रामादेवी देख रही थी; कुछ दिनों से बहू परेशान दिख रही थी ।शाम में ऑफिस से भी देरी से आ रही थी ।अब तो बेटा के घर आने के बाद वह आने लगी थी। उसे चिंता होती थी लेकिन वह कुछ नहीं पूछती ।लेकिन बेटा उसे टोक देता था। वह कहती, मीटिंग थी।
एक दिन बेटा बोला,”माँ यह झूठ बोल रही है कि मीटिंग के कारण लेट हो जाती है। मैंने पता किया है । कोई मीटिंग नहीं होती। यह झूठ बोलकर कहीं और जा रही है।”
” देखो बेटा, बहू समझदार है ।अगर वह नहीं बताना चाहती तो छोड़ दो ना। जब उसे इच्छा होगी तब वह सब बता देगी।”
” आपने इसी तरह से इसको सिर पर चढ़ा रखा है ।”….बेटा गुस्सा होते हुए बोला।
” सिर नहीं चढ़ाया है। मैंने अपने घर में बेटा और बहू को एक समान दर्जा दिया है, और यह कोई गलत नहीं है।”
कल जब वह सब्जी लेने बाजार गई थी तो, उन्हें उनकी एक सहेली मिल गई थी। वह बहू के मैके के पास रहती थी। उसने बताया कि बहू की माँ बहुत बीमार है। वह यह सोच ही रही थी कि बहू आई और बोली,” माँजी, मैं ऑफिस के लिए निकलती हूँ।”
” दो मिनट ठहरो।”…..वह बोली।
जब वह आई तो उनके हाथों में एक थैला था। वह उसे देते हुए बोली,” इसे अपने साथ ले जाओ।”
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बहू ने थैला खोल कर देखा ।उसमें फल थे।
” इसमें तो फल है ।”….वह बोली।
” तो अपनी बीमार माँ को देखने खाली हाथ जाओगी।”
बहू ने चौंक कर अपनी सास की ओर देखा। वह मुस्कुरा रही थी। बहू दौड़ कर अपने सास के गले लग गई।
” जब कानून ने माता- पिता की संपत्ति में बेटा और बेटी को समान अधिकार दिया है तो माँ-बाप की जिम्मेदारी भी दोनों को समान रूप से उठानी चाहिए।”
बहू की आँखों से खुशी के आँसू टपक पड़े।
रंजना वर्मा उन्मुक्त
राँची, झारखंड