जहरी – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनको दूसरों के मामलों में टांग अढ़ाने की आदत होती है और कुछ लोग इधर की बात उधर करने में माहिर होते हैं और वह भी मिर्च मसाला और चाट मसाला डालकर। ऐसी ही औरत थी जहरी देवी। 

उनके घर के सामने वाले घर में सुशीला और प्रमिला रहती थी। दोनों जेठानी देवरानी थी। दोनों के दो दो बच्चे थे। एक बार सुशीला अपने मायके गई हुई थी तब प्रमिला सब्जीवाले की आवाज सुनकर सब्जी लेने बाहर आ गई। तब जहरी देवी भी सब्जी ले रही थी। 

प्रमिला-“नमस्ते अम्मा जी, आप कैसी हैं?” 

जहरी-“नमस्ते प्रमिला, मैं तो ठीक हूं, पर तुम्हारी जेठानी नहीं दिख रही आज, कहीं गई है क्या, घर पर नहीं है। वैसे तो उसे ही अक्सर सब्जी खरीदते देखा है। तुम तो उस समय आराम कर रही होती हो ना।” 

प्रमिला हैरान हो गई और बोली-“नहीं तो अम्मा जी, जिस समय यह सब्जीवाला आता है उस समय सुबह के 10 बज रहे होते हैं, उस समय मैं आराम करती हूं किसने कह दिया आपसे। घर के हजारों काम होते हैं, तो इसीलिए सब्जी जेठानी जी ले लेती हैं।” 

जहरी-” लो भला, यह बड़ी भली गई तुमने, मैं क्या किसी के घर में ताका झांकी करती हूं, तेरी जेठानी नेही बताया था।” 

प्रमिला को सुशीला पर बहुत गुस्सा आया और वह जेठानी के वापस आने पर उस सवाल पूछने के बारे में सोचने लगी। 

सुशीला जब वापस आई तो प्रमिला मायके चली गई क्योंकि चार दिन बाद बच्चों के स्कूल खुलने वाले थे। 

एक दिन सुशीला आंगन में कपड़े सुखा रही थी, तब जहरी देवी अपने आंगन में खड़े-खड़े बोली -“कैसी हो सुशीला, आ गई मायके से । प्रमिला कहां गई है, अंदर ही होगी।” 

सुशीला-“नमस्ते अम्माजी, प्रमिला मायके गई है।” 

जहरी-“चलो अच्छा है, घूमकर आएगी तो मूड ठीक हो जाएगा।” 

सुशीला-“अम्मा जी उसका मूड ठीक ही था, खराब कहां था?” 

जहरी-“अरे बेटा! तुझे नहीं पता कह रही थी हर बार जेठानीजी  छुट्टियां होते ही खुद मायके चली जाती हैं और कई बार मेरा जाना कैंसिल हो जाता है।” 

सुशीला हं हं करती रही और अंदर चली गई। 

जेठानी और देवरानी दोनों के मन में गुबार तो था ही तो छोटी-छोटी बात पर अक्सर उलझने लगी थी और फिर एक दिन इकलौती ननद रेखा को दिवाली पर क्या लेना देना है इस बात परदोनों में बहुत लड़ाई हुई और फिर दोनों ने एक दूसरे को आराम करने वाली बात और मायके जाने वाली बात को लेकर ताने मारे।

लेकिन दोनों ने इस बात पर गौर नहीं किया कि यह सब उन्हें किसने बताया जबकि जहरीदेवी के बारे में पूरा मोहल्ला जानता था। इतना होने पर भी वे दोनों उसकी बातों में आ गई। उधर जहरी को मुफ्त का मनोरंजन मिल गया। दोनों में इतना मतभेद बढ़ा कि दोनों अलग-अलग रहने लगी और बंटवारा हो गया। 

जहरी एक दूसरे पड़ोसी को कह रही थी-“देखा दोनों को, कैसे बिल्लियों की तरह लड़ रही हैं, अरे मुझसे पूछो, दुनिया देखी है मैंने, उनके मन में पहले से ही अलग होने की भावना थी।” 

अब बारी थी, जहरी के साथ वाले घर की। जहरी-“अरे कविता बिटिया, कब आई ससुराल से, और यह बाल्टी लेकर कहां चल दी, अभी 15 दिन पहले ही तो शादी हुई है तेरी।” 

कविता-नमस्ते अम्मा जी, कल ही आई हूं,नीना भाभी  को बुखार है, सोचा, ऊपर का फ्लोर खाली पड़ा है, उसमें एक पोंछा लगा दूं, वैसे भी खाली बैठी हूं।”

जहरी-अच्छा, बहू को बुखार है, वैसे भी बुखार ना भी होता, तो कौन सा वह सफाई कर देती।” 

कविता-“भाभी ने कुछ कहा था क्या?” 

जहरी-“हां कह रही थी एक दिन, नए किराएदार के आने तक मैं क्यों सफाई करूं, किराया अपने पास रखेंगे, मैं क्या नौकरानी हूं।” 

कविता चुपचाप बाल्टी लेकर ऊपर चली गई। शाम को उसकी भाभी बाहर निकली तो जहरी देवी बोली-“बहू बुखार ठीक है?” 

नीना-“नमस्ते अम्मा जी, पहले से आराम है, पर आपको कैसे पता लगा?” 

जहरी-“वह कविता सुबह बाल्टी लेकर ऊपर जाते समय बड़बड़ कर रही थी कि मायके में आकर भी आराम नहीं, महारानी भाभी को बुखार है, तो सफाई मुझे करनी पड़ेगी।” 

तभी कविता जो दरवाजे के पीछे चुपचाप खड़ी थी अचानक निकल कर बाहर आ गई और बोली-“वाह अम्मा जी वाह, आज तक जो कुछ आपके बारे में सुना था वह सच निकला। इतनी बड़ी होकर भी आप दूसरों के घर में झगड़े करवाती हो और फिर तमाशा देखती हो। बुरा मत मानना अम्मा जी, आपका नाम एकदम उचित है क्योंकि आप जहर उगलती हो।

कृपा करके आइंदा से आप हमारे घर के किसी भी सदस्य से बात ना करें। हम हमारे घर में आपसी मतभेद नहीं चाहते। एक दिन जब आपके घर ऐसा कुछ होगा, शायद तब आपको समझ आएगा। जहरी देवी के चेहरे का रंग उड़ गया था, उनसे कुछ बोलते नहीं बना और वह चुपचाप अंदर चली गई। 

स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली 

#मतभेद

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