मेरे सास ससुर अपनी खिलती बगिया में मस्त रहते ! पता चला दो साल बाद मैंने एक प्यारी सी गुड़िया को जन्म दिया दोनों बच्चों में मां पापा को मनमंदिर चारों धाम नजर आता ! उनका तो परिवार ही सब कुछ मन मंदिर है !

मां कहती इन बच्चों को छोड़कर कहीं जाने का मन ही नहीं होता मेरे ससुर जी मां से बोले अब बच्चे थोड़े बड़े हो गए हैं अब हम दोनों तीर्थ यात्रा के लिए निकल सकते हैं अब तो हमारी जिम्मेदारियां लगभग खत्म हो गई है,

अब मां का मन कहीं जाने को नहीं करता, इसी उधेड़बुन में दोनों का समय बीतता जाता ! पापा कहते मैं टिकट बुक कर दी है एक सप्ताह बाद के !दो दिनों से मेरी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी मां पापा ही दोनों बच्चों को संभाल रहे थे मुझे डॉक्टर को दिखाया उन्होंने अस्पताल में एडमिट कर दिया जिस दिन उन दोनों को जाना था अब तुम्हारी जिम्मेदारी कभी खत्म नहीं होगी ! जब तक परिवार है, जिम्मेदारी रहेगी जब तक जीवन है ! जिम्मेदारी रहेगी बिना जिम्मेदारी का जीवन नीरस है !

चार दिन बाद बहु ठीक होकर घर आ गई, डॉक्टर साहब ने रेस्ट करने को कहा अब मेरे ऊपर घर की जिम्मेदारी के साथ में बच्चों की जिम्मेदारी आ गई

परंतु मैं भी इन सब परिस्थितियों से हिम्मत हारने वाली नहीं, मेने जिम्मेदारी का कवर बनाकर ओड लिया ! जीवन है तो जिम्मेदारियां हैं यही जीवन का सार है ! 

                                                                                                 

                                                                                                     लेखिका सरोजनी सक्सेना

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